पलाश ( छेओला) पेड़ के ये चमत्कारी लाभ जानकर चौंक जाएंगे आप

पलाश या छेओला के पेड़ का उपयोग और महत्त्व:-

पलाश (छेओला) का पेड़ भारत के सभी प्रांतों में पाया जाता है यह अपने आप में बहुत विशेषता रखता है यह वृक्ष मैदाने में जंगलों में और पहाड़ियों में पाए जाते हैं यह वृक्ष मध्यम आकार का होता है

पत्ते इसके गोल और बीच में कुछ नुकीले होते हैं जिनका रंग पीठ की ओर सफेद और सामने की ओर हरा होता है

इसकी छाल मोटी और रेशेदार होती है। लकड़ी बड़ी टेढ़ी मेढ़ी होती है।

इसका फूल छोटा, अर्धचंद्राकार और गहरा लाल होता है।फूल फागुन के अंत और चैत के आरंभ में लगते हैं और पेड़ फूलों से लद जाता है जो देखने में बहुत ही भला मालूम होता है उस समय पत्ते तो सबके सब झड़ जाते हैं 

पलाश के पेड़ में फूल झड़ने के बाद चौड़ी पट्टी की फलियां लग जाती हैं इन्हीं फली में गोल गोल बीज लगते है 

पलाश Butea monosperma

वेद पुराणों के अनुसार पलास (छेओला) की महिमा

वेदों में पलाश को ब्रह्म वृक्ष कर कर उसे बहुत महत्व दिया गया है और मंत्र दृष्टि से विषयों का पलाश के प्रति कितना आदर भाव था उसका किंचित भाव निम्नलिखित मित्रों द्वारा प्राप्त होता है

ब्रह्मवृक्ष पलाशस्त्वं श्रद्धां मेधां च देहि मे ।

वृक्षाधिपो नमस्तेऽस्तु त्वं चात्र सन्निधो भव।। 

अर्थात् हे पलाशरूपी ब्रह्मवृक्ष! आप समस्त वृक्षों के राजा हैं, आप मुझे श्रद्धा और मेधा प्रदान करें। आपको मेरा नमस्कार है। मैं इस वृक्ष में आपका आह्वान करता हूँ, इसमें आप संनिहित हो जायें।

पलाश एक औषधीय वृक्ष है। किंशुक, ब्रह्मवृक्ष, याज्ञिक, सुपर्ण, त्रिपर्ण, रक्तपुष्प, क्षार श्रेष्ठ, बीजस्नेह, कृमिघ्न, वक्रपुष्प, ढाक आदि इसके अनेक नाम हैं। इस वृक्ष के पत्र बड़े प्रशस्त, मनोहर एवं सुन्दर होते हैं, अतः इसका नाम पलाश पड़ा। रक्त पलाश तथा श्वेत पलाश आदि इसके कई भेद हैं।
इसके छाल, क्षार, बीज, काण्ड, पत्र, पुष्प तथा निर्यास आदि का उपयोग होता है।

पूजा-पाठ एवं यज्ञ-हवन इत्यादि में नवग्रह की लकड़ी के रुप में इनके प्रयोग किए जाते हैं

चरकसंहिता के अनुसार पलाश के अड़तीस प्रयोग बताये गये हैं, जिनमें छाल के अठारह, क्षार के बारह, बीज के छः, पुष्प और काण्ड के पत्र के दो। इसी प्रकार सुश्रुतसंहिता में पलाश के छियालीस योग बताये गये हैं।

उपर्युक्त योगों द्वारा प्रमेह, कुष्ठ, श्वित्र, शोध, उदररोग, अर्श, ग्रहणी, हिक्का, कास, अतिसार तथा नेत्र रोग आदिका उपचार किया जाता है।

यहाँ पलाश के कुछ उपयोगी प्रयोग दिये जा रहे हैं-  

  1. छोटे बच्चों के पेट में कृमि( कीड़े) हों तो ऐसे बच्चों को प्रथम एक तोला से तीन तोले तक गुड़ खाने को दिया जाता है। साथ ही ऊपर से आधा तोला से एक तोला तक पलाशमूल-अर्क पीनेको देना चाहिये। ऐसा तीन दिन तक करे और रात को एक तोला से ढाई तोला शीत-गरम पानी के साथ दिया जाय।  
  2. पलाश के बीज में पेट के कीड़े मारने का गुण विशेष रूप से निहित होता है बीजों को पानी में उबाल कर वा पानी को छान कर पीना चाहिए
  3. दन्त-शूल हो, दाँतों से खून आये एवं  कमजोर दाँत हिलते हों तो दन्तवेष्ट (मसूढ़ों) पर पलाश-अर्क की कुछ बूँदें लगाने से लाभ होता है। 
  4. छोटे बच्चों को कुकुर-खाँसी में हलदी के साथ अर्क देने पर लाभ होता है।
  5. कर्ण पीप में तीन-चार बूँद डालने से आराम  मिलता है।
  6. स्नायु रोग, श्लीपद (Filaria) एवं कालरा जैसी व्याधियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
  7. बालकों को दाँत आने की वेदना से बचाने के लिये इसके मूल अर्क का प्रयोग हलके से लगाकर किया जाता है, जिससे पतले दस्त का उपद्रव भी नहीं होता।
  8. स्त्रियों के प्रदर रोगों में इसका अर्क दस से बीस बूँद सुबह और शाम चावल के पानी के साथ देने से लाभ होता है।
  9. पलाश गर्भस्त्राव तथा गर्भपात में बहुत उपयोगी है। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थों में पलाश पत्र का उपयोग उपयोगी बहुत जगह पर गर्भ रक्षण के लिये वर्णित है। इसका अर्क भी बहुत लाभप्रद है।

पलाश के अन्य उपयोग 

पलाश का उपयोग श्रेष्ठ रसायन के रूप में अति लाभप्रद है।
होली के लिए रंग पलाश के फूल से ही बनाए जाते थे इससे चहरे की चमक बढ़ती है 
पलाश फूल के पानी से स्नान करने से लू नहीं लगती तथा गर्मी का अहसास नहीं होता।
आजकल पलाश का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन बनाने में भी किया जा रहा है।


कोई टिप्पणी नहीं

अकरकरा के औषधीय गुण

परिचय अकरकरा मूल रूप से अरब का निवासी कहा जाता है, यह भारत के कुछ हिस्सों में उत्पन्न होता है। वर्षा ऋतु की प्रथम फुहारे पड़ते ही इसके छोटे...

merrymoonmary के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.