दैनिक जीवन में तुलसी का उपयोग और उसके लाभ व उपयोग करने की विधि

दैनिक जीवन में तुलसी का उपयोग और उसके लाभ व उपयोग करने की विधि(Use of Tulsi in daily life and its benefits and method of use):-


तुलसी का हिंदू-संस्कृति में अत्यधिक धार्मिक महत्त्व है - इस रूप में तुलसी की पूजा की जाती है। तुलसी का हमारे ओषधिशास्त्र से भी अत्यन्त गहरा सम्बन्ध है। लगभग सभी रोगों में अनुपान -भेद और मिश्रण के साथ इसका प्रयोग किया जा सकता है। तुलसी या मकरध्वज आयुर्वेद-जगत् में प्रत्येक रोग में काम आनेवाली ओषधियों में प्रमुख है, जिसकी प्रयोग- विधि जान लेने से वैद्य संसार के लगभग सभी रोगों से लड़ सकता है। 

विष्णु पुराण, ब्रह्मपुराण, स्कन्द पुराण, देवी भागवत आदि के अनुसार - तुलसी की उत्पत्ति की अनेक कथाएँ हैं, पर एक कथा के अनुसार समुद्र मन्थन करते समय जब अमृत निकला था तब कलश को देखकर श्रम की सार्थकता से अभिभूत होकर देवताओं के नेत्रों से अश्रुस्राव हो उठा और उन बूँदों से तुलसी उत्पन्न हुई। तुलसी को अन्ताराष्ट्रिय जगत में ओसिमम सेंक्टम् (Ocimum Sanctum)  के नाम से जाना जाता है, 

तुलसी का महत्त्व 

प्रत्येक हिन्दू के घर-आँगन में तुलसी-क्यारे का होना घर की शोभा, घर के संस्कार, पवित्रता तथा धार्मिकता का अनिवार्य प्रतीक है। मात्र भारत में ही नहीं, विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय तथा शुभ माना गया है। ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में भी तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल - जयन्ती के दिन 'नूतन वर्ष भाग्यशाली हो' – इस भावना से देवल में चढ़ायी गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ घर में ले जाती थीं। समस्त वृक्षों-वनस्पतियोंमें सर्वाधिक धार्मिक, आध्यात्मिक, आरोग्यलक्ष्मी एवं शोभा की दृष्टि से तुलसी को मानव- जीवनमें महत्त्वपूर्ण, पवित्र तथा श्रद्धेय स्थान मिला है।

तुलसी के प्रकार
तुलसी कई प्रकार की होती है - कृष्ण-तुलसी, श्वेत- तुलसी, गन्धा तुलसी, रामातुलसी, वन तुलसी, बिल्वगन्ध-तुलसी, बर्बरी तुलसी के नामो से जानी जाती है।

तुलसी का पेड़ को घर में लगाने का कारण
तुलसी को सर्व रोग-संहारक प्रवृत्ति के कारण ही घर में घरेलू वस्तु की श्रेणी में रखा गया है। इसकी गन्ध से मलेरिया के मच्छर दूर भाग जाते हैं । तुलसी के पौधे में प्रबल विद्युत्- शक्ति होती है, जो पौधे के चारों ओर दो सौ गज तक रहती है। आयुर्वेद के मत से तुलसी का कटु तिक्त रस हृदय ग्राही और पित्तनाशक है। यह कुष्ठ, पथरी, रक्तदोष, पसलियों के दर्द, चर्मरोग, कफ और वायुजनित रोगों का नाश करता है। कृष्ण और शुक्ल दोनों तुलसी के गुण समान है तुलसी की माला  धारण करने से शरीर की विद्युत् शक्ति नष्ट नहीं होती, इसी कारण उसकी माला पहनने का प्रचलन है।
Tulsi ka paudha
तुलसी

तुलसी के महाप्रयोग

तुलसी के अनेक तान्त्रिक प्रयोग हैं। उनमें से प्रमुख ये हैं- यदि किसी ने किसी पर मोहन प्रयोग किया हो तो पीड़ित व्यक्ति को तुलसी-मञ्जरी को घी या शहद में डुबोकर श्री कृष्ण-मन्त्रों से आहुति देनी चाहिये।  

हिंदू-शास्त्रों में लिखा है कि जिनके घर लहलहाता तुलसी का पौधा रहता है, उनके यहाँ वज्रपात नहीं हो सकता अर्थात् जब तुलसी अचानक प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाय, तब समझना चाहिये कि उस पर कोई भारी संकट आनेवाला है। 
अब तुलसी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व भी जान लेना आवश्यक है। अपने घर में तुलसीका पौधा रोपने से तथा उसका दर्शन करने से ब्रह्महत्या जैसे पाप भी नष्ट हो जाते हैं। हजारों आम और पीपल लगाने का जो फल है, वह एक तुलसी को रोपने का है। 
कार्तिकमास में तुलसी की जड़ में जो शाम को दीपक जलाते हैं, उनके घर में श्री और संतान की वृद्धि होती है तथा जो तुलसी की मञ्जरी को श्रावण-भाद्रपद में भगवान् विष्णु को चन्दन सहित अर्पित करते हैं, वे लोग मृत्यु के पश्चात् विष्णुलोक को जाते हैं । 
तुलसी को रोपने तथा उसे दूध से सींचने पर स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । तुलसी की मृत्तिका को माथे पर लगाने से तेजस्विता बढ़ती है। तुलसी - युक्त जल से स्नान करते समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्रेत-बाधा से मुक्ति मिलती है। यह भगवान नारायण को अति प्रिय है 

तुलसी के पत्ते एक माह तक बासी नहीं माने जाते । तुलसी के स्तोत्र, मन्त्र, कवच आदि के पठन और पूजन से भोग एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा समस्त इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। ऐसा 'देवी भागवत पुराण में लिखा है । 'वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपावनी, विश्व पूजिता, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी तथा कृष्ण जीवनी' – इन आठ नामों के जप से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। तुलसी की छाया में श्राद्ध करने से पितरों को अक्षय तृप्ति मिलती है । तुलसी का उपयोग पूजा पाठ में सर्वप्रथम किया जाता है
स्कन्द पुराण एवं पद्म पुराण के उत्तरखण्ड में आता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वह घर तीर्थ के समान है। वहाँ व्याधिरूपी यमदूत प्रवेश ही नहीं कर सकते।

अथर्ववेद के अनुसार - यदि त्वचा, मांस तथा अस्थि में महारोग प्रविष्ट हो गया हो तो उसे श्यामा तुलसी नष्ट कर देती है श्यामा तुलसी सौन्दर्यवर्धक है। इसके सेवन से त्वचा सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और त्वचा पुनः मूल स्वरूप धारण कर लेती है। तुलसी त्वचा के लिये अद्भुत रूप से गुणकारी है।

तुलसी की जड़ कमर में बाँधने से गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव-वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है

तुलसी के पौधे की देखभाल करने के लिये कुछ मुख्य बातें ध्यान में रखनी चाहिये। प्रथम यदि तुलसी दल को तोड़े तो उसकी मञ्जरी और पास के पत्ते तोड़ने चाहिये, जिससे पौधे जल्दी बढ़ता है यही नहीं, मञ्जरी के तोड़ने से पौधा खूब बढ़ता है । 
यदि पत्तों में छेद दिखायी देने लगे तो कंडों की राख का कीटनाशक ओषधियों के रूप में प्रयोग करना चाहिये । 
उबली चाय की पत्ती को धोकर तुलसी की श्रेष्ठ खाद के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
जून, जुलाई, अगस्त - इन महीना में रोपने से तुलसी शीघ्र अंकुरित होती है । 

प्रदूषित वायु के शुद्धिकरण में तुलसी का विलक्षण योगदान है। यदि तुलसीवन के साथ प्राकृतिक चिकित्साकी कुछ पद्धतियाँ जोड़ दी जायँ तो प्राणघातक और दुःसाध्य रोगों को भी निर्मूल करने में सफलता मिल सकती है। तुलसी शारीरिक व्याधियों को तो दूर करती ही है, साथ ही मनुष्य के आन्तरिक भावों और विचारों पर भी कल्याणकारी प्रभाव डालती है । ।

प्राचीन वैध के अनुसार  
तुलसी की प्रयोग विधि और दूर होने वाले रोग

  1.  कैंसर - तुलसी के पौधों में कैंसर जैसी बीमारियों को ठीक करने की क्षमता होती है  तुलसी के पत्ते विषाणुओं को  फैलने से रोकते हैं
  2.  गर्भ निरोध - तुलसी के ताजे पत्तों के निरन्तर सेवन से गर्भ निरोध हो सकता है। 
  3. संक्रामक बीमारी - तुलसी-काष्ट के टुकड़ों की माला पहनने से किसी प्रकार की संक्रामक बीमारी का भय नहीं रहता । 
  4. विष उतरने में - बरें, भौरा, बिच्छू के काटने पर उस स्थान पर तुलसी के पत्ते का रस या पत्ता पीस कर पुलटिस की भाँति बाँध देने से जलन नष्ट हो जाती है।  सर्पदशित (सांप काटने पर ) व्यक्ति की तुलसी के पत्तों का रस पिला देने से विष उत्तर सकता है। 
  5. कुष्ठरोगी, वात-रक्त, मलेरिया - सै पीड़ित व्यक्तियों को एक से सात पत्ते तक निगलने चाहिये।
  6.  स्वप्नदोष - तुलसी की जड़ थोड़ी मात्रा में पान के साथ सेवन करने से वीर्य स्तस्थित होकर स्वप्नदोष की बीमारी नष्ट हो जाती है।
  7.  विष नष्ट - काली तुलसी का रस शरीर से विष नष्ट कर सकता है। 
  8. स्वास्थ में तुलसी की चाय - नित्य कई बार पीना स्वास्थ्य लाभ का प्रतीक है, जबकि सामान्य चाय व्यवहार मै हानि पहुँचाती है । 
  9. कर्णशूल और जुकाम में - तुलसी के पत्तों का रस निकालकर गरम करके ठण्डा होने पर सेवन करने से तुरंत आराम मिलता है।
  10. पेट के कीड़े - मञ्जरी (फूल) - को सुखाकर उसके बीज निकालकर बच्चों को खाना खाने के बाद देना चाहिये, जिससे मुख शुद्धिक साथ-साथ पेट के कृमि भी मर जाते हैं।
  11. हारमोन्स की वृद्धि - मञ्जरी हारमोन्स की वृद्धि भी करती है। इसमें प्रोटीन भारी मात्रा में है । 
  12. चर्म रोग में - तुलसी के पत्तों के रस में नीबू का रस मिलाकर प्रयोग करने से चर्म रोगों में अत्यधिक लाभ पहुँचता है, जो कि गुप्त- चर्म रोगों में विशेष तौर से प्रयोग किया जा सकता है। तुलसी के पत्तों में एक प्रकार की पीली आभा लिये हरे रंग का तेल होता है। कुछ देरतक रख देने से इसमें दाना बनता है। इस का नाम बेसिल कैम्फर (Besil Camphor) है, जो कि ओषधि-उपयोग की वस्तु है, जिसे निर्मित कर और विदेशों में निर्यात कर विदेशी मुद्रा का साधन बनाया जा सकता है।
  13. होमियोपैथी में तुलसी - (Ocimum Sanctum)  से २०० की मात्रा का खूब प्रयोग होता है तथा यह ब्रायोनिया, बैस्टीशिया, जेलसिमियम, पल्सेटिला, रसटॉक्स, सल्फर प्रभृति दवाओं के समकक्ष है।
  14. चर्बी कम व रक्तकणों में वृद्धि - तुलसी की पत्तियों को दही या छाछ के साथ सेवन करने से वजन कम होता है, शरीर की चरबी कम होती है, अतः शरीर सुडौल बनता है। साथ ही थकान मिटती है। दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है और रक्तकणों में वृद्धि होती है।
  15. ब्लडप्रेशर और पाचनतन्त्र - ब्लडप्रेशर और पाचनतन्त्र में के नियमन तथा रक्तकणों की वृद्धि के अतिरिक्त मानसिक रोगों में भी तुलसी के प्रयोग से असाधारण सफल परिणाम प्राप्त हुए हैं ।
  16. मुंह की बदबू - तुलसी हिचकी, खाँसी, विषदोष, श्वास और पार्श्वशूलको तथा वात, कफ और मुँह की दुर्गन्ध को नष्ट करती है।
  17. किडनी रोग में - तुलसी किडनी की कार्य शक्ति में वृद्धि करती है। तुलसी के रस में शहद मिलाकर देने से एक केस में किडनी की पथरी छः माह के निरन्तर उपचार से बाहर निकल गयी थी।
  18. इण्ट्राटेकिप्पल कैंसर से - पीडित एक रोगी पर ऑपरेशन तथा अन्य अनेक उपचार करने के बाद अन्त में आशा छोड़कर डॉक्टरों ने घोषित किया कि रोगी का यकृत् खराब हो रहा है। यक्ष्मा में भी वृद्धि हो रही है । अब यह रोग लाइलाज है। उसी समय एक वैद्य ने उक्त विधान के विरुद्ध चुनौती दी । रोगी को पाँच सप्ताहतक केवल तुलसी का सेवन कराया, फलस्वरूप वह इतना स्वस्थ हो गया कि एक मील तक पैदल चल सकता था।
  19. हृदय रोग से पीडित - कई रोगियों के हाई ब्लडप्रेशर तुलसी के उपचार से सामान्य हुए हैं ।
  20. हृदय की दुर्बलता कम हो - गयी है और रक्त में चर्बी की वृद्धि रुकी है। जिन्हें ऊँचाई वाले स्थानों पर जाने की मनाही थी, ऐसे अनेक रोगी तुलसी के नियमित सेवन के बाद आनन्दपूर्वक ऊँचाई वाले स्थानों पर जाने में समर्थ हुए हैं।
  21.  एक लड़का बचपन से ही मन्द बुद्धि का था । सोलह वर्षों तक उसके अनेक उपचार हुए, किंतु उसकी बौद्धिक मन्दता दूर नहीं हुई। तुलसी के नियमित सेवन से दो ही महीनों के भीतर उसमें बुद्धिमत्ता के लक्षण दिखायी पड़े, समय बीतने पर वह कुछ और अधिक बुद्धिशाली हो गया।
  22. बच्चों को तुलसी पत्र देने के साथ सूर्य नमस्कार करवाने और सूर्य को अर्घ्य दिलवाने के प्रयोग से बुद्धि में विलक्षणता आती है।
  23. सफेद दाग और कुष्ठ - के अनेक रोगियों को तुलसी के उपचार से अद्भुत लाभ हुआ है।
  24. याददाश्त बढ़ाने में  - प्रतिदिन प्रातःकाल खाली पेट पानी के साथ तुलसी की पाँच-सात पत्तियों का सेवन करने से बल, तेज और स्मरणशक्ति बढ़ती है।
  25. ताकत बड़ाने मैं - तुलसी के काढ़े में थोड़ी शक्कर मिलाकर पीने से स्फूर्ति आती है और थकावट दूर हो जाती है । जठराग्रि प्रदीप्त रहती है। 
  26. मूर्छा और हिचकी - तुलसी के रस में नमक मिलाकर उसकी बूँदें नाक में डालने से मूर्च्छा दूर होती है, हिचकियाँ भी शान्त हो जाती हैं।
  27.  एसिडिटी पेचिश, कोलाइटिस - तुलसी ब्लड-कॉलेस्ट्रोल को बहुत तेजी के साथ सामान्य बना देती है । तुलसीके नित्य सेवनसे एसिडिटी दूर होती है । पेचिश, कोलाइटिस आदि मिट जाते हैं
  28. पेट में गैस का दर्द, जुकाम, सर्दी, मेदवृद्धि, सिरदर्द - आदि में तुलसी गुणकारी है। इसका रस, अदरक का रस एवं शहद समभाग में मिश्रित करके बच्चों को चटाने से उनके कुछ रोगों विशेषकर सर्दी, दस्त, उलटी और कफ में लाभ होता है। 
  29. चेहरे की सुंदरता - तुलसी की सूखी पत्तियों को पीसकर उसके चूर्ण को पाउडर की तरह चेहरे पर रगड़ने से चेहरे की कान्ति बढ़ती है और चेहरा सुन्दर दिखता है ।
  30. मुँहासों के लिये - भी तुलसी अत्यन्त उपयोगी है। ताँबे के बरतन में नीबू के रस को चौबीस घंटे तक रख छोड़िये। फिर उसमें इतनी ही मात्रा में काली तुलसी का रस तथा काली कसौंड़ी (कसौंजी ) का रस मिलाइये। इस मिश्रण को धूप में सुखाकर गाढ़ा कीजिये। इस लेप को चेहरे पर लगाने से धीरे-धीरे चेहरा स्वच्छ, चमकदार, सुन्दर, तेजस्वी बनेगा तथा कान्ति बढ़ेगी।
  31. मलेरिया बुखार में - काली मिर्च, तुलसी और गुड़ का काढ़ा बनाकर उसमें नीबू का रस मिलाकर दिन में दो-दो या तीन-तीन घंटे के अन्तर से गर्म-गर्म पियें। फिर कम्बल ओढ़कर सो जायँ। यह काढ़ा मलेरिया को दूर करता है।
  32. श्लेष्मक ज्वर में  - (इनफ्लुएंजा)-के रोगी को तुलसी का बीस ग्राम रस, अदरक का चालीस ग्राम रस तथा शहद मिलाकर देने से आराम मिलता है।
  33.  प्रदररोग में - तुलसी की पत्तियों का रस बीस ग्राम चावल के माँड़ के साथ सेवन करने से तथा दूध-भात या घी-भात का पथ्य लेने से प्रदररोग दूर होता है।
  34. दाद खाज खुजली में - तुलसी की पत्तियों को नीबू के रस में पीसकर लगाने से दाद-खाज मिट जाती है।
  35. बालों का झड़ना - तुलसी का पाउडर तथा सूखे आँवलों का पाउडर पानी में भिगोकर रख दीजिये, प्रातः काल छानकर उस पानी से सिर धोने से सफेद बाल काले हो जाते हैं तथा बालों का झड़ना रुक जाता है
  36. उलटी होने पर - तुलसी और अदरक का रस शहद के साथ लेने से उलटी में लाभ होता है ।
  37. पेट में दर्द होने पर - तुलसी की ताजी पत्तियों का दस ग्राम रस पियें।
इस तरह आरोग्य - दान करने में तुलसी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हमें चाहिये कि जगह-जगह तुलसी के पौधे लगाकर तथा तुलसी के बीज डालकर तुलसी का वृन्दावन बनायें, वातावरण को शुद्ध, पवित्र कर स्वस्थ करें तथा स्वस्थ रहें ।

नुकसान
तुलसी  उपयोग कब नही करना चाहिए 

  • अमावास्या, एकादशी, संक्रान्ति-काल तथा कार्तिक- द्वादशी में निषिद्ध है। इसके सिवाय तेल की मालिश करके बिना नहाये, संध्या के समय, रात्रि को एवं अशुद्ध अवस्था में भी निषिद्ध है।
  • संक्षेप में यह तुलसी का धार्मिक एवं ओषधिजनित प्रयोग है, इसलिये घर-घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिये ।
  • इसके पत्ते दाँतों से नहीं चबाने चाहिये; क्योंकि पत्तियों में पारा होने के कारण दन्तशूल हो जाता है, अतः इसे निगलना ही श्रेयस्कर है। 

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