अगस्त के वृक्षों से लाभ पाएं, जानें आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में

अगस्त के पेड़: जानिए इन पेड़ों की खासियतें और महत्व(August tree benefits) :-

जहाँ बात होती है आयुर्वेदिक औषधीय की तो इन औषधीयों की अपनी अपनी पाहिचन है जिसमे नाम एक नाम आता है अगस्त के पेड़ का ,अगस्त के रोपे हुए पेड़  सर्वत्र मिलते हैं। जहां जल की प्रचुरता तथा वायुमण्डल उष्ण प्रधानशील है, वहां खूब फलता फूलता है। वर्षा ऋतु में इसके बीज उगते हैं। राजनिघंटुकार ने इसकी चार जातियां श्वेत, पीत, नील ओर रक्त बतलाई हैं। परन्तु अधिकांश रूप में श्वेत रंग का पुष्प ही प्राप्त होता है। इसके कोमल पत्र, पुष्प और फलियों का शाक बनाकर खाया जाता है। 

अगस्त का पेड़
अगस्त का पेड़ 

अगस्त के पेड़ को कई नामो से जाना जाता है 

हिंदी में - अगस्त्या ,अगस्त 
संस्कृत में - मुनिद्रुम
अंग्रेजी में - sesbane 
तेलगु में - अविषी 
तमिल में - अगति 
 इसके और भी कई नाम है 

अगस्त के पेड़ की बनावट (बाह्य-स्वरूप) (august tree texture):-

अगस्त के वृक्ष अल्पायु तथा शीघ्र वर्धनशील, 20 फुट तक ऊंचे होते हैं। पत्र संयुक्त बहुत लम्बे पत्र दंड पर 25-30 जोड़ों में लगते हैं। पत्रक एक से डेढ इंच तक लम्बे किंचित अंडाकार, पुष्प श्वेत वर्ण, नौकाकार, शिम्बी एक फुट लम्बी किंचित वक्र, चपटी और प्रत्येक फली में 15-20 हलके रंग के बीज होते हैं। शरद ऋतु में पुष्प तथा शीतकाल में फल लगते हैं।

अगस्त के पेड़ रासायनिक गुण(August tree chemical properties) :-

इसकी छाल में टैनिन और रक्तवर्ण का निर्यास होता है। पत्तियों में प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा तथा विटामिन ए, बी, सी; पुष्पों में विटामिन बी और सी तथा प्रोटीन, बीजों में लगभग 70 प्रतिशत प्रोटीन तथा एक तेल पाया जाता है

गुण-धर्म(qualities and religion) :-

पित्त, कफ तथा चातुर्थिक ज्वरनाशक, शीतल, रूक्ष, तिक्त तथा प्रतिश्याय का निवारण करने वाला है। शीतवीर्य, कड़वा, कसैला, विपाक में चरपरा तथा, रतौंधी, पीनस रोग और वातरक्त नाशक है।

इसकी फली विपाक में मधुर, तिक्त लघु, सर, दस्तावर, शिम्बीकारक, बुद्धिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक तथा त्रिदोष शूल, पाह विष, शोथ और गुल्म-नाशक है। पक्वफली रूक्ष और पित्तकारक होती है। इसकी छाल संकोचक, कटुपोष्टिक, पाचक और शक्ति- वर्धक होते है।

अगस्त के वृक्षों के आयुर्वेदिक उपचारों के लाभ, जानें विधि (Method and treatment of August tree) :-

मिर्गी में उपचार :-

  1. अगस्त के पत्तों का चूर्ण और काली मिर्च का चूर्ण समान भाग में लेकर गोमूत्र के साथ बारीक पीसकर मिर्गी के रोगी को सुघांने से लाभ होता है।
  2. यदि बालक छोटा हो तो इसके दो पत्तों का रस और उसमें आधी मात्रा में काली मिर्च मिलाकर उसमें रूई का फोया तरकर उसे नासारंध्र के पास रखने से ही अपस्मार शांत हो जाता है।

आधाशीशी में :- 

  1. जिस तरफ के मस्तिष्क में वेदना हो इसके दूसरी ओर के नथुने में अगस्त के पत्तों या फूलों के रस की 2-3 बूंदे टपकाने से तुरन्त लाभ होता है। इससे नासिका की पीड़ा भी शांत हो जाती है।

प्रतिश्याय में :-

  1. जुकाम के वेग से सिर बहुत भारी तथा दुःखता हो तो अगस्त पत्र रस की दो-चार बूंदे नाक में टपकाने से तथा इसकी मूल का रस 10 से 20 ग्राम तक शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार चाटने से कष्ट दूर हो जाता है।

नेत्र विकार में :-

  1. इसके पुष्पों का रस 2-2 बूंद नेत्रों में डालने से दृष्टि का धुंधलापन मिटता है।
  2. इसके पुष्पों की सब्जी या शाक बनाकर सुबह-शाम खाने से रतौंधी मिटती है।
  3. इसके 250 ग्राम पत्रों को पीसकर एक किलोग्राम गोघृत में पकाकर सिद्ध किये हुए घी को 5-10 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से परम लाभ होता है।
  4. इसके पुष्पों का मधु आंखों में डालने से धुंध या जाला मिटता है। पुष्प को तोड़ने से भीतर से 2-3 बूंद मधु निकलता है।
  5. इसके पत्तों को घी में भूनकर खाने से और घी का सेवन करने से दृष्टिमांद्य, धुंध या जाला कटता है।

चित्तविभ्रम में :-

  1. इसके पत्र रस में सौंठ, पीपर और गुड़ समभाग मिलाकर 1-2 दो बूंद नस्य देने से लाभ होता है।

स्वर भंग में  :- 

इसकी पत्तियों के क्वाथ से गंडूष करने से शुष्क कास, जीभ का फटना, स्वरभंग तथा कफ के साथ रूधिर निकलने में लाभ होता है।

उदरशूल में :- 

  1. अगस्त की छाल के 20 ग्राम क्वाथ में थोड़ा सैंधा नमक और भुनी हुई 20 नग लौंग मिलाकर सुबह-शाम पीने से तीन दिन में पुराने से पुराने उदर विकार और शूल नष्ट हो जाते हैं।

बद्धकोष्ठ में :- 

  1. इसके 20 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में उबालकर, 100 ग्राम शेष रहने पर 10-20 ग्राम क्वाथ पिलाने से बद्धकोष्ठ मिटता है।

श्वेत प्रदर  में :- 

  1. अगस्त की ताजी छाल को कूटकर इसके रस में कपड़े को भिगो कर योनि में रखने से श्वेत प्रदर और खुजली में लाभ होता है।

गठिया में  :- 

  1. धतूरे की जड़ और अगस्त की जड़ दोनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और पुल्टिस जैसा बनाकर वेदनायुक्त भाग पर बांधने से कष्ट दूर होता है। सूजन उतर जाती है। कम वेदना में लाल अगस्त की जड़ को पीसकर लेप करें।

वातरक्त में :- 

  1. अगस्त के सूखे पुष्पों का 100 ग्राम महीन चूर्ण भैंस के एक किलो दूध में डालकर दही जमा दें, दूसरे दिन मक्खन निकाल कर मालिश करें। इस मक्खन की मालिश खाज पर करने से भी लाभ होता है।

बुद्धिवर्धनार्थ में :- 

  1. अगस्त के बीजों का चूर्ण 3 से 10 ग्राम तक गाय के धारोष्ण 250 ग्राम दूध के साथ प्रातः-सायं कुछ दिन तक खाने से स्मरण शक्ति तीव्र हो जाती है।

ज्वर में :-

  1. इसके फूलों या पत्तों का रस सुँघाने से चातुर्थिक ज्वर और बंधे हुए जुकाम में लाभ होता है।
  2. अगस्त पत्र स्वरस की दो या तीन चम्मच में आधा चम्मच शहद मिलाकर प्रात:-सायं सेवन करने से शीघ्र ही चातुर्थिक ज्वर का आना रूक जाता है। इसका प्रयोग बराबर 15 दिन तक करना चाहिए।
  3. फेफड़ों के शोथ एवं कफज कास श्वास के साथ यदि ज्वर हो तो इसकी जड़ की छाल अथवा पत्तों का या पंचाग का 10 या 20 ग्राम स्वरस में बराबर शहद मिलाकर दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से अत्यन्त लाभ होता है।
  4. इसकी जड़ की छाल के 2 ग्राम महीन चूर्ण को पान के पत्तों के 10 ग्राम रस के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से भी कफज कास श्वास के साथ ज्वर में लाभ होता है।
  5.  मसूरिका के और दूसरे ऐसे ज्वरों में जिनमें फोड़े-फुन्सियां हो जाया करती है, छाल का हिम या फांट 20 से 30 ग्राम की मात्रा में सबुह-शाम खाली पेट पिलाना चाहिए।

मूर्च्छा आने पर :- 

  1. केवल पत्र रस की चार बूंदे नाक में टपका देने से ही मूर्च्छा दूर हो जाती है।

बच्चों के विकार :- 

  1. इसके पत्र स्वरस को लगभग 5 से 10 ग्राम की मात्रा में पिलाने से दो-चार दस्त होकर बच्चों के सब विका शांत हो जाते हैं।

अन्तर्विद्रधि में :- 

  1. अगस्त के पत्रों को गरम कर यदि पुटपाक विधि गरम करें तो अच्छा है, फोड़े के स्थान पर बांधने से अन्तर्विद्र फूट कर बह जाती है।

नुकसान :-

अगस्त के पेड़ का उपुओग चारागाह जानवरों को चराने के लिए करते है लेकीन मुर्गियों के लिए यह हानिकारक होता है 

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