अर्जुन का पेड़ के चमत्कारी लाभ

अर्जुन का पेड़ के चमत्कारी लाभ - स्वस्थ और रक्षा में अर्जुन के पेड़ का महा योगदान

अर्जुन का पेड़ नदी नालों के किनारे होने के कारण इसे धवल, ककुभ तथा नदीसर्ज भी कहा जाता है।

अर्जुन का पेड़ :-

आधुनिक प्रयोगों से वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि अर्जुन हृदय-रोगों के लिये श्रेष्ठ औषधि है। अर्जुन जाति के कम-से-कम पंद्रह प्रकार के पौधे हमारे देश में पाये जाते हैं। इसी कारण पहचान जरूरी है कि कौन-सी औषधि हृदय-रक्त वाही-संस्थान पर कार्य करती है।
अर्जुन का पेड़
अर्जुन का पेड़

प्राचीन आयुर्वेद के अनुसार-शास्त्रियों में 

  1. वाग्भट ऐसे वैद्य हैं, जिन्होंने पहली बार इस औषधि के हृदय-रोग में उपयोगी होने की विवेचना की। 
  2. इसके बाद वैद्य चक्रदत्त तथा वैद्य भावमिश्र ने भी कहा कि घी, दूध तथा गुड़ आदि के साथ जो अर्जुन की त्वचा का चूर्ण नियमित रूप से लेता है, उसेके हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरजीवी होता है ।
  3. निघण्टुरत्नाकर के अनुसार अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण- खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है।
अर्जुन का पूरा पेड़ एक सिद्ध औषधि है जो हृदय रोगों की, चाहे वे किसी भी प्रकार के हों, अचूक दवा माना है।
हमने इसे अपने औषधालय में बहुत उपयोग किया है तथा शत-प्रतिशत रोगियों को लाभ मिला हैं।

अर्जुन के पेड़ के फायदे:-

  • हृदय में शिथिलता आने पर या शोथ होने पर अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में मिलाकर औट कर पिलाना चाहिये।
  • हृदयाघात, हृदय  शूल उठने पर में अर्जुन की छाल से सिद्ध दूध अथवा ३ से 6 ग्राम छाल घी या गुड़ के शर्बत के साथ देते हैं।
  • अर्जुन-घृत बनाने के लिये आधा किलो अर्जुनकी छाल जौकुट करके 4 किलो जल में पकाया जाता है। चौथाई जल शेष रहने पर अर्जुन कल्क 50 ग्राम तथा गाय का घी एक पाव मिलाकर पाक करते हैं। ध्यान रहे, जल उड़ जाने एवं घृत शेष रहने पर यह सिद्ध घृत बन जाता है । यह घी हृदय के समस्त रोगों में हितकारी है। इसकी मात्रा 6 से 11 ग्राम तक दी जाती है।
  • महिलाओं में होने वाले श्वेत प्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।
  •  छाती में जलन, जीर्ण खाँसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।
  • हड्डी टूटने पर इसकी छालका स्वरस दूध के साथ देते हैं। सूजन तथा दर्द को कम करने की शक्ति भी इसमें निहित है।

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