अंगूर के फायदे: जानिए इस औषधीय दवाई के बारे में

अंगूर का परिचय: एक प्रकृति की अनमोल देन, स्वास्थ्य के लिए वरदान (Introduction to Grapes):-

अंगूर एक बहुवर्षायु सुदीर्घलता के प्रसिद्ध फल हैं। फलों में यह सर्वोत्तम एवं निर्दोष फल है, क्योकि यह सभी प्रकार की प्रकृति के मनुष्य के लिये अनुकूल है। निरोगी के लिये यह उत्तम पौष्टिक खाद्य है तो रोगी के लिये बलवर्धक पथ्य जब कोई खाद्य पदार्थ पथ्य रूप में न दिया जा सके तब 'द्राक्षा' (मुनक्का) का सेवन किया जा सकता है।

अंगूर
अंगूर

रंग और आकार तथा स्वाद भिन्नता से अंगूर की कई किस्में होती है। काले अंगूर, बैंगनी रंग के अंगूर, लम्बे अंगूर, छोटे अंगूर, बीज रहित. जिनकी सुखाकर किशमिश बनाई जाती है। काले अंगूरों को सूखाकर मुनक्का बनाई जाती है।

अंगूर की पहिचान और बनावट (grape identification):-

अंगूर की बेलें लकड़ियों के मकानों पर चलती है, इसके पत्ते गोलाकर, पंचखण्डीय, हाथ की आकृति के और फल गुच्छों में लगते है।

अंगूर का रासायनिक संघटन

ताजे फलों में ग्लूकोज निर्यास, टैनिन, टारटैरिक एसिड, सीट्रिक एसिड, तथा द्राक्षाम्ल या मैलिक एसिड एवं विविध क्षारद्रव्य, सोडियम तथा पोटेशियम क्लोराइड, पोटेशियम सल्फेट एवं लौहा आदि तत्व होते है। मुनक्का या सूखे फलों में शर्करा एवं निर्यास के अतिरिक्त कैल्शियम, मैग्नीशियम, पौटेशियम, लौह एवं फास्फोरस आदि तत्व पाये जाते है। फल के छिलके में टैनिन पाया जाता है।

Grape vine, leaf and pot and fruit
Grape vine, leaf and fruit

अंगूर के गुण धर्म

पके फल :- दस्तावर, शीतल, नेत्रों को हितकारी, पुष्टि कारक, पाक या रस में मधुर, स्वर को उत्तम करने वाला, कसैला, मल तथा मूत्र को निकालने वाला, वीर्यवर्धक, पौष्टिक, कफ कारक, रूचिकारक है। यह प्यास, ज्वर, श्वास, कास, वात, वातरक्त, कामला, मूत्रकृच्छ्र, रक्तपित्त, मोह, दाह, शोष तथा मेह को नष्ट करने वाला है।

कच्चा अंगूर :- गुणों में हीन, भारी और कफ पित्तहारी और रक्त पित्त हरने वाला होता है 

काली दाख या गोल मुनक्का :- (1 या डेढ़ इंच लम्बे गोस्तन की तरह) वीर्य वर्धक, भारी और कफ पित्त नाशक है।

किशमिश :- बीज की छोटी किशमिश मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक, रूचिप्रद, खट्टी तथा श्वास, कास, ज्वर, हृदय की पीड़ा, रक्त पित्त, क्षत क्षय, स्वर भेद, प्यास, वात, पित्त और मुख के कड़वेपन को दूर करती है।

ताजेफल :- रुधिर को पतला करने वाले छाती के रोगों में लाभ पहुँचाने वाले बहुत जल्दी पचने वाले रक्त शोधक तथा खून बढ़ाने वाले होते हैं।

अंगूर से ठीक होने वाली बीमारी: जानिए इसके आश्चर्यजनक गुणों के बारे में

मूर्च्छा ठीक करने में :-

  1. दाख और आँवलों को समान भाग लेकर, उबालकर, पीसकर थोड़ा शुंठी चूर्ण मिलाकर, शहद के साथ चटाने से ज्वर युक्त मूर्च्छा मिटती है।
  2. 25 ग्राम मुनक्का, मिश्री, अनार की छाल और खस 12-12 ग्राम, जौ कूट कर 500 ग्राम पानी में रात भर भिगो देवे प्रातः मल छानकर, 3 खुराक बनाकर दिन में 3 बार पिला देवें।
  3. 100-200 ग्राम मुनक्का को घी में भूनकर थोड़ा सैंधा नमक मिला, नित्य 5-10 ग्राम तक खाने से चक्कर आना बन्द हो जाता है।

शिर शूल ठीक करने में :-

  1. 8-10 नग मुनक्को, 10 ग्राम मिश्री तथा 10 ग्राम मुलेठी तीनों को पीसकर नस्य देने से पित्त एवं विकृति जन्य सिर का दर्द दूर होता है।

मुखरोग को ठीक करने में :-

  1. मुनक्का 10 दाने, जामुन के पत्ते 3-4 ग्राम मिलाकर क्वाथ बनाकर कुल्ला करने से मुख के रोग मिटते है।

नकसीर होने पर :-

  1. दाख के 2-2 बूंद रस का नस्य देने से नकसीर बन्द हो जाती है।

मुख दुर्गन्ध को दूर करने में :-

  1. कफ विकृति या अजीर्ण के कारण मुख से दुर्गन्ध आती हो तो 5-10 ग्राम मुनक्का नियमपूर्वक खाने से दूर हो जाती है।

उर:क्षत को भी ठीक करे :-

  1. मुनक्का और धान की खीले 10-10 ग्राम को 100 ग्राम जल में भिगों देवे। 2 घंटा बाद मसल छानकर उसमे मिश्री, शहद और घी 6-6 ग्राम मिलाकर उंगली से बार-बार चटावें। उरक्षत में परम लाभ होता है। तथा वमन की यह दिव्य औषधि है।

श्वास कास में लाभ :-

  1. 8-10 नग मुनक्का और हरीतकी के क्वाथ 40-60 ग्राम में मिश्री 25-30 ग्राम और शहद 2 चम्मच मिलाकर पिलायें।

शुष्क-कास में लाभ :-

  1. द्राक्षा, आँवला, खजूर, पिप्पली तथा काली मिर्च इन सबको समभाग लेकर पीस लें। इस चटनी के सेवन से सूखी खांसी तथा कुकुर खांसी में लाभ होता है।

क्षय रोग को जड़ से खत्म करे :-

  1. घी, खजूर, मुनक्का, मिश्री, मधु तथा पिप्पली इन सबका अवलेह बनाकर सेवन करने से स्वर भेद, कास, श्वास, जीर्ण ज्वर तथा क्षयरोग का नाश होता है।

पित्तज कास में लाभ :-

  1. मुनक्का 10 नग, पिप्पली 30 नग तथा मिश्री 45 ग्राम तीनों का मिश्रण बनाकर प्रतिदिन मधु मिलाकर चटाने से लाभ होता है।

दूषित कफ विकार को ठीक करे :-

  1. 8-10 नग मुनक्का, 25 ग्राम मिश्री तथा 2 ग्राम कत्थे को पीसकर मुख में धारण करने से दूषित कफ विकारों में लाभ होता है।

गलग्रन्थि को मिटने में :-

  1. दाख के 10 मिलीलीटर रस में हरड़ का 1 ग्राम चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम नियमपूर्वक पीने से गलग्रन्थि मिटती है।
  2. गले के रोगों में इसके रस से गंडूष कराना बहुत अच्छा है।

हृदय की पीडा को दूर करें :-

  1. यदि हृदय में शूल हो तो मुनक्का कल्क 3 भाग शहद 1 भाग तथा लौंग 1/2 भाग, मिलाकर कुछ दिन सेवन करें।

मुदुरेचन के लिये :-

  1. 10-20 नग मुनक्कों को साफ कर बीज निकालकर, 200 ग्राम दूध में भली भांति उबालकर (जय मुनक्के फूल जायें) दूध और मुनक्के दोनों का सेवन करने से प्रातः काल दस्त साफ आता है।
  2. मुनक्का 10-20 नग, अंजीर 5 नग तथा साँफ, सनाय अमलतास का गूदा 3-3 ग्राम, तथा गुलाब के फूल 3 ग्राम, इन सबका क्वाथ कर तथा प्रातः काल 10 ग्राम गुलकन्द मिलाकर पीने से दस्त साफ होता है।
  3. रात्रि में सोने से पहले 10-20 नग मुनक्कों को थोड़े श्री भूनकर सेंधा नमक चुटकी भर मिलाकर खायें।
  4. सोने से पहले आवश्यकतानुसार 10 से 30 ग्राम तक किि खाकर गर्म दूध पीये।
  5. मुनक्का 7 नग, काली मिर्च 5 नग, भुना जीरा 10 ग्राम, नमक 6 ग्राम, टाटरी 500 मिलीग्राम, की चटनी बनाकर वाटर से कब्जियत तथा अरूचि दूर होती है।

पित्तज शूल को भी ठीक करे :-

  1. अंगूर और अडूसे का क्वाथ 40-60 मिलीग्राम सिद्ध कर पिलाने से पित्त कफ जन्य उदरशूल दूर होता है।

अम्ल पित्त को जड़ से खत्म करे :-

  1. दाख, हरड बराबर-बराबर लें। इसमें दोनों के बराबर श मिलाये, सबको एकत्र पीसकर 1-1 ग्राम की गोलिया बनान एक-एक गोली प्रातः-सायं शीतल जल के साथ संवन करन से अम्लपित्त, हृदय-कंठ की जलन, प्यास तथा मंदाग्नि का नाश होता है।
  2. मुनक्का 10 ग्राम और सौंफ आधी मात्रा में दोनों को 100 मि.ली. जल में भिगो देवें। प्रातः मसल छानकर पीने से अम्ल पित्त में लाभ होता है।

पांडू (कामला) रोग  में मिलता है लाभ :-

  1. मुनक्का का कल्क बीज़रहित (पत्थर पर पिसा हुआ) 500 ग्राम, पुराना घी 2 कि.ग्रा. और जल 8 कि.ग्रा., सबको एकत्र मिला पकावे, जब केवल घी मात्र शेष रह जाये तो छानकर रख ले 3 से 10 ग्राम तक प्रातः सायं सेवन करने से पांडु (कामला) आदि में विशेष लाभ होता है।

रक्तार्श शीघ्र बन्द करे :-

  1. अंगूरों के गुच्छों को हांडी में बन्द कर भस्म बना लें। काल रंग की भस्म प्राप्त होगी। इसको 3-6 ग्राम की मात्रा में बराबर मिश्री मिला, 250 ग्राम गाय स्त्राव शीघ्र बन्द हो जाता है। 7-8 दिन में पू लाभ हो जाता है।

पथरी को जड़ से मिटाए :-

  1. काली दाख की लकडी की राख 10 ग्राम को पानी में घोलकर दिन में दो बार पीने से मूत्राशय में पथरी का पैदा होना बन्द ह जाता है।
  2. इसकी 6 ग्राम भस्म को गोखरू के क्वाथ 40-50 ग्राम या 10-20 ग्राम रस के साथ पिलाने से पथरी नष्ट होती है।
  3. द्राक्षा पंचाग का क्षार 250-500 मिलीग्राम तक की मात्रा में देने से पथरी नष्ट होती है।
  4. 8-10 नग मुनक्कों को काली मिर्च के साथ घोटकर पिलाने से पथरी में लाभ होता है।

मूत्रकृच्छ्र में लाभ :-

  1. मूत्रकृच्छ्र में 8-10 मुनक्कों एवं 10-20 ग्राम मिश्री को पीसकर, दही के पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
  2. मुनक्का 12 ग्राम, पाषाण भेद, पुनर्नवा मूल तथा अमलतास का गूदा 6-6 ग्राम जौकुट कर, आधा किलो जल में अष्टमांश क्वाथ सिद्ध कर पिलाने मूत्रकृच्छ्र एवं तद्धन्य उदावर्त रोग भी दूर होता है।
  3. 8-10 नग मुनक्कों को बासी जल में पीसकर चटनी की तरह जल के साथ लेने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

अण्डकोष वृद्धि में आराम :-

  1. अंगूर के 5-6 पत्तों पर घी चुपडकर तथा आग पर खूब गर्म कर बांधने से फोडो की सूजन बिखर जाती है।

बल एवं पुष्टि के लिये सबसे असरदार औषधी :-

  1. मुनक्का 12 नग, छुहारा 5 नग तथा मखाना 7 नग, इन सभी को 250 ग्राम दूध में डालकर खीर बनाकर सेवन करने से रक्त, मांस की वृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है।
  2. मुनक्का 9 नग, किसमिस 5 नग, ब्राह्मी 3 ग्राम, छोटी इलायची 8 नग, खरबूजे की गिरी 3 ग्राम, बादाम 10 नग, तथा बबूल की पत्ती 3 ग्राम, घोटकर पीने से गर्मी शांत होकर शरीर पुष्ट तथा बलवान बनता है।
  3. प्रातः मुनक्का 20 ग्राम खाकर ऊपर से 250 ग्राम या 125 ग्राम दूध पीने से ज्वर के बाद की अशक्ति तथा ज्वर दूर होकर शरीर पुष्ट होता है।
  4. 20 से 60 ग्राम किसमिस रात्रि को एक कप जल में भिगो दें, प्रातः काल मसल कर छानकर जल को पीने से कमजोरी, तथा अम्ल पित्त दूर होता है।
  5. रात्रि को सोने से पूर्व मुनक्का खाये (चीज निकालकर) फिर ऊपर से जल पी लें. कुछ दिनों में दुर्बलता दूर होकर शरीर पुष्ट होता है (ज्यादा लेने पर दस्त हो जाते हैं, अपनी शारीरिक क्षमतानुसार मात्रा का निर्धारण कर ले)।

दाह, प्यास आदि में  :-

  1. 10-20 नग मुनक्का शाम को जल में भिगोकर प्रातः मसलकर छान लेवें तथा उसमे थोडा श्वेत जीरे का चूर्ण और मिश्री या चीनी मिलाकर पिलाने से पित्तजन्य दाह शान्त होती है।
  2. 10 ग्राम किसमिस आधा किलो गाय के दूध में पकाकर उड़ा हो जाने पर रात्रि के समय नित्य सेवन करने से दाह शांत होती है।
  3. मुनक्का और मिश्री 10-10 ग्राम नित्य प्रातः चबाकर और पीसकर सेवन करें।
  4. चेचक के बाद किसमिस 8 भाग गिलोय सत्व और जीरा 1-1 भाग तथा चीनी 1 भाग इन सभी के मिश्रण को चिकने तप्तपात्र में भरकर उसमें इतना गाय का घी मिलावे, कि मिश्रण अच्छी तरह भीग जाये। इसमे से नित्य प्रति 6 से 20 ग्राम तक की मात्रा में नित्य सेवन करने से एक दो सप्ताह में चेचक आदि विस्फोटक रोग होने के बाद जो दाह शरीर में हो जाती है, वह शान्त हो जाती है।

सन्निपात ज्वर में लाभ :-

  1. जिहा सूख और फट जाये तो उस पर 2-3 नग दाख को 1 चम्मच मधु के साथ पीसकर उसमे थोड़ा घी मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।

पित्त ज्वर में आराम :-

  1. दाख और अमलतास के गूदे का 40-60 मि.ली. क्वाथ सुबह-शाम पिलायें।
  2. अंगूर के शरबत के नित्य सेवन से भी दाह ज्वर आदि शान्त होता है।
  3. यदि प्यास अधिक हो तो दाख और मुलेठी का 40-60 मि.ग्रा. क्वाथ दिन में दो-तीन बार पिलायें।
  4. मुनक्का, काली मिर्च और सेंधा नमक तीनों को पीसकर गोलियां बनाकर मुख में रखें।
  5. समभाग आंवला तथा मुनक्का को अच्छी तरह महीन पीसकर थोड़ा घी मिलाकर मुख में धारण करें।

रक्त पित्त जड़ से खत्म करे :-

  1. किसमिस 10 ग्राम, दूध 160 ग्राम, जल 640 मिलीलीटर तीनों को मंद अग्नि पर पकायें। 160 मिलीलीटर शेष रहने पर थोड़ी मिश्री मिलाकर पिलायें।
  2. मुनक्का, मुलेठी, गिलोय 10-10 ग्राम लेकर जौकुट कर 500 ग्राम जल में अष्टमांश क्वाथ सिद्ध कर सेवन करें।
  3. मुनक्का 10 ग्राम, गूलर की जड़ 10 ग्राम, 10 ग्राम लेकर, जी कूट कर अष्टमांश क्वाथ सिद्ध कर सेवन करे। इस प्रयोग से रक्तपित्त, दाह, मुखशोष, तृषा तथा कफ के साब खांसने पर रक्त निकलना आदि विकार शीघ्र दूर हो जाते है।
  4. अंगूर के 50-100 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम घी और 20 ग्राम खांड मिलाकर पीने से रक्तपित्त दूर होता है।
  5. मुनक्का और पके गूलर का फल बराबर-बराबर लेकर पीसकर शहद के साथ सुबह-शाम चटावें।
  6. मुनक्का 1 भाग, हरड़ 1 भाग पानी के साथ पीसकर 6 ग्राम तक बकरी के दूध के साथ पिलावें।

चर्मरोग में आराम :-

  1. बसन्त ऋतु में इसकी काटी हुई टहनियों में से एक प्रकार का मद निकलता है जो चर्म रोगों में बहुत लाभकारी है।

धतूरे का विष को दूर करे :-

  1. अंगूर का 10 ग्राम सिरका 100 ग्राम दूध में मिलाकर कई बार पिलावे।

हरताल के विष पर ;-

  1. रोगी को वमन कराकर किसमिस 10-20 ग्राम 250 ग्राम दूध में पकाकर पिलायें।

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