फालसा फल खाने के फायदे और ठीक होने वाली बीमारी
फालसा फल खाने के फायदे और ठीक होने वाली बीमारी(Benefits of eating Phalsa fruit and the diseases it can cure):-
क्या आप फालसा फल के बारे में जानते हैं यह फल गर्मियों के महीना में उगने वाला फल है जो भारत श्रीलंका और नेपाल दक्षिण एशियाई देशों में पाया जाता है भारत में इसे बेरी के नाम से भी जाना जानते हैं यह फल अंगूर की तरह बैंगनी रंग का दिखता है यह स्वाद में खट्टा मीठा होता है फालसा फल विटामिन और खनिजों का पावर हाउस माना गया है
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फालसा का फल |
आयुर्वेद के अनुसार फालसा का महत्व :-
फालसा पाचन में हल्का, स्निग्ध, मधुर, अम्ल और तिक्त है। कच्चे फल का विपाक खट्टा एवं पके फल का विपाक मधुर, शीतवीर्य, वात-पित्तशामक एवं रुचिकर होता है।
फालसा के पके फल स्वाद में मधुर, स्वादिष्ठ, रुचिकर, पाचन में हल्के, कोष्ठबद्ध करनेवाले, तृषाशामक, उलटी मिटाने वाले, रेचन में सहायक, हृदयके लिये हितकारी हैं।
यह फालसा रक्त पित्तनाशक, वात नाशक, कफ हर्ता, पेट एवं यकृत्के लिये शक्तिदायक, वीर्यवर्धक, दाह नाशक, सूजन मिटाने वाला, पौष्टिक, कामोद्दीपक, पित्त का ज्वर मिटाने वाला, हिचकी एवं श्वास की तकलीफ, वीर्य की कमजोरी एवं क्षय-जैसे रोगों में लाभकारक है। यह
रक्त विकार को दूर करके रक्त की वृद्धि भी करता है।
आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से से फलसा का उपयोग:-
फालसा में विटामिन 'सी' एवं 'कैरोटिन' तत्त्व भरपूर मात्रा में होते हैं । गरमी के दिनों में फालसा एक उत्तम पौष्टिक फल है। फालसा शरीर को नीरोग एवं हृष्ट-पुष्ट बनाता है।
फालसाका शर्बत उत्तम 'हार्टटॉनिक' है।
फालसा के अंदर बीज होता है। फालसे को बीज के साथ भी खा सकते हैं।
शरीर में किसी भी मार्ग के द्वारा होने वाले रक्तस्राव की तकलीफ में पके फालसे के रस का शर्बत बनाकर पीना लाभकारक है। यह शर्बत स्वादिष्ठ एवं रुचिकर होता है।
गरमीके दिनों में शरीर में होने वाले दाह, जलन, पेट एवं दिमाग - जैसे महत्त्वपूर्ण अङ्गों की कमजोरी आदि भी फालसा के सेवन से दूर होती है। फालसा का मुरब्बा बनाया जाता है।
- पेट का शूल-सिकी हुई ३ ग्राम अजवाइन में फालसे का रस 25 से 30 ग्राम डालकर थोड़ा-सा गरम कर पीनेसे पेटका शूल मिट जाता है ।
- पित्तविकार - गरमी के दोष, नेत्रदाह, मूत्रदाह, छाती या पेट में दाह, खट्टी डकार आदि की तकलीफ में फालसे का शर्बत पीना और अन्य सब खुराक बंद कर केवल सात्त्विक खुराक लेनेसे पित्त विकार मिट जाता है एवं अधिक तृषा में भी राहत होती है।
- हृदय की कमजोरी -फालसे का रस, नीबू का रस, सैंधव नमक, काली मिर्च योग्य प्रमाण में लेकर उसमें मिस्री या शक्कर मिलाकर पीने से हृदय की कमजोरी दूर होती है एवं उलटी, उदरशूल, उबकाई आना आदि तकलीफें दूर होती हैं। रक्तदोष भी मिट जाता है ।
- पेट की कमजोरी—पके फालसे के रस में गुलाब जल एवं शक्कर मिलाकर रोज पीने से पेट की कमजोरी दूर
- होती है।
- दिमागी कमजोरी- कुछ दिनों तक नाश्ते के स्थान पर फालसे का रस उपयुक्त मात्रा में पीने से दिमाग की कमजोरी एवं सुस्ती दूर होती है, फुर्ती एवं शक्ति प्राप्त होती है।
- मूढ़ या मृत गर्भ में कई बार गर्भवती महिलाओं के गर्भाशय में स्थित गर्भ मूढ़ या मृत हो जाता है। ऐसी अवस्था में पिण्ड को जल्दी निकालना एवं माता का प्राण बचाना आवश्यक हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में अन्य कोई उपाय न हो तो फालसा के मूल को पानी में घिसकर उसका लेप गर्भवती महिला की नाभि के नीचे पेडू, योनि एवं कमर पर करने से पिण्ड जल्दी बाहर आ जायगा ।
- श्वास, हिचकी, कफ-कफ दोष से होने वाले श्वास, सर्दी तथा हिचकी में फालसे का रस थोड़ा गरम करके उसमें थोड़ा अदरक का रस एवं सैन्धव नमक डालकर पीने से कफ बाहर निकल जाता है तथा सर्दी, श्वास की तकलीफ एवं हिचकी मिट जाती है।
मूत्रदाह – पके फालसे 25 ग्राम, आँवले का चूर्ण 5 ग्राम, काली द्राक्ष 10 ग्राम, खजूर 10 ग्राम ले । आँवला, चन्दन चूर्ण एवं सोंठ को कूटकर चूर्ण बना ले। फिर खजूर एवं द्राक्ष को आधा कूट ले । फालसा भी आधा कूट ले । अब रात्रि में यह सब पानी में भिगोकर उसमें शक्कर 20 ग्राम डालकर प्रात: अच्छी तरह से मिश्रित करके छान लें। इसके दो भाग करके सुबह- शाम पीये । खाने में दूध, घी, रोटी, मक्खन, फल एवं शक्कर की चीजें ले। तमाम गर्म खुराक खाना बंद कर दे। इस प्रयोग से मूत्र की, गुदा की, आँख की, योनि की या अन्य किसी प्रकार की जलन मिट जाती है। दिमाग की अनावश्यक गर्मी दूर होती है।
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