चमेली के औषधीय फायदे: जानिए कैसे चमेली का उपयोग करके आप अपनी रोगों से छुटकारा पा सकते हैं।
चमेली का परिचय (Introduction of Jasmine) :-
चमेली की बेल पूरे भारतवर्ष में घरों में, वाटिकाओं में, गमलों में, मन्दिरों में, सौन्दर्य बढ़ाने के लिए लगाई जाती है। इसके पुष्पों से इत्र और तेल बनाया जाता है। चमेली का एक पौधा आठ से पन्द्रह वर्षों तक फूल देता है। इसके फूलों की गंध इतनी प्रिय और मनोहारिणी होती है कि अवसादित निराश हृदय में नवीन चेतना व स्पदंन का संचार कर देती है। इसीलिये इसे सुमना, हृद्य, गंध चेतिका इत्यादि नाम दिये गये है। इसके अतरिक्त चमेली के औषधीय फायदे भी है जो हम इस लेख में बताएगें![]() |
चमेली का फूल |
चमेली के पौधों की पहिचान (Identification of Jasmine Plants):-
चमेली के पौधों की पहिचान होना बहुत जरुरी है चमेली जैसे रंग रूप के कई प्रकार के पौधे होते है इसका पौधा लता के रूप में होता है। शाखाएं धारीयुक्त, पत्रअभिमुख असमपक्षवत्। पत्रक 6-11 तथा शीर्ष पत्रक सबसे बड़ा होता है। पुष्प वृन्त अक्षीय या अन्त्य पत्रों से बड़े होते हैं। पुष्प वृन्तों पर श्वेत सुगन्धित पुष्प खिले रहते है। वर्षाकाल में इस पर पुष्प खिलते हैं।
चमेली में पाए जाने वाले पोषक तत्व (Nutrients found in jasmine):-
इसके पत्रों में जैस्मिनाइन नामक एक उपक्षार तथा रैजिन पाया जाता है। इसके तेल में बेजिल एसीटेट, मेथिल एंथर निलेट और आंइलिकूल नामक पदार्थ पाये जाते हैं।चमेली के औषधीय गुण-धर्म (Medicinal properties of jasmine):-
यह चर्मरोग, पायरिया, घाव,नेत्ररोग, कफ पित्तशामक, वातशामक, त्रिदोषहर प्रणा व्रणाशोधन, वर्ण्य, बाजीकरण ओर वेदना स्थापन है। रोल वातशामक और पत्र मुखरोग नाशक, कुष्ठघ्न, कंकडून तथा दातों के लिय हितकारी हैचमेली के औषधीय उपयोग: जानिए कैसे चमेली के पौधे का उपयोग करके आप अपनी रोगों का इलाज कर सकते हैं (medicinal uses of jasmine):-
चमेली एक बहुत असरदार घरेलु दवाई है जो कई प्रकार के रोगों को ठीक करने में सक्षम है
मुखरोग में :-
- चमेली के 25 से 50 ग्राम पत्रों का क्वाथ बनाकर गंडूष करने से मुँह के छाले व मसूड़ों के रोगों में लाभ होता है।
- इसके पत्तों को चबाने से मुंह के छालों में तथा मसूड़ों के विकार में लाभ होता है।
कर्णरोग में :-
- कान में यदि शूल हो पीब निकलती हो, तब चमेली के 20 ग्राम पत्रों को 100 ग्राम तिल के तेल में उबालकर तेल को कान में 1-1 बूंद डालने से पीब बहना बन्द हो जाता है।
- चमेली के तेल में एलुवा मिला के कान में डालने से कान की खुजली मिटती है। इसके पत्तों का 5 मिलीलीटर रस 10 मिली गौमूत्र में मिलाकर गरमकर कान में डालने से कर्ण शूल मिटता है।
- मस्तक पीडा इसके तीनों पत्रों को गुल रोगन के साथ पीसकर 2-2 बूंद नाक में टपकाने से मस्तक पीड़ा मिटती है। मुख की कान्ति इसके 10-20 फूलो को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की कान्ति बढ़ती है।
- आंख की फूली फूलों की 5-6 सफेद कोमल पंखुडियों को धोई सी मिश्री के साथ खरल करके, आंख की फुली पर लगाने से कुछ दिनों में वह फूली कट जाती है।
अर्दित में :-
- पक्षाघात, अर्दित आदि विकारों में मूल को पीसकर लेप करने तथा तेल की मालिश करने से लाभ होता है।
उदरकृमि में :-
- इसके 10 ग्राम पत्तों को पानी में थोड़ा जोश देकर पीन से पेट के कीडे निकल जाते हैं। मासिक धर्म साफ भी होता है।
वायुशूल में :-
- चमेली के गरम तेल में रूई का फोहा निगो के नागि पर रखने से वायुशूल मिटता है।
उदावर्त में :-
- उदावर्त-आनाह में इसकी जड़ का क्वाथ 10-20 ग्रान की मात्रा में नियमित रूप से सेवन करना चाहिए।
- चमेली के पुष्प व पत्रस्वरस से सिद्ध तेल की मालिश या जड का लेप इन्द्री पर करने से ध्वज भंग और नपुंसकता में लान होता है।
- इसके पत्रस्वरस से सिद्ध 10 मिलीलीटर तेल में 2 ग्राम राई को पीसकर मूत्रेन्द्रिय, यस्ति, और जांघों पर लेप करने से नपुंसकता मिटती है। यह लेप बहुत उप है। इसलिये इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिये।
- इसके 5-10 फूल पीसकर कामेन्द्रियों पर लेप करने से स्तम्भन की शक्ति बढ़ती है। इसके 10-20 पुष्पों को कुचल कर नाभि और कमर पर बांधने से पेशाब साफ होता है। काम वासना बढ़ती है। और मासिक धर्म का कष्ट दूर होता है।
मासिक धर्म में :-
- चमेली के 20 ग्राम पंचाग को आधा किलो पानी में पकाकर चतुर्थाश शेष क्वाथ सुबह-शाम पिलाने से तिल्ली आदि अंगों के बहाव की रूकावट और मासिक धर्म की रूकावट मिटती है।
उपदंश में :-
- इस रोग में चमेली के पत्रों का स्वरस 20 ग्राम, राल का चूर्ण 125 मिलीग्राम दोनो को मिलाकर प्रतिदिन सवेरे पीने से 15-20 दिन में गर्मी का रोग नष्ट हो जाता है। पथ्य में सिर्फ गेहूँ की रोटी, दूध, भात और घी शक्कर का ही प्रयोग करना चाहिये।
- इसके पत्रों के क्वाथ से उपदंश के घाव धोने से लाभ होता है।
- इसके का पत्तो क्वाथ कृमिनाशक और मूत्रल है।
- चमेली के पत्तों के सुखोष्ण क्वाथ में अथवा त्रिफला के सुखोष्ण क्वाध में नूत्रेन्द्रिय को डुबाने से घोर पीड़ा शान्त होती है और रोग हल्का पड़ जाता है
बिवाई में :-
- इसके पत्तों के ताजा रस को पैरों की बिवाई पर लगाने से बिवाई अच्छी हो जाती है।
व्रणरोपण में :-
- व्रणों के शोधन एवं रोपण के लिये, इसके पत्रों के क्वाथ से व्रणों को धोना, एवं पत्रों एवं पत्रों से सिद्धतेल को लगाने में लाभदायक है।
कुष्ठ रोग में ;-
- चमेली की नई पत्तियाँ, इन्द्र जौ, सफेद कनेर की जड़, करंज के फल, दारू हल्दी की छाल का लेप कुष्ठनाशक है।
- इसकी जड़ के क्वाथ का सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
ज्वर में :-
- चमेली की पत्ती, आँवला, नागरमोथा, यवासा, समभाग के तैयार क्वाथ में गुड मिलाकर दिन में दो बार 30 मि०ली० मात्रा में सेवन करने से ज्वर के रोगी के भीतर रूके हुये दोष शीघ्र ही बाहर निकल जाते है।
चर्मरोग में :-
- चमेली का तेल चर्मरोगों की एक अचूक व चमत्कारिक दवा है। इसको लगाने से सब प्रकार के जहरीले घाव , खाज, खुजली, अग्नि दाह, मर्मस्थान के नहीं भरने वाले घाव इत्यादि रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं।
- चर्म रोग तथा रक्त विकार जन्य रोगों में इसके 8-10 फूलो को पीसकर लेप करने से बहुत आराम मिलता है।
विस्फोटक में :-
- इस रोग में इसके 1-15 फूलों का लेप शान्तिदायक है।
दाह में :-
- चमेली के फूलों से निर्मित सुगन्धित तेल दाह को ऐसे शान्त करती है जैसे जल अग्नि को।
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