घी के फायदे और नुकसान - जानिए कैसे इसका सेवन करने से आपको मिलेंगे लाभ
आज के समय में मनुष्य अनेक रोग बीमारियों से ग्रस्त हो रहा है जिसका कारण है खान-पान खान-पांच सही नहीं होने से मनुष्य कई प्रकार की बीमारियों से जूझ रहा है
प्राचीन समय में मनुष्य अपनी भोजन में गाय के घी को सम्मिलित करता था जो मनुष्य को ऊर्जा और ताकत प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था तो आज जानेंगे घी के फायदे और नुकसान और घी का उपयोग किस प्रकार किया जाता है
दैनिक जीवन में गाय के घी का महत्व : स्वस्थ्य जीवन के लिए क्यों आवश्यक है घी का सेवन
गाय के घी के बारे में संपूर्ण जानकारी लेने के लिए इसलिए को पूरा पढ़ें पूरे पढ़ने से ही सही जानकारी मिलती है अधूरा पढ़कर छोड़ देने से कुछ प्राप्त नहीं होता है
पित्त, कफ, दम, विष तथा त्रिदोष का नाश करता है।
सतत ज्वर के लिये हितकारक और आम ज्वर वाले के लिये विष समान है।
इतने प्रकार के रोगों के लिए घी रामबाण औषधि है।
मक्खन में से ताजा निकाला हुआ ताजा घी तृप्तिकारक, दुर्बल मनुष्य के लिये हितकारक और भोजन में स्वादिष्ट होता है।
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गाय का घी |
मक्खन में से ताजा निकाला हुआ ताजा घी तृप्तिकारक, दुर्बल मनुष्य के लिये हितकारक और भोजन में स्वादिष्ट होता है।
नेत्रों के लिए और सुनने की शक्ति को बढ़ाने वाला ,शरीर को ऊर्जा देने बाला और बाल प्रदान करने बाला होता है यह वस्तिकर्म और नस्य में प्रशस्त है।
घी की विशेषता
- दस वर्ष का पुराना घी 'जीर्ण', एक सौ वर्ष से एक हजार वर्ष का 'कौम्भ' और ग्यारह सौ वर्ष के ऊपर का 'महाघृत' कहलाता है।
- यह जितना ही पुराना होता जाता है, उतना ही इसका गुण अधिक बढ़ता जाता है। सौ बार धोया हुआ घी घाव, दाह, मोह और ज्वर का नाश करता है।
- गाय के घी को धोये बिना फोड़े आदि चर्म रोगों पर लगाने से जहर के समान असर होता है, वैसे ही धोये हुए घी को खाने से विषवत् असर होता है। यानी फोड़े पर धोया हुआ घी लगाना चाहिये, पर धोया हुआ घी कभी खाना नहीं चाहिये ।
- पुराना घी यदि एक वर्ष से ऊपर का हो तो मूर्च्छा, मूत्रकृच्छ्र, उन्माद, कर्णशूल, नेत्रशूल, शोथ, अर्श, व्रण और योनिदोष इत्यादि रोगों में विशेष हितकारी है।
घी का उपयोग: दैनिक जीवन में घी का सही तरीके से उपयोग करने से मिलते हैं ये फायदे
आधा सीसी के ऊपर
गाय का अच्छा घी सुबह शाम नाक में डाले, इससे सात दिन में आधासीसी बिलकुल दूर हो जायगी अथवा प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व एक तोला गाय का घी और एक तोला मिस्री मिलाकर तीन दिन तक खिलाये तो निश्चय ही आराम होता है ।
नाक से खून गिरने पर
गाय का अच्छा घी नाक में डालने से नाक से बार बार खून गिरना बंद हो जायेगा
पित्त सिर में चढ़ जाने पर
अच्छा घी माथे पर मालिश कर दे, इससे चढ़ा हुआ पित्त तत्काल उतर जाता है।
हाथ-पैर में दाह या जलन होने पर
गाय का घी का हाथ पैर मैं मालिश करने से शरीर की जलन बंद हो जाती है
धतूरा अथवा रस कपूर के विष के ऊपर
गाय का घी खूब पिलाने से लाभ होता है
शराब का नशा उतारने के लिये गाय का घी का महत्त्व
दो तोला घी और दो तोला शक्कर मिलाकर खिलने से अति शीघ्र लाभ होता है ।
गर्भिणी के रक्तस्राव के ऊपर एक सौ बार धोया हुआ घी शरीर पर लेप करने से आराम मिलता है
गर्भिणी के रक्तस्राव के ऊपर एक सौ बार धोया हुआ घी शरीर पर लेप करने से आराम मिलता है
जले हुए शरीर पर
गाय के धोये हुए घी का लेप करने से जल्दी आराम मिलता है
सिर दर्द के ऊपर
गाय का दूध और घी इकट्ठा करके अञ्जन करे। इससे नेत्र की शिराएँ लाल हो जाती हैं और रोग चला जाता है।
बालकों की छाती में कफ जम जाने पर
गाय का घी छाती पर लगाकर उसे मालिश करे। पुराना कफ धीरे धीरे बाहर निकल जाता है
शरीर में गरमी होने से रक्त खराब हो जाने पर
शरीर के ऊपर ताँबे के रंग के काले चकत्ते हो जायँ और उनकी गाँठ शरीर के ऊपर निकल आये तब पहले जॉक से रक्त निकलवा दे, पीछे पीतल के बर्तन में गायका घी दस तोला अथवा आधा गाय और आधा बकरी का घी लेकर उसमें पानी डालकर हाथ से खूब फेंटे और वह पानी निकालकर दूसरा पानी डाले। इस प्रकार एक सौ बार पानी से धोये। उसमें ढाई तोला फुलायी हुई फिटकिरी का चूर्ण डालकर घोटे और उसे एक मिट्टी के बर्तन में रखे। इसे नित्य सोते समय गाँठ बने हुए सब स्थानों पर लेप करने से शरीर में जमी हुई गरमी कम हो जाती है, कुछ ही दिनों में शरीर से दाह मिट जाता है, रक्त शुद्ध हो जाता है और यह दुष्ट रोग नष्ट हो जाता है।
सर्प के विष के ऊपर
पहले बीस से चालीस तोला घी पीये, उसके पंद्रह मिनट के बाद थोड़ा उष्ण जल जितना पी सके उतना पीये। इससे उलटी और दस्त होकर विष का शमन हो जाता है। जरूरत हो तो दूसरे समय भी घी और पानी पिये । इससे रोगी को लाभ होता है
- इन्हें भी देखे ...दूध पीने के फायदे ,
घी के नुकसान: दैनिक जीवन में घी का अधिक सेवन करने से होते हैं ये नुकसान
- खांसी जुकाम या बुखार आने पर घी का सेवन नहीं करना चाहिए
- अपच और पेट की समस्या से पीड़ित हैं, तो आपको इसका सेवन बहुत सीमित मात्रा में करना चाहिए।
- जो लोग लिवर संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं, या तिल्ली (प्लीहा) से संबंधित रोग हैं उन्हें घी का सेवन करने से बचना चाहिए।
- अगर कोई गर्भवती महिला सर्दी या पेट खराब होने जैसी समस्याओं का अनुभव करती है, तो उन्हें घी का सेवन नहीं करना चाहिए।
- हैजा, अग्निमान्द्य, बाल, वृद्ध, क्षयरोग, आमव्याधि, कफरोग, मदात्यय, कोष्ठबद्धता और ज्वर में घी कम ही देना चाहिये।
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