अकरकरा के औषधीय गुण
परिचय
अकरकरा मूल रूप से अरब का निवासी कहा जाता है, यह भारत के कुछ हिस्सों में उत्पन्न होता है। वर्षा ऋतु की प्रथम फुहारे पड़ते ही इसके छोटे-छोटे पौधे निकलना शुरू कर देते हैं। इसकी जड़ का स्वाद चरपरा और मुंह में चबाने से गर्मी महसूस होती है तथा जिह्वा जलने लगती है। गुण-धर्म में अरब से आयातित औषधि अधिक वीर्यवान होती है।
बाह्य-स्वरूप
यह झाड़ीदार, रोएंदार होता है। कांड पर ग्रन्थियां होती है। कांडत्वक धूसरवर्ण और तिक्त, मूल 3-4 इंच लम्बा, आधा इंच मोटा, पुष्प श्वेत बैंगनी और पीले होते हैं। इसकी शाखाएं, पत्र और पुष्प सफेद बबूने के समान होते हैं, परन्तु इसकी डंठल पोली होती है। महाराष्ट्र में इसकी डंडी का अचार और शाक बनाकर खाया जाता है।
रासायनिक संघटन
अकरकरा की जड़ का मुख्य सक्रिय तत्व पाइरेथ्रीन नामक सत्य होता है जो रंगहीन क्रिस्टल के रूप में प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त अंशतः उड़नशील तेल, स्थिर तेल, 50 प्रतिशत इन्यूलिन तत्व पाया जाता है।
गुण-धर्म
यह बलकारक, कटु तथा प्रतिश्याय और शोथ को नष्ट करता है।' यह लालास्रावजनक, प्रदाहकारक नाड़ी को बल देने वाला कामोद्दीपक और वेदनास्थापक है।
औषधीय प्रयोग
मस्तकपीडा :
1. इस की जड़ को पीसकर ललाट पर हल्का गर्म लेप करने से मस्तक की पीड़ा मिटती है।
2. इसको दांतों के बीच में रखने से प्रतिश्याय की मस्तक पीड़ा मिटती है। इसको चबाने से लार छूटकर दाड़ की पीड़ा मिट जाती है।
अपस्मार
1 इसको सिरके में पीसकर मधु मिलाकर 5-10 मिलीलीटर की मात्रा में चाटने से अपस्मार का वेग रुकता है।
2. ब्राह्मी के साथ इसका क्वाथ करके पिलाने से मिर्गी में लाभ हता है।
मंदबुद्धि अकरकरा और ब्राह्मी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें, इसको आधा चम्मच नियमित सेवन करने से बुद्धि तीव्र होती है।
हकलाना इसके मूल चूर्ण को काली मिर्च व मधु के साथ एक ग्राम की मात्रा में मिलाकर जिल्ह्या पर मलने से जीभ का सूखापन और जड़ता दूर होकर हकलाना या तोतलापन कम होता है। 4-6 हफ्ते प्रयोग करे।
कठय अकरकरा चूर्ण की 250-500 मिलीग्राम मात्रा में फंकी लेने से बच्चों और गायको का कंठस्वर सुरीला हो जाता है। दंतशूल
अकरकरा और कपूर दोनो बराबर लेकर पीसकर मजन करने से सब प्रकार की दत पीडा मिटती है।
2. इसकी जड़ के क्वाथ से गंडूष करने से दंत पीड़ा दूर होती है और हिलते हुए दांत जम जाते हैं।
कण्ठरोग : तालू, दांत और गले के रोगों में इसके कुल्ले करने से
बहुत लाभ होता है।
मुख दुर्गन्ध : अकरकरा, माजूफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, काली मिर्च, सैंधानमक सबको बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण से प्रतिदिन मंजन करने से दांत और मसूढ़ो के सब विकार दूर होकर दुर्गन्ध मिट जाती है।
हृदय रोग :
1. अर्जुन की छाल और अकरकरा चूर्ण दोनों का बराबर मिलाकर पीसकर दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, हृदय की धड़कन, पीड़ा, कम्पन और कमजोरी में लाभ होता है।,
2. कुलअजन, सौंठ और अकरकरा की 20-25 मिलीग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर चतुर्थांश क्वाथ पिलान से हृदय रोग मिटता है।
हिचकी हिचकी आने पर एक ग्राम अकरकरा का चूर्ण शहद के साथ चटायें। हिचकी पर यह चमत्कारिक असर दिखाता है।
ज्वर:
1. इसकी जड़ के चूर्ण को जैतून के तेल में पकाकर मालिश करने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है।
2 चिरायते के 4-6 बूंद अर्क के साथ इसकी 500 मिलीग्राम की फंकी देने से निरंतर रहने वाला ज्वर छूमंतर हो जाता है।
श्वास : इसके कपड़छन चूर्ण को सूंघने से श्वास अवरोध दूर होता है।
खांसी
1. इसका 100 मि०ली० क्वाथ बनाकर सुबह-शाम पीने से पुरानी खांसी मिटती है।
2. इसके चूर्ण का 3-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से यह बलपूर्वक दस्त के रास्ते कफ को बाहर निकाल देती है।
उदर रोग उदर रोगों में अकरकरा की जड़ का चूर्ण और छोटी पिप्पली का चूर्ण सम भाग लेकर, आधा चम्मच सुबह शाम भोजनोपरांत खाने से लाभ होता है।
मंदाग्नि (अफारा): शुंठी चूर्ण और अकरकरा दोनों की 1-1 ग्राम मात्रा को मिलाकर फंकी लेने से मंदाग्नि और अफारा दूर होता है।
मासिक धर्म : अकरकरा मूल का 100 मि.ली. क्वाथ सुबह-शाम पीने से मासिक धर्म ठीक होने लगता है।
शून्यता: इसके 1 ग्राम चूर्ण को 2-3 नग लौंग के साथ सेवन करने से शरीर की शून्यता और इसकी मूल का 100 मि. ली. क्वाथ पीने से आलस्य मिटता है।
पक्षाघात :
1. अकरकरा मूल को बरीक पीसकर महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से पक्षाघात में लाभ होता है।
2. अकरकरा मूल का चूर्ण 500 मिलीग्राम की मात्रा में मधु के साथ प्रातः-सायं चाटने से पक्षाघात में लाभ होता है।
गृध्रसी इसके मूल चूर्ण को अखरोट के तैल में मिलाकर मालिश करने से गृध्रसी मिटती है।
अर्दित :
1. उशवे के साथ इसका 100 मिलीलीटर क्वाथ करके पिलाने से अर्दित मिटता है।
2. अकरकरा चूर्ण और राई के चूर्ण को मधु में मिलाकर जिल्ह्या पर लेप करने से अर्धागवात मिटती है।
इन्द्री : 10 ग्राम अकरकरे को 50 ग्राम काढ़े के रस में पीसकर लेप करने से इन्द्री मोटी हो जाती है।
बाजीकरण : अश्वगंधा, सफेद मूसली, अकरकरा सभी को समान भाग लेकर महीन पीसें। नित्य प्रातः व सायंकाल एक-एक चम्मच एक कप दूध के साथ लेने से इसका प्रभाव बाजीकारक होता है।
विशेष : इसको प्रमाणित मात्रा में ही लेना चाहिए। मुनक्का और कतीरा गोंद इसके दर्पनाशक हैं।
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