हरड़ ka upyog

प्राचीन आयुर्वेद के अनुसार औषधियों में हरड़ का महत्वपूर्ण स्थान 

हरीतकी सदा पथ्या मातेव हितकारिणी। 

कदाचित् कुप्यते माता नोदरस्था हरीतकी ॥ 

हरीतकी (हरड़) सदा ही पथ्यस्वरूपा है, माता के समान हित करने वाली है। माता कभी कोप भी कर सकती है, किंतु सेवन की गयी हरीत की कभी भी कुपित नहीं होती, सदा हित ही करती है।

हरड़ के स्वास्थ्यवर्धक गुण

हरड़ या हर्र एक ऐसा स्वयंसिद्ध रसायन है, जिसके अनुपान भेद से सेवन करने पर रोग नहीं होते। विशुद्ध नीरोग गौके मूत्र को मिट्टी के पात्र में छानकर उसमें छोटी हरड़ प्रायः सौ ग्राम या दो सौ ग्राम डाल दे। 

चौबीस घंटे के बाद उसे निकालकर एक सप्ताह छाया में सुखाये। इसके बाद गोघृत में मन्दाग्नि से उसे भूनकर काला नमक मिला दे, तदनन्तर चौड़ी शीशी में रख ले। 

नित्य दोपहर में भोजन के बाद तथा रात्रि में सोते समय एक-एक हरड़ जल के साथ चबा लिया करे, इससे जीवन में कभी उदरविकार - मलावरोध होगा ही नहीं; क्योंकि 'सर्वेषामेव रोगाणां निदानं कुपिता मलाः' अर्थात् सभी रोगों की जड़ कुपित हुआ मल ही है ऐसा कहा गया है। हारीतसंहिता जो कि आयुर्वेद का प्राचीन तथा प्रामाणिक ग्रन्थ है, उसमें हारीत मुनि ने शिष्यभाव से महामुनि अगस्त्य से आरोग्य सम्बन्धी जो प्रश्न किये, उनमें सर्वाधिक गुण हरड़ के बताये हैं । हरड़ को शिवा स्वरूप (माता पार्वती) कहा है । 

हरड़ या हर्रे के द्वारा रोगों का उपचार:-

नमक के साथ हरड़ खाने से रोगी का उदर सदा शुद्ध रहता है। हरड़ के चूर्ण में नमक 0.5 भाग ही मिलाना चाहिये। ज्यादा नमक मिलाने पर दस्तावर हो जायगा।

घी के साथ हरड़ का चूर्ण चाटने से हृदय रोग नहीं होता है 
प्रतिदिन प्रातः शहद के साथ हरड़ का चूर्ण चाटने पर शक्ति बढ़ती है।

सोते समय शक्कर और हरड़ का चूर्ण मिलाकर दूध के साथ लेने से पेट साफ रहता है। हरड़ के चूर्ण को मक्खन-मिस्री के साथ चाटने से मेधा-शक्ति बढ़ती है तथा स्मरण शक्ति श्रेष्ठ होती है।

जवा हरड़ को गोमूत्र में भिगोकर नमक लगाकर मिट्टी के तवे पर धीरे-धीरे दो-तीन घंटे तक मध्यम आँच पर सेकने से हरड़ हलकी हो जायगी। ठंडी होने पर डिब्बे में भरकर रख ले तथा दिनमें तीन बार एक-एक हरड़ को चूसते रहने से श्वासरोग तथा खाँसी मिटती है।

जिसकी आँखें कमजोर हों, उसे चाहिये कि प्रतिदिन बड़ी हरड़ घृत के साथ चाटे और ऊपर से मिस्री-युक्त गाय का दूध पीये। इससे आँखों की ज्योति ठीक होती है तथा मेधा-शक्ति बढ़ती है।

पञ्चगव्य के साथ हरड़ का चूर्ण सेवन करने वाला दीर्घायु होता है।

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