बेल पत्र का मानव जीवन में उपयोग, लाभ व फायदे
बिल्व या बेल पत्र का महत्व और स्वास्थ्य रक्षा में उपयोग( Benefits of Bilva Patra):-
बिल वृक्ष या बेलपत्र या बेल का पौधा प्राय धार्मिक स्थान विशेष कर भगवान शंकर के उपासना स्थलों पर लगाने की भारत में एक प्राचीन परंपराएं है
यह यह वृक्ष अधिक बड़ा न होकर मध्यम आकार वाला होता है शाखों पर अधिक कांटे होते हैं पेट तीन-तीन या कभी-कभी पांच-पांच की गुच्चो में लगते हैं बेल का फूल सफेद तथा सुगंध पूर्ण होता है फल गोलाकार कड़े आवरण वाला स्वादिष्ट मधुर और हृदय को प्रिय लगने वाली सुगंध लिए होता है गुदे में सैकड़ो बीज गोंद में लिपटे हुए रहते हैं
बसंत ऋतु के अंत में पुराने पत्ते गिर के नए आने लगते हैं ग्रीष्म ऋतु में तो यह वृक्ष हरे हरे पत्ते एवं फलों से भर उठता है देश के सभी प्रांत में मिलने वाला यह बिल कोई अपरिचित वस्तु नहीं है
बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध यह फल बहुत ही उपयोगी है। सामान्य रूप से इसे 'बेल' नाम से जाना जाता है ।
यह यह वृक्ष अधिक बड़ा न होकर मध्यम आकार वाला होता है शाखों पर अधिक कांटे होते हैं पेट तीन-तीन या कभी-कभी पांच-पांच की गुच्चो में लगते हैं बेल का फूल सफेद तथा सुगंध पूर्ण होता है फल गोलाकार कड़े आवरण वाला स्वादिष्ट मधुर और हृदय को प्रिय लगने वाली सुगंध लिए होता है गुदे में सैकड़ो बीज गोंद में लिपटे हुए रहते हैं
बसंत ऋतु के अंत में पुराने पत्ते गिर के नए आने लगते हैं ग्रीष्म ऋतु में तो यह वृक्ष हरे हरे पत्ते एवं फलों से भर उठता है देश के सभी प्रांत में मिलने वाला यह बिल कोई अपरिचित वस्तु नहीं है
बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध यह फल बहुत ही उपयोगी है। सामान्य रूप से इसे 'बेल' नाम से जाना जाता है ।
आयुर्वेद के निघण्टु ग्रन्थों में इसकी विशेषताओं को लेकर अनेक नाम बताये गये हैं । धन्वतरि - निघण्टु में बिल्व, शलाटु, शाण्डिल्य, हृद्यगन्ध, शैलूष, वातसार तथा पअरिभेद आदि सत्रह नाम इसके लिये आये हैं। इसका वृक्ष शिवद्रुम भी कहलाता है।
बेल के पत्ते शंकरजी का आहार माने गये हैं,
इसलिये भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से इन्हें महादेव के ऊपर चढ़ाते हैं। शिव की पूजा के लिये बिल्व पत्र आवश्यक माना जाता है। शिव भक्तों का विश्वास है कि पत्तों के त्रिनेत्र स्वरूप तीनों पत्ते शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं। इसके फलों और पके फलों में मीठी सुगन्ध आती है, जो हृदय को भाती है। इसलिये संस्कृत में बिल्व को हृद्यगन्ध भी कहते हैं ।
बेल का फल उपयोगी होने के कारण तथा धार्मिक महत्त्व के कारण यह बगीचों और मन्दिरों में भारत में सब जगह लगाया जाता है।
बाजार में मिलने वाले बिल्व - फलों को दो समूहों में बाँटा जा सकता है।
समृद्धि प्रदान करने वाला वृक्ष :- बेल
बिल्व (बेल) का वृक्ष उर्वरता का प्रतीक, अत्यन्त पवित्र तथा समृद्धि देनेवाला है। तीन पर्णकों (पत्तो) में विभक्त हुए इसके पत्ते (बिल्व पत्र) सत्त्व, रज और तम - इन तीन गुणों से जाग्रत व सुषुप्ति और स्वप्न इन तीनों अवस्थाओं तथा भूत, वर्तमान और भविष्य - इन तीन कालों के प्रतीक माने जाते हैं ।बेल के पत्ते शंकरजी का आहार माने गये हैं,
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बेल पत्ती |
इसलिये भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से इन्हें महादेव के ऊपर चढ़ाते हैं। शिव की पूजा के लिये बिल्व पत्र आवश्यक माना जाता है। शिव भक्तों का विश्वास है कि पत्तों के त्रिनेत्र स्वरूप तीनों पत्ते शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं। इसके फलों और पके फलों में मीठी सुगन्ध आती है, जो हृदय को भाती है। इसलिये संस्कृत में बिल्व को हृद्यगन्ध भी कहते हैं ।
कागजी बेल
बिल्व (बेल) वृक्ष में छोटे-बड़े फल लगते हैं। कुछ फलों का छिलका मोटा तथा कठोर होता है किंतु कुछ फलों के छिलके इतने पतले होते हैं कि हथेलियों के बीच में दबाने से टूट जाते हैं, ऐसे फलों को कागजी बेल कहते हैं। कुछ वृक्षों के फल मनुष्य के सिर के बराबर भी बड़े हो जाते हैं।बेल का फल उपयोगी होने के कारण तथा धार्मिक महत्त्व के कारण यह बगीचों और मन्दिरों में भारत में सब जगह लगाया जाता है।
बाजार में मिलने वाले बिल्व - फलों को दो समूहों में बाँटा जा सकता है।
एक तो वे, जो आकार में छोटे होते हैं और जंगलों में स्वयं पैदा होते हैं।
दूसरे वे, जो बड़े होते हैं और जिन्हें बगीचों में उगाया जाता है।
चिकित्सा क्षेत्र में बेल का महत्त्व - प्रयोजनों में दोनों प्रकार के फल काम आते हैं। फल जब पूर्ण विकसित हो जायँ और पकने लगें, तभी तोड़ लेने चाहिये
बेल का औषधीय महत्त्व बहुत अधिक है और इसके अन्य भी कई उपयोग हैं।
बेल का औषधीय महत्त्व बहुत अधिक है और इसके अन्य भी कई उपयोग हैं।
बेल की छाल से जो गोंद रिसती है, वह बहुत अच्छी होती है। बेल के फूलों की चाय स्वादिष्ठ होती है। श्रीलङ्का में इसके चाय का बड़ा प्रचलन है। वहाँ इसके फूलों से बनी चाय को बेलिमल कहा जाता है।
बेल के पत्ते चारे के रूप में काम आते हैं। ऊँटों को ये खूब खिलाये जाते हैं। ऊँट-पालक चैत्र में अपने ऊँटों को इसके फल खिलाते हैं। इससे उनकी बीमारियाँ भी दूर हो जाती हैं।
बेल का वृक्ष पवित्र होने से इसकी लकड़ी की उपमा चन्दन से की जाती है। इसके फूलों से मधुर - गन्ध युक्त अर्क खींचा जाता है। कपड़ों को धोने के लिये साबुन के प्रतिनिधि के रूपमें इसका गूदा काम में लिया जाता है, क्योंकि इसमें अपक्षालक गुण होते हैं
हमारे देश में शीशियों के प्रचलन से पूर्व वैद्य, हकीम और पंसारी बेल के सूखे फलों में दवाएँ रखते थे । वृन्त के जिस स्थान से फल अलग होता है, उस जगह से छिद्र करके किसी कील की सहायता से अंदर का गूदा निकाल कर साफ कर लिया जाता था । वर्तमान समय में भी कुछ लोग बड़े फलों को दो भाग करके उसका गूदा निकालकर कटोरे नुमा छिलके को साफ करके सुखा लेते हैं और बाद में पानी पीने के बर्तन के रूप में उसका उपयोग करते हैं। इसे बहुत पवित्र माना जाता है।
इसे भी देखें - ब्राह्मी खाने के फायदे
चिकित्सा की भारतीय पद्धतियों में बेल के अनेक भाग काम आते हैं। आयुर्वेद के प्रसिद्ध द्रव्य दशमूलक अङ्गके रूपमें यह बहुत विस्तृतरूप से प्रयोग किया जाता है ।
शर्बत
पके हुए बिल्व के गूदे को पानी में हाथ से मसल कर घोल बना लें। फिर उसे छानकर बीज और रेशे फेंक दें। यह शर्बत बन जाता है। यह आहार और स्वास्थ्यबीकी दृष्टि से उत्तम होता है। इसमें स्वयं मिठास रहती है । कुछ लोग इसमें जरा-सी सोंठ और काली मिर्च का चूर्ण भी बुरक लेते हैं। पानी के स्थान पर अनेक लोग इसमें दूध या दही मिलाते हैं। दही मिलाकर बनाया गया शर्बत पेट के रोगियों के लिये लाभदायक माना जाता है। ग्रीष्म की तपन को मिटाने तथा शीतलता, ऊर्जा एवं स्निग्धता प्रदान करने में बेल का शर्बत बहुत ही उपयोगी हैचिकित्सा की भारतीय पद्धतियों में बेल के अनेक भाग काम आते हैं। आयुर्वेद के प्रसिद्ध द्रव्य दशमूलक अङ्गके रूपमें यह बहुत विस्तृतरूप से प्रयोग किया जाता है ।
- पुराने दस्तों में तो यह विशेषरूप से उपयोगी समझा जाता है। इसे खण्ड-खण्ड काटकर मुरब्बा भी बनाया जाता है ।
- दस्त और पेचिश (प्रवाहिका) में वैद्य इसे बहुत यह हितकर मानते हैं।
- पका फल मधुर, सुगन्धित और शीतल होता है। ताजा लिया जाय तो यह अनुलोमक होता है ।
- पके फल का गूदा सुखा लिया जाय तो हलके नारंगी वर्ण का बन जाता है । पानी में इसे घोलें तो यह स्वादिष्ठ नारंगी वर्ण का शर्बत बन जाता है, जिसमें मृदु ग्राही गुण होते हैं।
- पके फल का छिलका ग्राही है और चिकित्सा में काम आता है
आयुर्वेद चिकित्सा ग्रन्थों में कच्चे और पके बिल्व फल के अलग- अलग गुण धर्म बताये गये हैं। बिल्व के अन्य भागों के गुणों का भी विस्तार से वहाँ वर्णन किया गया है।
कच्चे फल के गुण - बिल्व का कच्चा फल गुण में स्निग्ध, संग्राही, दीपन, कटु, तिक्तकषाय, उष्ण, तीक्ष्ण एवं वात तथा कफ को दूर करने वाला है । यह मल को बाँधता है, कषैला और गर्म है । चरपरा, पाचन, चिकना और हृदय के लिये हितकर है।
पके फल के गुण - बिल्व का पका फल मधुर, अनुरस, गुरु, विदारि, विष्टम्भकर, दोषहर, तिक्त - कषाय रसवाला एवं उष्णग्राही होता है । यह वीर्यवर्धक, भारी तथा देर से पचने वाला है। अग्नि को मन्द करता है
विदाही, दुर्जर तथा ग्राही होता है । उष्णवीर्य, लघु तथा रूक्ष है
बिल्व के सामान्य गुण
बिल्व मधुर कषाय रसयुक्त, गुरु, हृदय को बल देने वाला तथा पित्त को जीतने वाला है। यह कफ-विकार, ज्वर तथा अतिसार का नाश करने वाला है और रुचिकारक तथा जठराग्निदीपक है
कच्चे फल के गुण - बिल्व का कच्चा फल गुण में स्निग्ध, संग्राही, दीपन, कटु, तिक्तकषाय, उष्ण, तीक्ष्ण एवं वात तथा कफ को दूर करने वाला है । यह मल को बाँधता है, कषैला और गर्म है । चरपरा, पाचन, चिकना और हृदय के लिये हितकर है।
पके फल के गुण - बिल्व का पका फल मधुर, अनुरस, गुरु, विदारि, विष्टम्भकर, दोषहर, तिक्त - कषाय रसवाला एवं उष्णग्राही होता है । यह वीर्यवर्धक, भारी तथा देर से पचने वाला है। अग्नि को मन्द करता है
विदाही, दुर्जर तथा ग्राही होता है । उष्णवीर्य, लघु तथा रूक्ष है
बिल्व के सामान्य गुण
बिल्व मधुर कषाय रसयुक्त, गुरु, हृदय को बल देने वाला तथा पित्त को जीतने वाला है। यह कफ-विकार, ज्वर तथा अतिसार का नाश करने वाला है और रुचिकारक तथा जठराग्निदीपक है
बिल्व मूल के गुण - बिल्व का मूल मधुर रस वाला तथा हलका है और त्रिदोष का नाश करता है। वात- रोग को दूर करता है तथा वमन, मूत्र कृच्छ्र एवं शूल को नष्ट करता है
- बिल्व-पत्र के गुण - बिल्वपत्र वातहर एवं संग्राही होता है
- बिल्व-काण्ड के गुण-बिल्व का काण्ड का सहर,आमवातनाशक, हृद्य, रुचिवर्धक तथा दीपन है
- बिल्व पुष्प के गुण - बिल्वपुष्प अतिसार, तृषा एवं वमन में लाभदायक होते हैं
- बिल्व मज्जा तैल के गुण - यह उष्ण, उत्तम तथा वातहर होता है
- काँजी में रखे हुए बिल्व के गुण - यह अग्रिवर्धक, हृद्य, रुचि कारक एवं आम वात को दूर करने वाला होता है
आँतों के रोग
कच्चा हो या पका, दोनों ही रूपों में बेल आतंकि रोगों में अद्भुत लाभ प्रदान करता है। इसमें विद्यमान गोंद आँतों की भीतरी दीवार को चिकना करती है। जिन लोगों की आँतें बहुत रूक्ष रहती हैं, चिर स्थायी मल वन्ध बना रहता है और मल कठोर, रूक्ष तथा गाँठों के रूप में कष्ट से आता हुआ गुदा द्वार में घर्षण करके रुधिर के साथ विसर्जित होता है, उन्हें बेल के सेवन करने से बहुत लाभ होता है । इसी प्रकार जिनकी आँतें शिथिल रहती हैं, शौच पतले दस्तों के रूप में या मरोड़ों के साथ बार-बार आता है, उन्हें भी इसके प्रयोग से लाभ होता है। यह आँतों की तरंग-गति को नियमित करता है, पतले मल को बाँधकर और कठोर मल को मृदु करके लाता है। आँतों के रोगियों को प्रतिदिन एक बेल का फल लेना चाहिये। जिस मौसम में पका फल न मिले, उसमें कच्चे फल को बी (गरम रेत या राख) में भूनकर खाना चाहिये। कच्चे फल की गिरी को धूप में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लेना चाहिये। जिन दिनों कच्चे या पके बेल उपलब्ध न हों, उन दिनों इसी का चूर्ण लेना चाहिये ।
अतिसार और पेचिश (डिसेण्ट्री) में यह अत्यधिक लाभ प्रदान करता है।
- बेल के फलों का ताजा रस कड़वा और चरपरा होता है। इसे पानी के साथ हलका गरम करके जुकाम तथा जुकाम के कारण हो गये हलके बुखार में दिया जाता है।
- बेल की जड़ की छाल का काढ़ा मनोवसाद, विषण्णता और हृदय की धड़कन में दिया जाता है। सविराम ज्वर में जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पिलाया जाता है।
- इसके फल का छिलका केश-तेलों को सुवासित करने के काम आता है।
- बेले के पेड़ की शाखाएँ दातुन के रूप में प्रयुक्त होती हैं।
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