अजवाइन खाने के फायदे - अजवाइन औषधियों की औषधि है
अजवाइन खाने के फायदे - अजवाइन औषधियों की औषधि है
अजवाइन की (छोटी-बड़ी तथा जंगली) इस प्रकार कई प्रजातियां होती है। और सब के अलग अलग उयोग भी है यहाँ संक्षेप में इसका परिचय तथा औषधीय उपयोगो का विस्तार से वर्णन करेंगे
अजवाइन भारत वर्ष के लगभग हर प्रान्त में पैदा की जाती है। अजवाइन के दानों में एक उड़नशील सुगन्धित तेल होता है। इसका मुख्य घटक थाइमाल 34 से 60 प्रतिशत है तथा कुछ कार्वाक्रोल (Carvacrol) रहता है। मानक अजवाइन तेल में प्रतिशत से कम थाइमोल नहीं होना चाहिये। तेल को ठण्डा करने पर थाइमोल जम जाता है। जिसे अजवाइन का फूल या सत अजवाइन ( यवानी सत्त्व) कहते हैं । अजवाइन को स्टिअरोप्टिन भी कहते हैं । तो हम जानते है अजवाइन खाने के फायदे के बारे में।
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अजवाइन |
आयुर्वेदिक के अनुसार अजवाइन के लाभ:-
गुण-धर्म -
अजवायन लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कटु, तिक्त रसयुक्त, विपाक में कटु और उष्ण वीर्य है । यह पाचक, रुचि कारक, परिपाक में लघु, अग्निदीपक, पित्तवर्धक तथा शूलनाशक है। यह वात नाशक, उदरसम्बन्धी रोग, आनाह, गुल्म, प्लीहा तथा कृमिनाशक है। तीक्ष्ण- उष्ण होने से यह कफ-वातशामक और पित्त वर्धक है
प्रयोग -
- यह कफ, वात विकारों में प्रयुक्त होता है।
- अजवायन का लेप या उसके तेल का अभ्यंग शोथ तथा वेदनायुक्त विकारों में लाभ करता है ।
- चर्म रोगों या बिच्छू आदि के दंश में इसका प्रयोग किया जाता है ।
- सत - अजवाइन को जल में मिलाकर उससे घाव साफ किया जाता है ।
- पेट दर्द होने पर पेटपर अजवाइन का लेप करने या उसकी पोटली बनाकर सेकने से लाभ होता है।
- इसकी पुल्टिस बनाकर उदरशूल, आमवात तथा संधिशूल में सेंकने से लाभ होता है ।
- विषूचिका में हाथ-पैर तथा श्वास- कास में छाती को सेंकने पर लाभ होता है।
- अजवाइन के पत्तों का रस कृमियों को मारने के काम आता है।
- इसके पत्तों को पीसकर कीड़ों के काटे हुए स्थानों पर लगाया जाता है।
- सत - अजवायन का उपयोग अन्त्रगत अंकुश,पुरुषत्व की वृद्धि करने में यह अत्यन्त उपयोगी है। कृमि तथा अन्य जन्तुओं की वृद्धि को रोकने के लिये किया जाता है।
- अजवाइन के प्रयोग से जमा हुआ बलगम आसानी से निकलता है। कफ नष्ट होता है, कफ की दुर्गन्ध नष्ट होती है श्वास का वेग भी कम हो जाता है।
- मूत्राघात के रोग में यह उपयोगी है। इसके प्रयोग से गर्भाशय का संशोधन होता है ।
- उदरशूल, आध्मान आदि बीमारियों में अजवाइन, सेंधा नमक, सोंचर नमक, यवाक्षार हींग और आँवले के चूर्ण को आधे से एक माशा शहद के साथ प्रयोग करने से लाभ होता है।
- बच्चों के रोगों तथा हैजे में अजवाइन का अर्क उपयोगी है।
- अजवाइन, सेंधा नमक, सोंठ, काली मिर्च समान भाग में लेकर चूर्ण बनाकर खट्टे मट्ठे के साथ सेवन करनेसे बवासीर, पीलिया तथा मन्दाग्नि दूर हो जाती है
- अजवाइन वैसे ही एक छोटी चम्मच लेने से पाचन क्रिया ठीक रहती है।
- भोजन करने के बाद यदि वायु बनने की शिकायत हो, पेट में भारीपन या गुड़गुड़ाहट प्रतीत हो अथवा उल्टी-सीधी डकारें मालूम पड़ती हों तो स्वच्छ धुली सूखी अजवाइन तीन मास और खाने का सोड दो माशे की फँकी लेकर दो-चार घूँट गरम पानी पिया करे। दोनों समय भोजन के बाद ऐसा करने से लाभ मिलता है।
- अजवाइन को अच्छी तरह धोकर सुखा लें। सूख जाने पर काँच अथवा चीनी के बर्तन में उसे डालकर ऊपर तक नीबू का रस भर दे तथा बर्तन को धूप में रख दे जब नीबू का रस सूख जाय तब और नीबू रस डाले, इस प्रकार सात बार करे। प्रातः-सायं गरम पानी के साथ सेवन करनेपर सब प्रकारके उदर रोग दूर होते है
- अजवाइन में एक प्रकार का सुगन्धयुक्त उड़नशील तेल रहता जिसे सत्त्व अजवाइन या जवहन का फल कहते हैं। इसे एक तोला पिपरमिन्ट, दो तोला देशी कपूर के साथ एक शीशी में डालकर बंद कर दे। कुछ समय में तीनों पिघलकर पानी-जैसा हो जायगा। यह सब प्रकार की पीड़ा, दन्तपीड़ा उदरपीड़ा कर्णपीड़ा पार्श्वशूल, छाती और कमरपीडा मस्तिष्कपीडामें तुरंत लाभ पहुँचानेवाली औषधि है। इसकी चार-छः बूदें बतासे या चीनीके साथ लें ।
- हैजा, दस्त, जी मिचलाना, उलटी, श्वास, खाँसी तथा विषैले कीड़ों-बिच्छू, ततैया आदि के काटने पर इसका निःसंकोच प्रयोग किया जा सकता है।
- सूखी खाँसी पर थोड़ी अजवाइन को सादा देशी पान में रखकर उसका रस चूसना अत्यन्त लाभदायक होता है ।
- छोटे बच्चों को प्रायः हरे-पीले दस्त अथवा दूध उलट देने की शिकायत रहती है। इस प्रकार की बीमारी में स्वच्छ अजवाइन का महीन चूर्ण दो से चार रत्ती दिन में तीन-चार बार प्रयोग करने से यह समस्या दूर हो जाती है, बच्चा शीघ्र स्वस्थ हो जाता है।
- अफारे के रोग में चार माशा अजवाइन एक माशा काले नमक के साथ गरम पानी से देना हितकारी होता है।
- दाद, खाज, कृमि वाले घाव पर अजवाइन का उबाला हुआ जल प्रयोग करने से रोग से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है ।
- अजवाइन को स्वच्छ कर चूर्ण बनाये, इसे नसवार की तरह सूँघने से जुकाम, सिर की पीडा, नासिका में कफ का रुक जाना आदि दोष दूर हो जाते हैं तथा मस्तिष्क के रोग भी नष्ट हो जाते हैं।
- अजवाइन को जलाकर उसको कपड़ा से छान कर चूर्ण बना ले चूर्ण को जस्ते की सलाई से आँख में फूला हो जाने के बाद प्रातः-सायं डाले तो नौ सप्ताह के प्रयोग से फूला मिटने लगता है।
- अजवाइन को जलाकर बनाये गये चूर्ण को यदि उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर मंजन किया जाय तो दाँत के लिये हितकर होता है।
- महिलाओं में मासिक-अवरोध होने पर अजवाइन को पुराने गुड़ और जल में पकाकर प्रातः - सायं पीने से गर्भाशय का मल साफ हो जाता है। यह क्वाथ तब तक पीना चाहिये जब तक आर्तव साफ न आने लगे।
जंगली अजवायन - यह हिमालय के निचले भागों में असम, मध्य बंगाल तक पायी जाती है। इसके दाने बारीक छोटे-छोटे गोल किंचित् लम्बे, फीके एवं पीले रंग के होते हैं
प्रयोग – दानों का प्रयोग पशुओं की औषधि के रूप में किया जाता है ।
- यह उत्तेजक, पाचक, शूल , आँतों के लिये लाभ होता है ।
- इसके प्रयोग से गोल कृमि (केंचुए) निकल जाते हैं ।
- इसके सेवन से अफारे में लाभ होता है, भूख बढ़ती है।
- इसकी धूप जलाने से मच्छर आदि मर जाते हैं।
जंगली अजवाइन (Wild Thyme)- यह हिमालयके गरम प्रदेशों में कश्मीर से कुमाऊँ एवं ईरान तक होती है। इसके दाने बारीक और चिकने होते हैं ।
- यह उत्तेजक, कृमिनाशक, शूलनाशक और आँतों के लिये पौष्टिक तथा अग्निवर्धक है ।
- यह उष्ण सड़न को दूर करने वाली होती है ।
- यह मूत्रजनन, उत्तेजक एवं आँखों के लिये हितकारी है।
- श्वास एवं कफ को दूर करता है
- इसके स्वरस का प्रयोग सिरके और मधुके साथ पुरानी खाँसी, कुक्कुर खाँसी में किया जाता है।
- इसके प्रयोग से उदरशूल दूर होता है।
- वस्ति-पीड़ा, वस्ति-शोथ तथा लसिकामेह (Chyleeria) - में तथा मूत्र के स्वच्छ न आने पर इसके क्वाथ का सिरके के साथ प्रयोग जाता है।
- यह चर्मरोग, दाद, खाज में बहुत लाभकारी है।
- आग से जले स्थान पर इसके रस को घी के साथ लगाने से लाभ होता है।
- इसकी धूप से वायु-मण्डल शुद्ध होता है ।
अजमोदा (बड़ी जवाइन) Celery Fruit - इसके दाने सामान्य अजवाइन से थोड़े-से बड़े होते हैं, इसलिये इसे बड़ी अजवाइन कहते हैं ।
गुणधर्म -
- यह लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कटु, तिक्त, रसयुक्त, विपाकमें कटु और उष्ण वीर्य है।
- इसका प्रयोग वातरक्त-कृमि दूर करने, मूत्राशय के रोग और नष्टार्तवमें किया जाता है।
- श्वास, पथरी, यकृत् - प्लीहाविकार आदिमें इसका उपयोग होता है ।
- कटिशूल, पार्श्वशूल, संधि वात तथा चर्मरोगों में इसका लेप करने से लाभ होता है।
- रक्त-विकारों में इसका प्रयोग करते हैं ।
- हिक्का श्वास और मूत्र कृच्छ्र में भी यह परम उपयोगी है
- शुक्रदौर्बल्य, कष्टार्तव एवं सूति का रोगों में इसका प्रयोग होता है ।
- प्रसव के बाद इसका प्रयोग करने से बल बढ़ता है, स्तन्यकी वृद्धि होती है, गर्भाशय का संशोधन होता है तथा वायुके उपद्रव शान्त होते हैं।
- डेढ़ से तीन मासे अजमोदा का चूर्ण, 1 तोला मूली के पत्ते के रसके साथ चार रत्ती यवक्षार मिलाकर पीने से पथरी गलकर निकल जाती है। यह प्रयोग प्रातः-सायं नियमित करना चाहिये ।
- यदि भोजन के बाद हिचकी आती हो तो अजमोदा के दाने मुख में रखने से हिचकी बन्द हो जाती है।
- यदि मूत्राशय में वायु का प्रकोप हो गया हो तो अजमोदा और नमक को स्वच्छ वस्त्रमें बाँध कर इस पोटली से सेकना चाहिये, इससे वायु नष्ट हो जाती है।
- पतले दस्त आने पर अजमोदा, सोंठ, छायका फूल, मोच रस समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाये । इस चूर्ण को बड़े व्यक्तियों को ३ से ६ माशे की मात्रा में मट्ठे के अनुपान से देना चाहिये ।
पारसीक (खुरासानी ) यवानी Herbane
खुरासान, यवन आदि देशों में बहुतायत से होने के कारण इसे खुरासानी या यवानी आदि नामों से जाना जाता है। भारत और यूरोप में भी यह पायी जाती है। यूनानी चिकित्सकों के मतानुसार खुरासानी अजवाइन सफेद, काली और लाल तीन प्रकार की होती है। इनमें से काली अत्यन्त विषैली होती है।
रोगों में प्रयोग –
- इसका प्रयोग कफ तथा वातजन्य बीमारी में किया जाता है।
- स्तनशोथ, अण्डशोथ, अर्श, संधिशूल आदि शोथ तथा वेदना- प्रधान रोगो में इसका लेप किया जाता है।
- उदरशूल, अनाह, गुल्म आदि वात- प्रधान उदर विकारों में इसका प्रयोग होता है।
- कृमि रोगों, दौर्बल्य एवं रक्तस्राव में इसका प्रयोग लाभकर होता है।
- कफहर होने के कारण कास में तथा श्वासहर होने से श्वास रोग में इसका प्रयोग होता है ।
- यह वेदनाहर और निद्राहर भी है, इसके प्रयोग से कब्ज नहीं होती है
- इसकी क्रिया वेलाडोना के समान होती है। परंतु इसके प्रयोग से मस्तिष्क कम उत्तेजित होता है।
- इसके प्रयोग से अनैच्छिक मांस पेशियों के उद्वेष्ठन के कारण होने वाले शूल जैसे—नागशूल तथा मूत्रमार्ग प्रक्षोभ से उत्पन्न शूल दूर होते हैं।
- यह विरेचक औषधियोंसे पैदा होनेवाले मरोड़को नष्ट करता है ।
- पथरी तथा वस्तिशोथ आदि में यवसार, पान तथा गुड के साथ इसका प्रयोग अत्यन्त गुणकारी है।
- दाँत के कोटरों में इसके बीजों को पीसकर रखने से दन्तशूल दूर होता है ।
- इसको अंगारों पर जलाकर धुएँ को मुँह में जाने देने से दन्तशूल ठीक होता है ।
- दन्तपीड़ा तथा मसूढ़ोंसे रक्त आने पर इसके उबाले जल से कुल्ला करना चाहिये ।
- यकृत् पीड़ा, छाती की पीड़ा में इसे पीसकर लगाना चाहिये।
- खुरासानी अजवाइन के साथ थोड़ा गुड़ मिलाकर खाने तथा ऊपर से बासी ठण्डा जल पीने से उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं।
- महिलाओं के हिस्टीरिया रोग में इस अजवाइन के अर्क की १५ से ३० बूँदें १-१ घण्टे अन्तर से ढाई तोला जल में मिलाकर देनेसे शीघ्र ही लाभ होता है।
- एक पाव खुरासानी अजवाइन को 1 पाव तिल के तेल में मन्दाग्नि पर पकाकर तेल को छान ले, यह तेल थोड़ा गरम कर कान में डालने से कर्ण-पीड़ा, मलने से संधिवात, गृध्रसी, कमर की पीड़ा आदि नष्ट हो जाती हैं।
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