ब्राह्मी खाने के फायदे और प्रयोग विधि
याददाश्त को बड़ाने वाली औषधी :- ब्राह्मी
ब्राह्मी एक औषधीय पौधा है जो की बेल के रूप में पाई जाती है जो भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियाँ मुलामय, गूदेदार और फूल सफेद होते है।![]() |
ब्राह्मी का पौधा |
ब्राह्मी के सोमवल्लभी, महौषधि, स्वायम्भुवी, सुरश्रेष्ठा,सरस्वती, सोम्यलता, दिव्या, शारदा तथा सोमवल्ली आदि कई नाम है । यह सामान्यतया गीली एवं तर जमीन में पैदा होती है। ब्राह्मी वनस्पति वैसे तो सारे भारतवर्ष में जलाशयों किनारे पर पैदा होती है; पर हरिद्वार से लेकर बद्रीनाथ मार्ग पर बहुत बड़ी तादाद में पायी जाती है । ब्राह्मी के पौधे रस कड़वा होता है।
ब्राह्मी के गुण-दोष एवं प्रभाव
आयुर्वेद के मतानुसार
ब्राह्मी शीतल, सारक, हलकी, कसैली, मधुर, स्वादुपाकी, आयुवर्धक, स्वर को उत्तम करने वाली, स्मरणशक्ति बढ़ाने वाली तथा कुष्ठ, पाण्डु, प्रमेह, रुधिर विकार, खाँसी, विष, सूजन और ज्वर रुधिर-विकार, हरने वाली है। इसके अतिरिक्त यह कण्ठशोधक, हृदय के लिये हितकारी, वात, रक्त-पित्त एवं अरुचि को भी दूर करने वाली है।
इन्हें भी देखें - pipal ka ped
ब्राह्मी से मस्तिष्क-सम्बन्धी रोग का समाधान
ब्राह्मी की मुख्य क्रिया मस्तिष्क और मज्जा- तन्तुओं के ऊपर होती है। यह मस्तिष्क को शक्ति देती है और उसके लिये एक पौष्टिक वस्तु का काम करती है । इस गुण के कारण ब्राह्मी मस्तिष्क और मज्जा- तन्तुओं के रोगों में विशेष रूप से दी जाती है। उन्माद और अपस्मार के रोगों में भी यही बात होती है। इसलिये इनमें भी ब्राह्मी का प्रयोग होता है। सिर्फ नवीन एवं जोरदार रोगों में ब्राह्मी नहीं देनी चाहिये; क्योंकि इसके अंदर कुछ उत्तेजित करने का धर्म रहता है और तीव्र रोगों में उत्तेजक औषधि देने से रोग बढ़ जाता है। इसलिये नवीन और तीव्र उन्माद में तीव्र रोचक वस्तु देकर उसके पश्चात् खुरासानी अजवायन के समान कोई शामक वस्तु देनी चाहिये। उन्माद और अपस्मार के पुराने होने पर उसमें एक ओर मस्तिष्क को पुष्ट करने वाली औषधियों की जरूरत होती है और दूसरी ओर कुछ उत्तेजक औषधि को देने की आवश्यकता होती है । इसलिये ऐसे रोगों में ब्राह्मी देने से अच्छा लाभ होता है ।
ब्राह्मीके अंदर कुछ क़ब्जियत पैदा करने का दोष भी रहता है। इसलिये इसके साथ कुछ हलकी मृदु विरेचक औषध देना उपयोगी होता है। प्राचीन ग्रन्थों में इसके साथ शंखपुष्पी देने का विधान दिया गया है।
यह ब्राह्मी के अंदर एक प्रकार का उड़नशील तेल रहता है । वही इसके गुणों का आधार है। आँच की गर्मी से तेल उड़ जाता है। इसलिये ब्राह्मी को धूप में नहीं सुखाना चाहिये। इसका प्रयोग विशेष रूप से बिना आँच पर तपाये करना चाहिये ।
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