आक के पौधा के औषधीय गुण: जानिए इस पौधे के लाभकारी गुणों के बारे में |

आक (अर्क) के पौधे का परिचय(Introduction To Madar Plant):-

आक के पौधे, शुष्क, ऊसर और ऊँची भूमि में प्रायः सर्वत्र देखने को मिलते हैं। इस वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक के पौधा विषैला होता है तथा यह मनुष्य के घातक है। इसमें किचित सत्य जरूर है क्योंकि आयुर्वेद संहिताओं मे भी इसकी गणना उपविषों में की गई है।

 यदि आक  इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्टी-दस्त होकर मनुष्य यमराज के घर जा सकता है। इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा फायदा होता है। 

आक (अर्क) के पौधे
tree of Madar
आक के पौधे का हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है एवं यह सूर्य के समान तीक्ष्ण, तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायन धर्मा हैं। कहीं-कहीं इसे वानस्पतिक पारद भी कहा गया है। इसकी तीन जातियाँ पाई जाती है, जो निम्न प्रकार है :-

रक्तार्क - इसके फूल श्वेत रंग के छोटे कटोरीनुमा भीतर लाल और बैंगनी रंग की चित्ती वाले होते है। इसमे दूध कम होता है।

 

श्वेतार्क - इसका फूल लाल आक के पुष्प से कुछ बड़ा और हल्की पीली आभा लिये सफेद कनेर के फूल जैसा होता है। |इसकी केशर भी बिल्कुल सफेद होती है। इसे मदार भी कहते हैं। यह प्रायः मन्दिरों में लगाया जाता है। इसमें दूध अधिक होता है।


राजार्क - इसके पौधों में एक ही शाखा होती है, जिस पर केवल चार पत्ते लगते हैं। इसके फूल चांदी के रंग जैसे श्वेत होते है, यह बहुत दुर्लभ जाति है। 

 

इसके अतिरिक्त आक की एक और जाति पाई जाती है. जिसमें पिस्तई रंग के फूल लगते हैं।

आक के पौधे की पहचान (Identification Of Madar Plant):-

आक के पौधे  बहुवर्षीय व बहुशाखीय गुल्म 4-12 फुट ऊँचे कांडत्वक बहुत कोमल व धूसर होती है। इसके पौधों के सभी अंग रुई की तरह धुने हुये सफेद रोमों से आच्छादित रहते है। पत्र वृन्त बहुत ही छोटे, 4-6 इंच लम्बे, 1-3 इंच चौड़े मांसल व हृदयाकार होते हैं।

पुष्प सुगन्धित गुच्छों में सफेद या लाल बैंगनी रंग के. पुंकेसर पांच और पुष्प दंत भी पाँच ही होते है। फल 2-3 इंच लम्बे, 1 से 2 इंच तक चौडे, अंडाकार, बीच मे कुछ मुड़े हुये होने के कारण तोते की चोंच जैसी लगते हैं, इसलिए इन्हें शुकफल भी कहते हैं। फल के भीतर छोटे-छोटे भूरे रंग के बीज भरे होते है जो रूई जैसे मुलायम रेशे द्वारा आपस में चिपके रहते हैं।

परिपक्व होने पर फल जब फटते है, तब बीज हवा में उड़कर गोल हो जाते हैं और सब जगह फैल जाते है। आक का सम्पूर्ण पौधा एक प्रकार के दुग्ध समय एवं चरपरे रस से परिपूर्ण होता है। इसके किसी भी भाग को तोड़ने से सफेद रसमय दुग्ध निकलता है।

आक के पोधे का रासायनिक संघटन(Chemical Composition Of Madar Plant) :-

आक के सर्वांग में प्रायः एक प्रकार का कडुवा और चरपरा पीला जैसा पदार्थ पाया जाता है, और यही इसका प्रभावशाली अंश है। जड़ की छाल में मंडारएल्बन और भंडार फ्युएबिल नामक दो वस्तुएँ और पाई जाती है।

मंडारएल्बन आक का एक रवेदार एवं प्रभावात्मक सार है. इसे मंदारिन भी कहते है। यह सार ईथर और मद्यसार में घुलता है, शीतल जल तथा जैतून के तेल में यह अघुलनशील है।

इसमें एक विचित्रता है कि यह गरमी में जम जाता है और शीत में रखने पर पिघल उठता है। ये दोनों तत्त्व इसके दूध या रस में 2 अधिक मात्रा में पाये जाते है नवीन आक की अपेक्षा पुराने आ की जड़ अधिक वीर्यवान होती है।

आक के पोधे का गुण-धर्म (Properties Of Madar Plant) :-

  • दोनों प्रकार के आक दस्तावर है, वात जन्य कुष्ठ, कंडू वि व्रण, प्लीहा, गुल्म, बवासीर, कफ जन्य उदर रोग और म कृमि को नष्ट करने वाले है।
  • सफेद आक का फूल वीर्य वर्धक, हल्का, दीपनपाचन, अरू मुँह से पानी आना, लाला साबद्ध बवासीर खांसी तथा श्वा का नाशक है।
  • लाल आक का फूल मधुर एवं कुछ कडुवा, ग्राही, कुष्ठ, कृि कफ, बवासीर, विष, रक्तपित्त, गुल्म तथा सूजन को नष्ट करने वाला है।
  • आक का दूधः कड़वा, गर्म, चिकना, खारा, हल्का, कोढ एवं गुल्म तथा उदरेरोग नाशक है। विरेचन कराने में यह अति उत्तम है।
  • मूलत्वकः हृदयोत्तेजक, रक्त शोधक और शोथहर है। इससे हृदय की गति एवं संकोच शक्ति बढ़ती है, तथा रक्त भारी बढ़ता है। यह ज्वरघ्न और विषम ज्वर प्रति बन्धक है।
  • पत्र दोनों प्रकार के आक के पत्ते वामक, रेचक, भ्रमकारक तथा कासश्वास, कर्णशूल, शोथ, उरुस्तम्भ, पामा, कुष्ठ आदि नाशक है।

आक के पौधे के औषधीय प्रयोग विधि (Medicinal Uses method Of Madar Plant) :-

मुँह की झाँई, धब्बे आदि :-

  1. हल्दी के 3 ग्राम चूर्ण को आक के दुग्ध 5-7 बूंद व गुलाब जल में घोटकर आंखों को बचाकर झाई-युक्त स्थान पर लगायें, इससे लाभ होता है। कोमल प्रकृति वालों को आक की दूध की जगह आक का रस प्रयोग करना चाहिए।

सिर की खुजली :- 

  1. इसे सिर पर लगाने से क्लेद, दाह वेदना एवं कॅड्युक्त अरुषिका में लाभ होता है।

कर्ण रोग :-

  1. तेल और लवण से युक्त आक के पत्तों को वैद्य बांये हाथ में लेकर दाहिने हाथ से एक लोहे की कड़छी को गरम कर उसमें डाल दें। फिर इस तरह जो अर्क पत्रों का रस निकले उसे कान में डालने से कान के समस्त रोग दूर होते है। कान में मवाद आना, साँय-साँय की आवाज होना आदि में इससे बहुत लाभ होता है।

कर्णशूल :-

  1. आक के भली प्रकार पीले पड़े पत्तों को थोडा सा घी चुपड़कर आग पर रख दें, जब वे झुलसने लगे, चटपट निकाल कर निचोड़ लें। इस रस को थोड़ी गरम अवस्था में ही कान में डालने से तीव्र तथा बहुविधि वेदनायुक्त कर्णशूल शीघ्र नष्ट हो जाता है।
  2. आक के पीले पके बिना छेद वाले पत्तों पर घी लगाकर अग्नि में तपाकर उसका रस कान में 2 बूंद डालने से लाभ होता है।

आक और नेत्र रोग :-

  1. अर्क मूल की छाल सूखी 1 ग्राम कूटकर, 20 ग्राम गुलाब जल में 5 मिनट तक रखकर छान लें। बूंद-बूंद आंखों में डालने से  (3 या 5 बूंद से अधिक न डालें) नेत्र की लाली, भारीपन, दर्द, कीच की अधिकता और खुजली दूर हो जाती है।
  2. अर्कमूल की छाल को जलाकर कोयला कर लें और इसे थोड़े पानी में घिसकर नेत्रों के चारों ओर तथा पलकों पर धीरे-धीरे मलते हुये लेप करे तो लाली, खुजली, पलको की सूजन आदि मिटती है।
  3. आंख दुखनी आने पर, यदि बाई आंख हो और उसमें कडक दर्द व वेदना हो तो दाहिने पैर के नाखूनों को यदि दाई आंख आई हो तो बांये पैर के नाखूनों को आक के दूध से तर कर दें।
सावधानी : आंख में दूध नही लगना चाहिये, नही तो भयंकर परिणाम होगा। यह एक चमत्कारिक प्रयोग होगा।

मोतिया बिन्द :-

  1. आक के दूध में पुरानी ईंट का महीन चूर्ण (10 ग्राम) तर कर सुखा लें। फिर उसमे लॉंग (6 नग) मिलायें खरल में भली प्रकार से महीन करके और बारीक कपडछन कर लें। इस चूर्ण को चावल भर नासिका द्वारा प्रतिदिन प्रातः नस्य लेने से शीघ्र लाभ होता है। यह प्रयोग सर्दी-जुकाम में भी लाभ करता है।

नोट - इसका उपयोग वैध की सलाह ले कर ही करे 

मिर्गी दूर करने का अचूक उपाय :-

  1. सफेद आक के फूल 1 भाग और पुराना गुड 3 भाग लेकर पहले फूलों को पीस लें. फिर गुड के साथ खूब खरल करें। चने जैसी गोलियाँ बना ले, प्रात-साय 1 या 2 गोली ताजे जल के साथ सेवन करें।
  2. आक के ताजे फूल और काली मिर्च एक महीन पीसकर 300 मिलीग्राम की गोलियाँ बना रखे और दिन में 3-4 बार सेवन करावे ।
  3. आक के दूध में थोड़ी शंकर या मिश्री खरल कर रखे तथा इसकी 125 मिलीग्राम मात्रा प्रतिदिन प्रातः 10 ग्राम गर्म दूध के साथ सेवन करे।
  4. मदार के पत्ते और टहनी के रंग का ही इसके सुपपर ग्रीष्म काल में मिलता है। इस डिडे को शीशी में बन्दकर सुखाकर सम भाग काली मिर्च मिला महीन पीसकर अपस्मार के रोगी को बेहोशी की हालत में इसका नस्य देने से वह होश में आ जाता है और उसका रोग दूर हो जाता है।

दन्त पीड़ा में आक का उपयोग :-

  1. आक के दूध में रुई भिगोकर, घी में मलकर दाढ़ में रखने से दाढ़ की पीड़ा मिटती है।
  2. आक के दूध में नमक मिलाकर दांत पर लगाने से दंत पीडा मिटती है।
  3. अंगुली जितनी मोटी जड़ को आग में शकरकन्दी की तरह भूनकर उसका दातुन करने से दन्त रोग व दन्तपीड़ा में तुरन्त लाभ पहुंचता है। कूची वाले भाग को काटकर पुनः उसका अगला भाग प्रयोग कर सकते है।

दंत निष्कासन :-

  1. हिलते हुये दांत पर आक का दूध लगा कर उसे आसानी से निकला जा सकता है 
  2. आक के 8-10 पत्तों को 10 ग्राम काली मिर्च के साथ पीसकर उसमें थोड़ी हल्दी व संधा नमक मिलाकर मंजन करने से दांत मजबूत रहते है।
  3. वमन अर्कमूल की शुष्क छाल को समभाग अदरख के रस में भली प्रकार खरल कर 125 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर धूप में सुखाकर रख लें। मधु के साथ सेवन कराने से किसी भी प्रकार का वमन 1-2 गोली के सेवन से बन्द हो जायेगा। प्रवाहिका, शूल. मरोड़ और विसूचिका में इसे जल के देते है।

आधाशीशी में आक के पेड़ का उपयोग :-

  1. जंगली कड़ो की राख को आक के दूध मे तरकर के छाया मे सुखा लेना चाहिये। इसमें से 125 मि.ग्रा. सुपाने से छीके आकर सिर का दर्द आधा शीशी जुकाम बेहोशी इत्यादि रोग में लाभ होता है। गर्भवती स्त्री और बालक इसका प्रयोग न करें
  2. पीले पड़े हुये आक के 12 पत्तों के रस का नरम लेने से आधा शीशी में लाभ होता है। किन्तु तीक्ष्ण बहुत है. अतः सावधानी से प्रयोग करें।
  3. आक की छाया में शुक की हुई मूलचक के 10 ग्राम चूर्ण में [सात] इलागी तथा कपूर और पिपरमेंट प्रत्येक 500 मि.ग्रा. मिलाकर और सूब खरल कर शीशी में भर कर रख लें। इसमें सूघने से छीके आकर व कफान होकर आधा शीशी आदि सिर दर्द में लाभ होता है। मस्तक का भारीपन दूर होता है।
  4. अनार की 40 खूब महीन पिसी हुई छाल को आक के दूध में गूथ कर रोटी की तरह नरम आंच से पका लें।फिर इसे सुखाकर बहुत महीन पीसकर, जटामांसी, छरीला 3-3 ग्राम, इलायची और कायफल प्रत्येक 1.5 ग्राम मिलाकर नसवार बनालें। इसकी नस्य से कुछ देर बाद छीके आकर दिमागी नजला दूर होता है। तथा बेहोश रोगी को होश में लाने में सहयोग मिलता है।
  5. पुरानी पक्की ईंट को पीसकर खूब महीन कर आक के दूध में तर कर सुखाकर और तौलकर प्रति 10 ग्राम में सात लंवग बारीक पीसकर मिला दें। इसमें से 125 मिलीग्राम या 250 मिलीग्राम की मात्रा में सुधाने से मस्तक पीड़ा, सूर्यावर्त, प्रतिश्याय, पीनस और मोतिया बिन्द में लाभ होता है।

श्वास-खांसी में आक के फायदे  :-

  1. आक पुष्प की लौंग 50 ग्राम और मिर्च 6 ग्राम दोनों को एकत्र कर खूब महीन पीस मटर जैसी गोलियाँ बना लें। प्रातः 1 या 2 गोली गर्म पानी के साथ सेवन करने से श्वास वेग रूक जाता है।
  2. आक की जड़ के छिलका को आक के दूध भिगोकर शुष्क कर महीन चूर्ण कर लें, 10 ग्राम चूर्ण में 25 ग्राम त्रिकटु चूर्ण श्रृंगभस्म 5 ग्राम, गोदंती 10 ग्राम मिलाकर लगभग एक ग्राम प्रातः सायं मधु के साथ लेने से पुरातन श्वास रोग में भी लाभ होता है।
  3. आक के पत्तों पर जो सफेद क्षार सा छाया रहता है, उसे 5. से 10 ग्राम तक गुड़ में लपेटकर गोली बनाकर खाने से कास श्वास में लाभ होता है।
  4. पत्रों पर छाई सफेदी को इकट्ठा कर बाजरे जैसी गोलियाँ बनाकर 1-1 गोली प्रातः सायं खाकर ऊपर से पान खाने से 2-4 दिन में श्वास रोग में लाभ होता है। पुरानी खांसी भी मिट जाती है।
  5. पुराने से पुराने आक की जड़ को छाया शुष्क करके, निर्वात स्थान में जलाकर राख कर लें, इसमें से कोयले अलग कर दें। 1-2 ग्राम राख को शहद या पान में रखकर खाने से कास श्वास में लाभ होता है।
  6. आक की कोमल शाखा और फूलों को पीसकर 2-3 ग्राम की मात्रा में घी में सेंक लें। फिर इसमें गुड़ मिला, पाक बना नित्य प्रातः  सेवन करने से पुरानी खांसी जिसमें हरा पीला दुर्गन्ध युक्त चिपचिपा कफ निकलता हो, शीघ्र दूर होता है।
  7. अर्क पुष्पों की लौग निकालकर उसमें समभाग रोधा नमक और पीपल मिला खूब महीन पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बनाकर दो से चार गोली बड़ों और 1-2 गोली बच्चों को गौदुग्ध के साथ देने से बच्चों की खांसी दूर होती है।
  8. अर्क मूल छाल के 250 मिलीग्राम महीन चूर्ण में 250 मिलीग्राम शुंठी चूर्ण मिला 3 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से कफ युक्त खांसी और श्वास में उपयोगी है।
  9.  छाया शुष्क पुष्पों के बराबर त्रिकटु (सौंठ, पीपल, काली मिर्च) और जवाखार एकत्र कर अदरख के रस में खरल कर मटर जैसी गोलियाँ बना छाया में सुखाकर रख लें। दिन रात में 2-4 गोलियाँ मुख में रख चूसते रहने से कास श्वास में परम लाभ होता है।
  10. आक के दूध में चने डुबो कर मिट्टी के बरतन में बन्दकर उपलों की आग से भस्म कर लें। 125 मिलीग्राम मधु के साथ दिन में 3 बार चाटने से असाध्य खांसी में भी तुरन्त लाभ होता है।
  11. आक के एक पत्ते पर जल के साथ महीन पिसा हुआ कत्था और चूना लगाकर दूसरे पत्ते पर गाय का घी चुपडकर दोनो पत्तों को परस्पर जोड़ लें, इस प्रकार पत्तों को तैयार कर मटकी में रखकर जला लें। यह कष्टदायक श्वास में अति उपयोगी है। छानकर कांच की शीशी में रख लें 10-30 ग्राम तक घी. गेहूं की रोटी या चावल में डालकर खाने से कफ प्रकृति के पुरूषों में मैथुन शक्ति को पैदा करता है। तथा समस्त कफज व्याधियों को और आंत्रकृमि को नष्ट करता है।
  12. आक के ताजे फूलों का दो किलो रस निकाल लें। इसमें आक का ही दूध 250 ग्राम और गाय का घी डेढ किलो मिलाकर मंद अग्नि पर पकायें घृत मात्र शेष रहने पर छान कर में भर कर रख लें। इस घी को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में गाय के 250 ग्राम पकाये हुये दूध में मिला सेवन करने से आंत्रकृमि नष्ट होकर पाचन शक्ति तथा अर्श में भी लाभ होता है। शरीर में व्याप्त किसी तरह का विष का प्रभाव हो तो इससे लाभ होता है, परन्तु यह प्रयोग कोमल प्रकृति वालों को नहीं करना चाहिए।

जलोदर :

  1. अर्क पत्र स्वरस 1 किलो में 20 ग्राम हल्दी चूर्ण मिला मंद अग्नि पर पका कर जब गोली बनाने लायक हो जायें तो नीचे उतारकर चने जैसी गोलियाँ बना लें, 2-2 गोली दोनों समय सौंफ कासनी आदि अर्क के साथ दे, तथा जल के स्थान पर यही अर्क पिलावे।
  2. आक के ताजे हरे पत्ते 250 ग्राम और हल्दी 20 ग्राम दोनों को महीन पीस उड़द के आकार की गोलियाँ बना लें। पहले दिन ताजे जल के साथ 4 गोली, फिर दूसरे दिन 5 और 6 गोली तक बढाकर घटाये यदि लाभ हो तो पुनः उसी प्रकार घटाते बढ़ाते है, अवश्य लाभ होगा। पथ्य में दूध, साबूदाना व जौ का यूष देवे।
  3. आक के 8-10 पत्तों को सैंधा नमक के साथ कूट मिट्टी के बरतन में बन्द कर जला कर 250 मिलीग्राम भस्म को सुबह, दोपहर शाम छाछ के साथ सेवन करने से जलोदर मिटता है। तिल्ली आदि अंग जो पेट में बढ़ जाया करते है. सब अपने स्थान पर आ जाते है।

रक्त अतिसार में आक के लाभ :-

  1. शुष्क एवं महीन पीसकर कपड़छन की हुई अर्कमूल की छाल, ठंडे जल के साथ 50 से 125 मिलीग्राम ग्रहण करने से अवश्य लाभ होगा।

अजीर्ण रोग में आक के लाभ :-

  1. आक के निथारे हुये पत्र स्वरस में समभाग घृत कुमारी का गुदा व शक्कर मिलाकर पकायें। शक्कर की चाशनी बन जाने पर ठंडा कर बोतल में भर तथा आवश्यकतानुसार 2 से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करायें। यह 6 मास के बच्चे से 9-10 साल के बच्चों तक अनेक रोगों में अचूक दवा है।

पांडु (कामला) रोग में आक के उपयोग  :-

  1. आक के 24 पत्ते लेकर 50 ग्राम मिश्री मिलाकर खरल में घोटकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर चने जैसी गोलियाँ बना लें दिन में 3 बार वयस्कों को दो गोली सेवन कराने से सात दिन में पूर्ण लाभ होता है। तेल, खटाई मिर्च आदि से परहेज रखें।
  2. अर्कमूल की छाल डेढ़ ग्राम और काली मिर्च 12 नग पुननर्वा मूल 2-3 ग्राम पानी में घोट-छानकर दिन में दो बार पिलायें। गर्म और स्निग्ध वस्तुओं से परहेज रखें।
  3. आक का पका पत्र 1 नग साफ पोछकर उस पर 250 मि.ग्रा. चूना लगा कर बारीक पीस लेवें और चने के आकार की गोलियाँ बनाकर दो गोली रोगी को प्रातः काल पानी से निगलवा दें। पथ्य के रूप में दही तथा चावल लेना चाहिये।
  4. आक की कोपल 1 नग, सुबह निराहार पान के पत्ते में रखकर चबाकर खाने से 3-5 दिन में कामला ठीक हो जाता है।

भगन्दर आदि नाड़ी व्रणों पर अर्क के लाभ :-

  1. आक का 10 मि.ली. दूध और दारूहल्दी का 2 ग्राम महीन चूर्ण, को एक साथ खरल कर बत्ती बना व्रणों में रखने से शीघ्र लाभ होता है।
  2. आक के दूध में कपास की रुई भिगोकर छाया शुष्क कर बत्ती बनाकर, सरसों के तेल में भिगोकर व्रणों पर लगाने से लाभ होता है।

अंडकोष की सूजन में आराम दिलाता है आक :-

  1. 8-10 ग्राम आक की छाया शुष्क छाल को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से पैर और फोटों की गजधर्म के समान मोटी पड़ी हुई चमड़ी पतली हो जाती है।
  2. अर्क के 2-4 पत्तों को तिल्ली के तैल के साथ पत्थर पर मलहम सा बना फोड़े, अंड कोष के दर्द में चुपड कर लंगोट कस देने से शीघ्र आराम होता है।
  3. इसके पत्तों पर एरंड तैल चुपडकर फोडो पर बांधने से पित्तशोथ मिटता है।

मूत्राघात में आक का उपयोग  :-

  1. आक के दूध में बबूल की छाल का थोड़ा रस मिलाकर नाभि के आसपास और पेडू पर लेप करने से मूत्राघात दूर होता है ।

हैजा रोग को दूर करने में आक का महत्त्व :-

  1. आक की जड़ की छाया शुष्क छाल 2 भाग और काली मिर्च 1 भाग, दोनों को कूट छानकर अदरक के रस में अथवा प्याज के रस में खरलकर चने जैसी गोलियाँ बना लें। हैजे के दिनों में इनके सेवन से हैजे से बचाव होता है। हैजा का आक्रमण होने पर 1-1 गोली 2-2 घंटे में देने से लाभ होता है।
  2. आक के बिना खिले फूल 10 ग्राम तथा भुना सुहागा, लौंग, सौंठ, पीपल और काला नमक 5-5 ग्राम इन्हें कूट-पीसकर 125 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें और थोड़ी-थोड़ी देर में 1-1 गोली सेवन करना है। विशेष अवस्था में 4-4 गोली एक साथ देना है।
  3. आक के फूल 10 ग्राम भुना सुहागा 4 ग्राम, काली मिर्च 6 ग्राम, इनको ग्वारपाठा के गूदे में खरलकर चने जैसी गोलियाँ बना लें। 1-1 गोली अर्क गुलाब से देना है।
  4. आक के फूलों की लौंग और काली मिर्च 10-10 ग्राम और शुद्ध हींग 6 ग्राम इन्हें अदरक के रस की 10 भावनायें देकर उड़द जैसी गोलियाँ बना रखें। प्रत्येक उल्टी-दस्त के बाद 1-1 गोली अदरक, पोदीना या प्याज के रस के साथ सेवन कराने से तत्काल लाभ होता है।
  5. आक पीले पत्ते जो झड़कर स्वयं नीचे गिर गये हो, 5 नग लेकर आग में जला देवें। जब ये जलकर कोयला हो जाये तो कलईदार बर्तन में आधा किलो पानी में इन्हें बुझा दें। यह पानी रोगी को थोड़ा-थोड़ा करके, जल के स्थान पर पिलावें

बवासीर को जड़ से खत्म करे 

  1. आक के कोमल पत्रों के सम भाग पांचों नमक लेकर, उसमें सबके वजन से चौथाई तिल का तेल और इतना ही नींबू रस मिला पात्र के मुख को कपड़ मिट्टी से बन्दकर आग पर चढ़ा दें। जब पत्र जल जाये तो सब चीजों को निकाल पीस कर रख लें। 500 मिलीग्राम से 3 ग्राम तक आवश्यकतानुसार गर्म जल, काँजी, छाछ या मद्य के साथ सेवन कराने से बादी बवासीर नष्ट हो जाती है।
  2. तीन बूंद आक के दूध को राई पर डालकर और उस पर थोड़ा कूटा हुआ जवाखार बुरक कर बताशे में रखकर निगलने से बवासीर बहुत जल्दी नष्ट हो जाती है।
  3. हल्दी चूर्ण को आक के दूध में सात बार भिगोकर सुखा लें, फिर अर्क दुग्ध द्वारा ही उसकी लम्बी-लम्बी गोलियाँ बना छाया शुष्क कर रखें। प्रातः सायं शौच कर्म के बाद थूक में या जल में घिसकर मस्सो पर लेप करने से कुछ ही दिनों में वह सूखकर गिर जाते है।
  4. शौच जाने के बाद आक के दो चार ताजे पत्ते तोडकर गुदा पर इस प्रकार रगड़े कि मस्सो पर दूध ना लगे, केवल सफेदी ही लगे। इससे मस्सों में लाभ होता है।

उपदंश को ठीक करने में आक का प्रयोग  :

  1. श्वेत अर्क की छाया शुष्क मूल छाल का 1 से 2 ग्राम चूर्ण दो चम्मच शक्कर के साथ सुबह-शाम सेवन करने से उपदंश और रक्त कुष्ठ में लाभ होता है।
  2. इसके 8-10 पत्तों को आधा किलो पानी में पकाकर चतुर्थांश शेष क्वाथ से उपदंश के ब्राण धोयें। छाल को पानी में पीसकर लगाना चाहिये व 2-3 ग्राम छाल का सेवन करना चाहिये। इससे उपदंश में आशातीत लाभ होता है।
  3. मलमल के डेढ फुट लम्बे और 4 अंगुल चौड़े कपड़े को आक के दूध में 21 बार भिगोकर सुखा लें। फिर इसको मिट्टी के बरतन में रखकर भस्म बना लें। तीन चावल बराबर भस्म को पान में रखकर देने से सात दिन में लाभ होता है। मिर्च मसाले से परहेज रखे और घी का अधिक सेवन करें।
  4. अर्कमूल की छाल 1 भाग, काली मिर्च आधा भाग, इन दोनों को महीन पीसकर 10 भाग मिला चने जैसी गोलियाँ बनाकर रख लें। रोगी को पहले जुलाब देकर 1 या दो गोली पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करावें।
  5. छाया शुष्क अर्कमूल त्वक के चूर्ण में समभाग खांड मिलाकर रखे, 1 से 2 ग्राम तक ताजे जल के साथ सेवन करावें।
  6. आक की छाल तथा आक की कोंपले या छोटी-छोटी कोमल पत्तियाँ 50-50 ग्राम इन दोनों को 200 ग्राम आक के दुग्ध में पीसकर गोला बनाकर मिट्टी के पात्र में मुंह बन्दकर रखकर 5 कि.ग्रा. कंडों की आंच में फूंक कर भस्म बना लें। अब निकाल कर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर एक-दो गोली पानी के साथ लेने से भगंदर व नासूर में लाभ होता है।
  7. लाल आक की जड़ की छाल 2 भाग तथा सत्यानाशी की जड़ की छाल और अपामार्ग मूल छाल 1½ भाग चूर्ण कर धूम्रपान विधि के अनुसार पीने से उपदंश में लाभ होता है।

योनि रोग को ठीक करने में आक का महत्त्व 

  1. योनि सुदृढ़ करने के लिए आक की जड़ के चूर्ण को भांगर के रस में 2-3 बार अच्छी तरह खरल करके मटर के बराबर गोलियां बनाकर 1-1 गोली सुबह-शाम गर्म पानी या दूध साथ सेवन करने से योनि सुदृढ़ होती है इससे मासिक धर्म भी ठीक होने लगता है। पर जिन्हें रक्त प्रदर हो उन्हें सेवन नहीं करना चाहिए।
  2. कफ दूषित योनि हो तो उड़द के 100 ग्राम आटे में योद्ध सैंधा नमक मिलाकर उसमें आक के दूध की सात भावनाये देकर छोटी-छोटी बत्तियां बना लें। इसका प्रयोग योनिमार्ग में करें, तथा उचित मात्रा में जल के साथ सेवन करें। इससे निश्चित ही लाभ होगा।

बाँझपन को दूर करने में आक के पेड़ की प्रयोग बिधि :-

  1. सफेद आक की छाया में सूखी जड़ को महीन पीस, 1-2 8 ग्राम की मात्रा में 250 ग्राम गाय के दूध के साथ सेवन करावे। शीतल पदार्थों का पथ्य देवें। इससे बन्द ट्यूब व नाडियां खुलती हैं. व मासिक धर्म व गर्भाशय की गांठों में भी लाभ होता है।

पैरों के छाले को ठीक करने में आक का महत्त्व  :-

  1. पैदल यात्रा करने से जो छाले आदि हो जाते है. इसके दूध को लगाने मात्र से दूर हो जाते है।

पैरों के फोड़े को ठीक करने में आक का महत्त्व  :-

  1. एक ईंट को गरम करके उस पर 6-7 आक के पत्ते रखकर पैर को सेंकने से पैर के फोड़े नष्ट हो जाते है।

पार्श्व शूल को ठीक करने में आक का महत्त्व  :-

  1. आक के दूध में थोड़े से काले तिलों को खूब खरल कर जब पतला सा लेप सा हो जाये तो उसे गरम कर पसली के दर्द पर लेप कर दें और ऊपर से आक के पत्तों पर तिल का तेल चुपड़ कर तवे पर गरम कर उस स्थान पर पट्टी से बांधने पर शीघ्र लाभ होता है।

गठिया या आमवात पर :-

  1. आक का फूल, सौंठ, काली मिर्च, हल्दी व नागरमोथा समभाग लें। इन्हें जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियों बना लें। 2-2 गोली प्रातः-साथ जल के साथ सेवन करें।
  2. आक के 2-4 पत्तों को कूटकर पोटली बना, घी लगाकर दे पर गरम कर सेंक करें रोकने के पश्चात् आक के पत्तों पर घी चुपड़कर गरम कर बांध दें।

उरु स्तम्भ होने पर :-

  1. आक की जड़ को घिस कर लेप करने से उरु स्तम्भ ठीक हो जाता है 

लकवा हों पर करे अर्क की औषधि का उपयोग :-

  1. आक (मोटी कूटी हुई) की आधा किलोग्राम जड़ों को 4 किलो ग्राम पानी में पकायें, एक किलो पानी शेष रहने पर छान लें। उसमें समभाग मिश्री तथा 6-6 ग्राम पीपल, वंश लोचन, इलायची, काली मिर्च और मुलेठी का चूर्ण मिलाकर मंद आंच पर शरबत तैयार कर लें। मात्रा 1-2 ग्राम तक यह कास श्वास, कफ, वातरोग, हाथ-पैर का दर्द, उदर रोग और लकवे को भी दूर करता है।

वात पीड़ा को दूर करे आक :-

  1. आक की जड़ की छाल 1 भाग काली मिर्च, कुटकी और काला नमक 1-1 ग्राम सबको मिलाकर जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियाँ बना लें। किसी भी अंग में वातजन्य पीड़ा हो तो प्रातः सायं 1-1 गोली उष्ण जल के साथ सेवन करें।
  2. आक की एक किलो जड़ों (छाया में सुखाई हुई) को जी कूटकर 8 किलो जल में पकायें दो किलोग्राम शेष रहने पर उसमें 1 किलो एरण्ड तैल मिलाकर पकायें। तैल मात्र शेष रहने पर छानकर शीशी में भरकर रख लें, इसकी मालिश से भी शीघ्र लाभ होता हैं।
  3. वात रोगी को आक की रूई से भरे वस्त्र पहनने तथा इसकी रूई की रजाई व तोसक में सोने से बहुत लाभ होता है। वात व्याधि वाले एकांग स्थान पर वायुनाशक तेल की मालिस कर ऊपर से इस रूई को बांधने से बहुत लाभ होता है।

वातंगुल्म :- 

  1. आक के पुष्पों की कलियों 20 ग्राम, अजवायन 20 ग्राम इन दोनों को खूब महीन पीस उसमें 50 ग्राम खांड मिलाकर रखे, 1-1 ग्राम तक प्रातः-सायं जल के साथ सेवन करें।

व्रण :- 

  1. व्रण और रक्तस्राव पर आक की रूई बहुत लाभकारी है। जो क्षत या व्रण दुःसाध्य हो, अर्थात किसी भी प्रकार से न भरता हो, उसमें इस रूई को रखकर बांध देना चाहिये, तथा प्रतिदिन व्रण को साफ कर रूई को बदलते रहने से थोड़े ही दिनों में वह भर जाता है। जिस क्षत से खून बह रहा हो, उस पर इस रूई को रखकर बांध देने से शीघ्र ही रक्तस्राव रूक जाता है। ताजी रुई शीघ्र लाभकारी होती है।

दाद होने पर करें आक के पेड़ से उपाय :-

  1. आक के दूध में समभाग शहद मिलाकर लगाने से दाद शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
  2. आक की जड़ 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच दही में पीसकर लगाते रहने से भी दाद में लाभ होता है।

खाज या पामा या छाजन होने पर करें आक के पेड़ से उपाय :- 

  1. आका पुष्प गुच्छ तोड़ने पर जो दूध निकलता है उसमें नारियल का तेल मिलाकर लगाने से खुजली शीघ्र दूर होती है। पामा, उकवत, छाजन तो इसे दूर से ही नमस्कार करती है।
  2. आक का दूध 100 ग्राम तिल या सरसों का तेल 400 ग्राम, हल्दी चूर्ण 200 ग्राम, और मैनसिल 15 ग्राम लें। प्रथम मैनसिल और हल्दी को खरल कर लें, फिर दूध मिलाकर लेप सा बना ले। अब इसमें तैल और 2 किलो जल मिलाकर तैल सिद्ध कर ले, इस तैल के लगाने से खाज, खुजली, पामा आदि चर्म रोग दूर होते हैं. अर्श के मस्सो पर बराबर लगाने से वे सूखकर झड़ जाते हैं।
  3. आक के पत्रों का रस 1 किलो हल्दी चूर्ण 50 ग्राम और सरसों तेल आधा किलो मंद अग्नि पर पकायें। तेल मात्र शेष रहने पर छान कर शीशी में भर लें। इसकी मालिश से खाज, खुजली आदि नष्ट होते है। 2-4 बूंद कान में टपकाने से कर्णशूल मिटता है।
  4. आक के ताजे पत्तों का रस 1 कि.ग्राम, गाय का दूध 2 कि.ग्रा., सफेद चन्दन, लाल चन्दन, हल्दी, सौंठ और सफेद जीरा 6-6 ग्राम इनका कल्क कर 1 कि. ग्रा. घी में पकायें। घी मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें। मालिश करने से खुजली खाज आदि में लाभ होता है।
  5. 10 ग्राम आक के दूध को 50 ग्राम सरसों के तेल में पकायें। तेल मात्र शेष रहने पर या दूध के जल जाने पर सुरक्षित रख लें। इस तेल की दिन में 2 बार मालिश करे, और तीन घंटे तक न करें। कुछ दिनों में ही पूर्ण लाभ होता है।
  6. आक का दूध ताजा, व सुखाया हुआ भाग 100 बार जल से धोया हुआ गाय का मक्खन खूब खरल करके मालिश करें व 2 घंटे तक शीत जल व शीत वायु से रोगी को बचाये रखें।
  7. आक के 21 पत्ते 125 ग्राम सरसों के तेल में जलाकर फिर उसमें थोड़ा मैनसिल पोट कर रख लें। इसकी मालिश से भी उत्तम लाभ होता है।
  8. इसका दूध छाया में सुखाकर व कड़वे तैल में मिलाकर जलाकर मालिश करने से खुजली आदि में लाभ होता है।

जख्म को जल्दी भरने में मदद करे आक :-

  1. इसके 4-5 पत्रों को सुखाकर उनको कूट-छानकर खराब जख्मों पर बुरकने से दूषित मांस दूर होकर स्वस्थ मांस पैदा होता है।
  2. श्वेत मदार की 5 ग्राम जड़ को 20 ग्राम नीबू के रस में लोहे की कुदाल पर घिसकर क्षत पर लेप कर देने से सैकड़ों योगो से असाध्य क्षत का भी रोपण हो जाता है।
  3. आक की जड़ों के पास की गीली मिट्टी लाकर टिकिया बनाकर, अत्यन्त वेदनायुक्त तथा कीड़े पड़े हुये जख्म पर बांध देने से अन्दर के कीड़े ऊपर टिकिया के भीतर आकर मर जाते है और जख्म धीरे-धीरे अच्छे हो जाते हैं पशुओं पर यह प्रयोग अनेकों बार सफल हुआ है।

श्लीपद

  1. अर्कमूल की छाल 10 ग्राम, त्रिफला चूर्ण 10 ग्राम, एक साथ आधा किलो जल में अष्टमांस क्वाथ सिद्ध कर प्रतिदिन प्रातः बंद ग्रन्थि पर
  2. आक के दूध में सफेद उशारेबन्द थोड़ा-थोड़ा मिला दिन में 2-3 बार लेप करते रहने से 3-4 दिन में कच्ची गांठ बैठ जाती है।
  3. आक के 2-2 पत्तों पर एरंड तेल चुपड़कर गरम कर बांधने से बंद गन्धि बैठ जाती है, या फट जाती है।

नारू

  1. नारू आक के कोमल पत्र 7 नग और गुड़ 50 ग्राम दोनो को कूट कर जंगली बेर जैसी गोलियाँ बना लें। 1-1 गोली करके दिन में तीन बार पानी के साथ सेवन करायें।
  2. आक के 8-10 फूलों को पीस पुल्टिस बना बांधने से या दूध का लेप करने से नहरूवा निकल जाता है।

अग्नि दगा व्रण पर आक के प्रयोग :-

  1. आक की 3 ग्राम जलाई हुई रूई को 10 ग्राम तिल्ली तेल में खरल कर 10 ग्राम निथरे हुये चूने के पानी में मिला दें। इसको दग्ध स्थान पर रखें, या कपड़ा तर कर रखें। यदि व्रण में सूजन आ गई हो तो उक्त मिश्रण में 250 मिलीग्राम अफीम घोल कर पिला दें।
  2. आक की जली हुई रूई बुरकने से भी लाभ होता है।

कुष्ठ रोग को जड़ से ख़तम करता है आक :-

  1. आक की सूखी हुई जड़ 2 ग्राम यद् कूट कर 400 ग्राम जल में पकाकर 50 ग्राम शेष रहने पर सेवन करने से गलित कुष्ठ की पूर्वावस्था में जबकि हाथ पैरो की अंगुलियाँ मोटी हो गई हो, कानो की बालियों बडोल, नासिका का अग्रभाग लाल रंग, क्षत शरीर के किसी भी भाग में हो और वे ठीक न हो तब लाभकारी है।
  2. आक का दूध 125 से 375 मि. ग्रा. की मात्रा में नित्य शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करें।
  3. आक के छाया शुष्क मूल त्वक का चूर्ण 250 मिलीग्राम, शुंठी चूर्ण 250 मिलीग्राम शहद के साथ नित्य तीन बार सेवन कराये, साथ ही छाल को सिरके में पीसकर पतला-पतला लेप करते रहे, यह प्रयोग लम्बे समय तक करें।
  4. आक के छाया शुष्क पुष्पों का महीन चूर्ण बनाकर आधा ग्राम सुबह-शाम वाजे जल से सेवन करने से कुष्ठ में लाभ होता है। कोमल प्रकृति वालों को इसकी मात्रा कम लेनी चाहिए।
  5. आक के 10-20 फलों को बिना अग्नि में तपाये हुये मिट्टी के बरतन में भरकर, मुँह बन्द कर उपलो की आग में फूंक दें। ठंडा होने पर अन्दर से भस्म को निकाल कर सरसों के तेल में मिलाकर लगायें यह गलित कुष्ठ की प्रथम अवस्था में उपयोगी है।

कपाल कुष्ठ को भी ठीक करे आक :-

  1. आक के क्षार को गन्ना के रस के साथ मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।

श्वेतकुष्ठ को भी ठीक करे आक :-

  1. आक के 20 मिलीलीटर दूध के साथ 5 ग्राम बावची और आधा ग्राम हरताल के चूर्ण को पीस कर लेप करें।

उदरशूल को जड़ से ठीक करे आक:-

  1. आक की छाया शुष्क मूलत्वक के महीन चूर्ण में समभाग त्रिफला, सेंधा नमक व महीन सौंफ चूर्ण मिलाकर 1 ग्राम की मात्रा में 2-3 बार जल के साथ सेवन करें।
  2. आक के फूलों को सुखाकर चूर्णकर आक के पत्र स्वरस में तीन दिन खरल कर अजवायन, सौंफ, बराबर मात्रा में मिलाकर चने जैसी गोलियाँ बना लें, 2 गोली गरम जल के साथ निगलने से कठिन से कठिन उदर शूल छूमन्तर हो जाता है यदि आराम न हो तो 2 गोलियाँ और दें।
  3. आक के शुष्क पुष्प 100 ग्राम और जड़ की छाल 50 ग्राम दोनों को खूब महीन पीस आक के पत्तों का रस मिला और खरल कर 65 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें। 1 से 4 गोलीर सौंफ के अर्क या गरम जल के साथ सेवन करने से उदरशूल एवं वात सम्बन्धी रोग नष्ट होते हैं।
  4. अर्क पुष्प की लौंग 125 मिलीग्राम और मिश्री 25 ग्राम दोनो को महीन पीस एक गोली बना गरम जल से निगल लेने से उदर शूल बन्द हो जाता है।
  5. पुराना अपचन या अजीर्ण रोग हो, दूषित डकारें आती हो, उदर में भारीपन हो, भोजन में अरूचि हो मलावरोध हो तो आक लवण का 250 से 500 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन लाभदायक है। आक के पत्तों में समान भाग सैंधा नमक मिला, दोनों को मिट्टी के बरतन में भर मुख बन्द कर ऊपर से कपड़ मिट्टी कर आग में फूक दें। ठंडा होने पर अन्दर की औषधि को शीशी में भरकर रख लें। 250 मिलीग्राम से 1 ग्राम की मात्रा में सेवन करावें, गुल्म प्लीहा आदि उदर रोग नाशक है।
  6. आक की जड़ की ताजी छाल और अदरक 1-1 ग्राम काली मिर्च और सैंधा नमक आधा-आधा भाग सबको महीन पीस मटर जैसी गोलियाँ बना. छाया शुष्क करके 1 या दो गोली अर्क पुदीना के साथ दें।
  7. पेट में जहां तीव्र वेदना हो, उस स्थान पर आक के 2-3 पत्तों पर पुराना घी चुपड और गर्म कर रखे और थोड़ी देर के लिये वस्त्र से बांध देवें।

संवेदन शून्यता (सूनापन) :

  1. आक के 8-10 पत्रों को 250 ग्राम तेल में तलकर तेल की मालिश करने से अंग के सूनापन में लाभ होता है।
  2. आक के दूध को कांच या चीनी के पात्र में रख, उसमें माल कांगनी का तेल मिलाकर मालिश करने से अर्धागवात, अर्दित, सूनापन आदि में विशेष लाभ होता है।

ज्वर (बुखार )को ठीक करता है आक:-

  1. आक की नई कोपल डेढ़ नग, आक के पुष्प की बन्द कली नग दोनों को गुड़ में लपेट गोली बना, ज्वर वेग के 2 घंटे सेवन कराने से ज्वर वेग रूक जाता है।
  2. छाया शुष्क अर्क मूल छाल का महीन चूर्ण 2 भाग और काली मिर्च का चूर्ण 1 भाग दोनों को गाय के दूध या बड़ के दूध में खरल कर चने जैसी गोलियाँ बना रखें, ज्वर वेग से एक डेढ़ घंटा पूर्व 1 या दो गोली पानी से खिलायें।
  3. आक का दूध 1 भाग और मिश्री 10 भाग दोनों को 12 घंटे खरल कर शीशी में भर कर रखें. 65 मिलीग्राम से 250 मि.ग्रा. तक उष्ण जल के साथ सेवन करने से लाभ होता है। यह मलेरिया ज्वर के लिये कुनैन से भी बढ़कर लाभकारी हैं। इससे ज्वर की बारी रूकती है तथा चढ़ा हुआ ज्वर उतरता है।
  4. आक मूल छाल की भस्म 1 भाग, शक्कर 6 भाग दोनो को भली प्रकार खरल करें। ज्वर वेग से 2 पूर्व 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक ताजे जल के साथ सेवन करें।
  5. आक के पीले पत्तों को कोयलों आग पर जला भस्म करें, यह भाग 500 मिलीग्राम शहद के साथ चटायें।
  6. आक का दूध 4 बूंद, कच्चे पपीते का रस 10 बूंद और चिरायते का रस 15 बूंद मिश्रण को दिन में 3 बार गौमूत्र से सेवन करने पर 3 दिन में ही बिगड़ा हुआ मलेरिया ठीक हो जाता है।

प्लीहा आदि यकृत रोगों पर :-

  1. आक का पत्ता एक इंच चौकोर महीन कतरकर 50 ग्राम जल में पकायें। जब आधा जल शेष रह जाने पर उसमें सैंधा नमक 125 मि०ग्रा० मिला, तीन वर्ष तक के बालक को 7 दिन तक पिलायें। पथ्य में खिचड़ी चावल, छाछ, कांजी, यूष आदि दें।

डब्बा रोग  पर :-

  1. अर्क पत्र का रस 10 बूंद तक उसमें 30 मिलीग्राम सैंधा नमक मिला पिला देने से उल्टी-दस्त होकर बालकों का डब्बा रोग शीघ्र शांत हो जाता है। पेट में अफारा हो तो गर्म तेल लगाकर आक पत्र से सैंक देवें।
  2. छोटे बच्चों को जिन्हें कफ, सर्दी ज्यादा हो जाये और कोई भी दवा न दी जा सकें (शिशु इतना छोटा हो), तब आक रुई से भरे गद्दे तकिये पर लिटाने से ही बालको का सर्दी जुकाम दूर हो जाता है।

ततैया :

  1. आक के पत्रों के पीछे जो खार की तरह सफेदी जमी होती है, उस पर मैदा या आटे की लोई घुमाकर उतार लें, तथा लोई की काली मिर्च जैसी गोलियाँ बना लें। प्रातः सायं 1-1 गोली निगलवा कर निराहार 15 दिन तक थोड़ा घी और शक्कर खिलायें।
  2. अर्कमूल के 400 मिलीग्राम छाल चूर्ण में, 2 ग्राम गुड़ मिला प्रातः सायं 40 दिन तक सेवन करायें। प्रत्येक आठवें दिन जुलाब देते रहें तैल खटाई आदि वातकारक पदार्थों से परहेज करें।

स्थावर विषों पर :- 

  1. 2-3 ग्राम आक की जड़ को शीतल जल के घिसकर में 3-4 बार पिलायें।

पारे के विष को दूर करता है आक :-

  1. आक की लकड़ी का कोयला समभाग मिश्री के साथ पीसकर 6 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से शरीर में रूका हुआ कच्चा पारा पेशाब के रास्ते निकल जाता है।

अर्कमूल चूर्ण बनाने की विधि:-

  1. बालू रेत में पैदा हुये पुराने अर्क की जड़ चैत्र वैशाख में लें, उसे जल से भली-भांति स्वच्छ कर छाया में इतनी देर पड़ी रहने दें कि उसमें चीरा देने से दूध निकलना बन्द हो जाये। अब इसके ऊपर के छिलके को चाकू से खुरचकर अन्तर छाल को छाया में सुखा, महीन चूर्ण बनाकर शीशियों में भरकर रखना चाहिये तथा ज्वर के वेग के रोकने के लिये तीनों प्रकार के कुष्ठ, उपदंश, अतिसार, रक्त अतिसार, आम अतिसार, पुरानी गठियाँ, चर्म रोग, कफ, जलोदर, सर्वांग शोथ और प्रारम्भ के फोड़ों को मिटाने के लिये इस चूर्ण का प्रयोग करना चाहिये। 

आक के पोधे से होने वाली हानि:-

  1.  आक का पौधा विषैला होता है। इसके दूध का अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी-दस्त होकर मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। अतः इसका उपयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिये। 

सावधानी :- 

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