त्रिफला चूर्ण महा संजीवनी बूटी :त्रिफला के उपयोग और लाभ

त्रिफला चूर्ण महा संजीवनी बूटी :त्रिफला के उपयोग और लाभ(Uses and Benefits of Triphala):-

आजकल मनुष्य प्रकृति से जितना दूर होता जा रहा है, उतना ही वह विभिन्न रोगों से घिरता जा रहा है। वर्तमान की अपेक्षा पहले के लोग ज्यादा स्वस्थ तथा सुखी होते थे, क्योंकि वे अथक परिश्रम करते, शुद्ध आहार ग्रहण करते तथा स्वच्छ रहते थे । उनका जीवन सादगी से अनुप्राणित था । इसलिये वे स्वस्थ एवं दीर्घजीवी थे, किंतु आज के मनुष्य-जीवन में इनका अभाव दीख रहा है।

त्रिफला चूर्ण

स्वस्थ तथा दीर्घ आयु तक जीने के लिये एक बहुश्रुत पदार्थ है - त्रिफला । यदि कोई व्यक्ति त्रिफला का नियमित रूप से निर्दिष्ट नियमों के आधार पर निरन्तर बारह वर्षों तक सेवन करता रहे तो उसका जीवन सभी तरह के रोगों से मुक्त रहेगा। ओज उसके जीवन में प्रतिबिम्बित बनकर हो उठेगा। वह स्वस्थ तो रहेगा ही, दीर्घ जीवन भी प्राप्त करेगा। विभिन्न औषधियों से वह सर्वदा के लिये अपना पिण्ड छुड़ा लेगा, क्योंकि त्रिफला रोगों की एक अमृत दवा है। इसका कोई 'वाई- इफेक्ट्स' नहीं पड़ता।

त्रिफला चूर्ण बनाने की विधि(Method of making Triphala powder) :-

त्रिफला चूर्ण बनाने में तीन पदार्थ का उपयोग हैं - १ - आँवला, २- बहेड़ा और ३-पीली हरड़। इन तीनों का सम्मिश्रण ही त्रिफला चूर्ण कहलाता है। आँवला, बहेड़ा और पीली हरड़ से भला कौन अपरिचित है ? ये तीनों पदार्थ बड़ी सहजता से ही मिल जाते हैं। इन्हें प्राप्त कर घर पर ही त्रिफला का निर्माण किया जा सकता है। त्रिफला बनाने की विधि इस प्रकार है :-

त्रिफला के लिये इन तीनों पदार्थों के सम्मिश्रण का एक निश्चित अनुपात है । यह इस प्रकार है -

पीली हरड़ का चूर्ण एक भाग, बहेड़े के चूर्ण का दो भाग और आँवले के चूर्ण का तीन भाग । इन तीनों फलों की गुठली निकालकर ओखली आदि में कूट-पीसकर चूर्ण का मिश्रण तैयार कर लें। यह मिश्रण काँच की बोतल में ढक्कन लगाकर रख दें, ताकि बरसाती हवा इसमें न पहुँच सके । चार माह की अवधि बीत जानेपर बना हुआ चूर्ण काम में नहीं लेना चाहिये, क्योंकि यह उतना उपयोगी नहीं रह पाता है जितना होना चाहिये ।

त्रिफला के सेवन की विधि(Method of consumption of Triphala) :-

त्रिफला बारह वर्ष तक नित्य और नियमित रूपसे विधिवत् प्रातः बिना कुछ खाये - पिये ताजे पानी के साथ एक बार लेना चाहिये। उसके बाद एक घंटे तक कुछ खाना-पीना नहीं चाहिये। कितनी मात्रा में यह लिया जाय, इसका भी विधान है। जितनी उम्र हो उतनी ही रत्ती लेनी चाहिये। परंतु एक बात ध्यान रहे कि इस त्रिफला के सेवन से एक या दो पतले दस्त होंगे, किंतु इससे घबड़ाना नहीं चाहिये।

यदि यह त्रिफला प्रत्येक ऋतु में निम्न वस्तुओं के साथ मिलाकर लिया जाय तो इसकी उपयोगिता और भी अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि प्रत्येक ऋतु का अपना-अपना स्वभाव होता है। वर्ष भर में दो-दो माहकी छः ऋतुएँ होती हैं। त्रिफला के साथ कौन-सी ऋतु या माह में कौन-सा, कितनी मात्रा में पदार्थ लिया जाय, वह इस प्रकार है-

  1. श्रावण और भाद्र पद यानी अगस्त और सितम्बर में त्रिफला को सेंधा नमक के साथ लेना चाहिये। जितना त्रिफला का सेवन करे, सेंधा नमक उससे छठा हिस्सा ले ।
  2. आश्विन और कार्तिक यानी अक्टूबर तथा नवम्बर में त्रिफला को शक्कर या चीनी के साथ त्रिफला की खुराक से छठा भाग मिलाकर सेवन करना चाहिये ।
  3. मार्गशीर्ष और पौष यानी दिसम्बर तथा जनवरी में त्रिफला को सोंठ के चूर्ण के साथ लेना चाहिये । सोंठ का चूर्ण त्रिफला की मात्रा से छठा भाग हो ।
  4. माघ तथा फाल्गुन यानी फरवरी और मार्च में त्रिफला को पीपल के चूर्ण के साथ सेवन करना चाहिये। यह चूर्ण त्रिफला की मात्रा के छठे भाग से कम हो ।
  5. चैत्र और वैशाख यानी अप्रैल तथा मई में त्रिफला का सेवन त्रिफला के छठे भाग जितना शहद मिलाकर करना चाहिये ।
  6. ज्येष्ठ तथा आषाढ़ यानी जून और जुलाई में त्रिफला को गुड़ के साथ लेना चाहिये । त्रिफला की मात्रा छठा भाग गुड़ होना चाहिये ।

नियमित त्रिफला चूर्ण का सेवन करने के लाभ(Benefits of consuming Triphala powder regularly) :-

जो व्यक्ति इस क्रम और विधि से त्रिफला का सेवन करता है, उसे निश्चित रूप से बहुविध लाभ होता है। उसका एक प्रकार से काया कल्प हो जाता है।

पहले वर्ष में यह तन की सुस्ती, आलस्य आदि को दूर करता है। 

दूसरे वर्ष में व्यक्ति सब प्रकार के रोगों से मुक्ति पा लेता है अर्थात् सारे रोग मिट जाते हैं।

तीसरे वर्ष में नेत्र - ज्योति बढ़ने लगती है।

चौथे वर्ष में शरीर में सुन्दरता आने लगती है। शरीर कान्ति तथा ओज से ओतप्रोत रहता है । 

पाँचवें वर्ष में बुद्धि का विशेष विकास होने लगता है। 

छठे वर्ष में शरीर बलशाली होने लगता है।

सातवें वर्ष में केशराशि यानी बाल काले होने लगते हैं । 

आठवें वर्ष में शरीर की वृद्धता तरुणाई में बदलने लगती है। 

नवें वर्ष में व्यक्ति की नेत्र- ज्योति विशेष शक्ति - सम्पन्न हो जाती है। 

दसवें वर्ष में व्यक्ति के कण्ठ पर शारदा विराजने लगती हैं ।

ग्यारहवें और बारहवें वर्ष में व्यक्ति को वाक्-सिद्धिकी प्राप्ति हो जाती है ।

इस प्रकार बारह वर्ष तक निरन्तर उपर्युक्त विधि से त्रिफला का सेवन करने के उपरान्त व्यक्ति व्यक्ति न रहकर परम साधक बन जाता है; क्योंकि उसकी समस्त मनोवृत्तियाँ स्वस्थ तथा सात्त्विक हो जाती हैं।   

( प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ से लिया गया है )

निष्कर्ष (conclusion) :-

त्रिफला चूर्ण खाने का कोई साइड इफेक्ट नहीं है
इसका उचित मात्रा के अनुसार सेवन किया जाए तो कभी भी पूरे जीवन भर व्यक्ति को किसी भी प्रकारों के रोगों का सामना नहीं करना पड़ेगा और रोग मुक्त रहेगा

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