खीरा खाने के फायदे इसका औषधिय प्रयोग
खीरा खाने के फायदे
हमारे देश में सलाद के रूप में कई प्रकार के सब्जियों का और फलों का उपयोग किया जाता है जिसमें से एक खीरा का नाम भी आता है कोई कोई खीरा को सब्जी मानता है या कोई खीरा को फल का महत्व देता है लेकिन हमारे भोजन के साथ सलाद रूप में इसका बहुत उपयोग किया जाता हैतो हम जानते हैं खीरा खाने के फायदे के बारे में और इसके अन्य उपयोग क्या है इन सभी के बारे में जानेंगे
फल एवं शाक - ये दोनों शरीर में खनिज, लवण तथा विटामिन की सम्पूर्ति के लिये उत्तम आहारीय स्रोत हैं। प्राचीन काल में अरण्य प्रधान-संस्कृति होने के कारण लोक जीवन में कन्द और मूल यों ही अपने मूलस्व रूप में सेवन किये जाते थे, किंतु कालान्तर में सांस्कृतिक परिवर्तन एवं नगरीय विकास के साथ-साथ उनसे विविध शाक एवं व्यञ्जन बनने लगे। आजकल अनेक भी शाक रूप में व्यवहृत होते हैं। ऐसे ही फलों की श्रेणी में त्रपुस (खीरा) आता है, जो हमारे जीवन में नित्य उपयोगी फल के साथ-साथ आहार में शाक एवं सलाद के रूप में सेवन किया जाता है।
फल एवं शाक - ये दोनों शरीर में खनिज, लवण तथा विटामिन की सम्पूर्ति के लिये उत्तम आहारीय स्रोत हैं। प्राचीन काल में अरण्य प्रधान-संस्कृति होने के कारण लोक जीवन में कन्द और मूल यों ही अपने मूलस्व रूप में सेवन किये जाते थे, किंतु कालान्तर में सांस्कृतिक परिवर्तन एवं नगरीय विकास के साथ-साथ उनसे विविध शाक एवं व्यञ्जन बनने लगे। आजकल अनेक भी शाक रूप में व्यवहृत होते हैं। ऐसे ही फलों की श्रेणी में त्रपुस (खीरा) आता है, जो हमारे जीवन में नित्य उपयोगी फल के साथ-साथ आहार में शाक एवं सलाद के रूप में सेवन किया जाता है।
इसे भी देखें : अमरूद खाने के फायदे
आयुर्वेदीय महर्षियों ने ऐसे आहारोपयोगी फल शाक के पोषक गुणों के साथ ही इसकी विशिष्ट कार्मुकता शरीर के मूत्र - संवहन तन्त्र पर देखी, जिसके कारण इसके गुण-कर्म एवं प्रयोग को अपनी संहिताओं में उचित स्थान प्रदान किया ।
फलशाकों में जैसे कूष्माण्ड (पेठा ) का मानस- विकारों में विशेष लाभप्रद है, उसी प्रकार त्रपुस अपने विशिष्ट कर्मके कारण मूत्र सम्बन्धी विकारों में हितावह एवं प्रभावी है।
आयुर्वेदीय महर्षियों ने ऐसे आहारोपयोगी फल शाक के पोषक गुणों के साथ ही इसकी विशिष्ट कार्मुकता शरीर के मूत्र - संवहन तन्त्र पर देखी, जिसके कारण इसके गुण-कर्म एवं प्रयोग को अपनी संहिताओं में उचित स्थान प्रदान किया ।
फलशाकों में जैसे कूष्माण्ड (पेठा ) का मानस- विकारों में विशेष लाभप्रद है, उसी प्रकार त्रपुस अपने विशिष्ट कर्मके कारण मूत्र सम्बन्धी विकारों में हितावह एवं प्रभावी है।
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खीरा |
रासायनिक संगठनकी दृष्टि से खीरे में
आर्द्रता - 96.4,
प्रोटीन - 0.4,
वसा - 0.1,
कार्बोहाइड्रेट - 2.7,
खनिज द्रव्य - 0.3,
कैल्सियम - 0.01
फास्फोरस - 0.03,
लौह - 1.5मिग्रा० प्रति 100 ग्राम
विटामिन B1 तथा C होते हैं।
इसके बीजों में प्रोटीन 42 तथा वसा 42.5% होता है। इससे एक हल्के पीत वर्ण का तेल निकलता है।
चरकसंहिता के सूत्र स्थान प्रथमाध्याय (70) - में फलिनी शीर्षक के अन्तर्गत 'त्रपुस' खीरा का उल्लेख है ।
इसके अतिरिक्त 'मुखप्रियं च रूक्षं च मूत्रलं त्रपुसं त्वति' ( च०सू० २७ । १११) सूत्रद्वारा महर्षि चरक ने इस शाकीय फल को अतिमूत्रल निदर्शित किया है।
चरक में मूत्रकृच्छ्राश्मरी-चिकित्सा में दो-तीन स्थलों पर इसका उल्लेख है ( च०चि० २६।५८, ६२, ७१) । बस्तिशूलहर बस्ति में त्रपुस (खीरा) का उल्लेख एवं उपयोग है।
आचार्य सुश्रुत ने- 'बालं सुनीलं त्रपुसं तेषां पित्तहरं स्मृतम्' । अर्थात् बाल (कोमल) खीरे को विशेष रूप से गुणकारी एवं पित्तहर बताया है, जबकि पक्वावस्था में किंचित् अम्ल रस युक्त होने से पित्त कारक एवं मूत्र प्रवर्तक उतना नहीं होता जितना कि बाल कोमल खीरा
चरक में मूत्रकृच्छ्राश्मरी-चिकित्सा में दो-तीन स्थलों पर इसका उल्लेख है ( च०चि० २६।५८, ६२, ७१) । बस्तिशूलहर बस्ति में त्रपुस (खीरा) का उल्लेख एवं उपयोग है।
आचार्य सुश्रुत ने- 'बालं सुनीलं त्रपुसं तेषां पित्तहरं स्मृतम्' । अर्थात् बाल (कोमल) खीरे को विशेष रूप से गुणकारी एवं पित्तहर बताया है, जबकि पक्वावस्था में किंचित् अम्ल रस युक्त होने से पित्त कारक एवं मूत्र प्रवर्तक उतना नहीं होता जितना कि बाल कोमल खीरा
इसलिये लोक व्यवहार में बाल खीरा के उत्तम मूत्रल एवं पित्तशामक गुणों के कारण इसे 'बालमखीरा' नामसे पुकारा गया है।
धन्वन्तरि एवं मदनपाल निघण्टुकार ने भी खीरे को- 'त्रपुसं छर्दिहृत् प्रोक्तं मूत्रबस्तिविशोधनम्' तथा 'त्रपुसं मूत्रलं शीतं रूक्षं पित्ताश्मकृच्छ्रनुत्।'— कहा है।
इन निर्दिष्ट सूत्रों के द्वारा खीरे में विशिष्ट मूत्रोत्पादक (Diuretics) एवं मूत्रबस्तिविशोधक (Urinary tract disinfactant and anti urolithiasis) कर्म को उद्घाटित किया है ।
इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि शाकीय फल खीरा एक महत्त्वपूर्ण निरापद उपयोगी वानस्पतिक द्रव्य है, इसका वर्णन संक्षेप में इस प्रकार है-
(क) मूत्र वहसंस्थान के प्रमुख विकारों में उपयोगी है । जैसे मूत्रकृच्छ्र (Retension of urine - मूत्रावरोध), मूत्राश्मरी (Urinary stone - मूत्र पथ की पथरी ) ।
(ख) मूत्रवह स्रोतस्की शोथजन्य विकृतियों-
जैसे वृक्कोणुशोथ (Nephritis), मूत्रबस्ति एवं
नलि का शोथ(Urinary bladder & berethra inflammation) - में उपयोगी है।
(ग) मूत्ररक्तता, मूत्रविषमयता, मूत्राघात एवं मूत्रदाह में लाभकारी।
(घ) पौरुषग्रन्थिशोथ और वृद्धिजन्य अवस्था में लाभप्रद है ।
मूत्रवहसं स्थान के इन विकारों के अतिरिक्त खीरा
उदरविकार, आध्मान, आटोप, विबन्ध, पाण्डु ( रक्ताल्पता), कामला (पीलिया), यकृत् - विकार, विविध पैत्तिक विकार, हृदय रोग, शोथ एवं नेत्र दाह में भी उत्तम पथ्य एवं औषध रूप में व्यवहार करने योग्य है ।
इन सब अवस्थाओं में इसके बाल (कोमल) फल (अपक्वावस्था) का ही उपयोग सर्वदा फलप्रद एवं हितकारक है
धन्वन्तरि एवं मदनपाल निघण्टुकार ने भी खीरे को- 'त्रपुसं छर्दिहृत् प्रोक्तं मूत्रबस्तिविशोधनम्' तथा 'त्रपुसं मूत्रलं शीतं रूक्षं पित्ताश्मकृच्छ्रनुत्।'— कहा है।
इन निर्दिष्ट सूत्रों के द्वारा खीरे में विशिष्ट मूत्रोत्पादक (Diuretics) एवं मूत्रबस्तिविशोधक (Urinary tract disinfactant and anti urolithiasis) कर्म को उद्घाटित किया है ।
इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि शाकीय फल खीरा एक महत्त्वपूर्ण निरापद उपयोगी वानस्पतिक द्रव्य है, इसका वर्णन संक्षेप में इस प्रकार है-
(क) मूत्र वहसंस्थान के प्रमुख विकारों में उपयोगी है । जैसे मूत्रकृच्छ्र (Retension of urine - मूत्रावरोध), मूत्राश्मरी (Urinary stone - मूत्र पथ की पथरी ) ।
(ख) मूत्रवह स्रोतस्की शोथजन्य विकृतियों-
जैसे वृक्कोणुशोथ (Nephritis), मूत्रबस्ति एवं
नलि का शोथ(Urinary bladder & berethra inflammation) - में उपयोगी है।
(ग) मूत्ररक्तता, मूत्रविषमयता, मूत्राघात एवं मूत्रदाह में लाभकारी।
(घ) पौरुषग्रन्थिशोथ और वृद्धिजन्य अवस्था में लाभप्रद है ।
मूत्रवहसं स्थान के इन विकारों के अतिरिक्त खीरा
उदरविकार, आध्मान, आटोप, विबन्ध, पाण्डु ( रक्ताल्पता), कामला (पीलिया), यकृत् - विकार, विविध पैत्तिक विकार, हृदय रोग, शोथ एवं नेत्र दाह में भी उत्तम पथ्य एवं औषध रूप में व्यवहार करने योग्य है ।
इन सब अवस्थाओं में इसके बाल (कोमल) फल (अपक्वावस्था) का ही उपयोग सर्वदा फलप्रद एवं हितकारक है
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