साहिजन की सब्जी सभी मनुष्य को क्यों खाना चाहिए
सहिजन (मूंगा) का पेड़ के औषधीय उपयोग के बारे में सम्पूर्ण जानकारी
सहिजन या मूंगा का पेड़ सम्पूर्ण भारत में पाया जाने वाला एक वृक्ष है। इसकी फली सब्जी के रूप में प्रयुक्त होती है। इसे शोभांजन, शिग्रु, कृष्णबीज, सजिना, साजना, सुरजना, सुलजना, सेजना, सैजना, सरगनो, सरगवो, सेक्टो, शेवगा, मुआ, मरुगाई, बड़ा डिसिंग, मूँगा चेझाड़, सरागू, मुरंगाई, विद्रधिनाशन, स्त्रीचितहारी तथा इंडियन हार्स रैडिश के नाम से जाना जाता है।
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मूंगा की पत्ती |
आयुर्वेद के अनुसार सहिजन के लाभ
इसका रस मधुर-कटु तथा गुण पाचक, अनुलोमक, शुक्रवर्धक, रुचिकारक, वातघ्न, नेत्र शोधक, कृमिघ्न, मेदघ्न, शोथहर, वेदनाशामक, गण्डमाला, व्रण तथा विद्रधिनाशक है।
वैसे तो इसके सभी अङ्ग उपयोग में लिये जाते हैं, परंतु विशेष रूप से इसकी नरम फली उदर एवं वात रोगों में, पत्ती नेत्र रोग एवं रतौंधी में, फूल उदरशूल, निर्बलता, कफ वात आदि के रोगों में तथा मूल और छाल अन्तर्विद्रधि, गृध्रसी, दमा, सूजन, पथरी, जलोदर, यकृत्, तिल्ली (प्लीहा ), शोथ, गठिया, अर्धांगवात आदि में प्रयुक्त किये जाते हैं।
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मूंगा की कोंस |
सहिजन के दो विशिष्ट अनुभूत प्रयोग
(1) वात एवं कफ सहिजन की छाल का स्वरस (ताजा रस) आधा छटाक (३० मि०ली०), शहद आधा चम्मच, मकर ध्वज 3/8 रत्ती - इन सभी को मिलाकर सायं-प्रातः खाली पेट लेने से अनेक वात तथा कफ रोग एवं विद्रधि नष्ट होती है। इसका प्रयोग कम-से-कम पंद्रह दिन तक करना चाहिये।
(2) यदि कैंसर पर इसका प्रयोग किया जाय तो लाभ की सम्भावना हो सकती है ।
(3) सहिजन के जड़ की अंदर की छाल आधा पाव (१०० ग्राम) को आधा सेर जल में एक या दो घंटे डालकर अच्छी तरह मसल कर आँच पर रख दे। आठवाँ भाग शेष बचने पर अच्छी तरह मसलकर छान ले। उसमें अजवाइन ४ रत्ती, सोंठ ४ रत्ती, हींग १ रत्ती डालकर शीतल होने पर पीये । इससे गृध्रसी मात्र तीन दिनों में तथा गठिया वात, पक्षाघात, अर्धाङ्गवात एवं अन्य वात रोग पंद्रह दिनों में नष्ट हो सकते हैं।
- सहिजन खाने से इम्यूनिटी बढ़ती है.
- सहिजन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
- सहिजन पेट दर्द और गैस, कब्ज जैसी समस्या से छुटकारा भी दिलाता है
- सहिजन आंखों की रोशनी के लिए अच्छा माना जाता है, इसके नियमित सेवन से आंखों की समस्या भी दूर होती है.
इसका सेवन दोनों समय (प्रातः-सायं) खाली पेट करना चाहिये उपर्युक्त दोनों प्रयोगों में पथ्य तथा अपथ्य वातरोग के अनुसार करना चाहिये ।
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