खून बनाने की मशीन : अनार
खून बनाने की मशीन :- अनार( benefits of Pomegrana)
अनार एक बहुत प्राचीन और स्वादिष्ट फलों में से एक माना गया है अनार का उपयोग, अनार के फल के रूप में और औषधीय के रूप में किया जाता है![]() |
अनार खाने के फायदे |
अनार के उपयोग(uses of pomegranate):-
अनार तीन तरह का होता है। एक मीठा, दूसरा खट्टा-मीठा और तीसरा केवल खट्टा ।
इनमें बेदाना अनार सब अनारों में उत्तम होता है।
इनमें बेदाना अनार सब अनारों में उत्तम होता है।
मीठा अनार खून बढ़ाता है, साथ ही धातुओं को पुष्ट करता है। मूत्रावरोध को दूर करता है और पेट को मुलायम रखता है।
खट्टा-मीठा अनार गरमी से उत्पन्न कै, अतिसार,खुजली तथा हिचकी - नाशक होता है तथा आमाशय को शक्तिशाली बनाता है।
अनार में हृदय को बलशाली बनाने एवं पेट के कृमियों को नष्ट करने की अपूर्व क्षमता है। विशेषकर पेट के अंदर स्फीत कृमि (टेप वोर्म) को जड़ से समाप्त करने की शक्ति है।
खट्टा-मीठा अनार गरमी से उत्पन्न कै, अतिसार,खुजली तथा हिचकी - नाशक होता है तथा आमाशय को शक्तिशाली बनाता है।
अनार में हृदय को बलशाली बनाने एवं पेट के कृमियों को नष्ट करने की अपूर्व क्षमता है। विशेषकर पेट के अंदर स्फीत कृमि (टेप वोर्म) को जड़ से समाप्त करने की शक्ति है।
अनुभवी चिकित्सकोंका मानना है कि अनार की जड़ की छाल के समान कृमियों को नष्ट करने वाली कोई दूसरी दवा नहीं है ।
उपयोग की विधि -
- दो किलो जल में पचास अनार की जड़ की छाल डालकर चौबीस घंटे तक फूलने के लिये छोड़ दें। उसके बाद हाथ से मसलकर आग पर चढ़ाकर उबालें। जब एक किलो पानी बचे तो उसे तीन बराबर भागों में बाँट दें। दो-दो घंटे के अन्तराल पर एक-एक भाग रोगी को भूखे पेट पिलावें इस दौरान रोगी को खाने के लिये कुछ नहीं दें। दूसरे दिन प्रातःकाल एरण्ड-तेल का जुलाब दें। इस जुलाब से दस्त के साथ सारे टेप वोर्म मृतावस्था में बाहर निकल जाते हैं। इन कृमियों को नष्ट करने में जहाँ सारी औषधियाँ निष्फल हो जाती हैं, वहाँ यह औषधि निःशंक सफल होती है
- अनार की जड़ के ताजे छिलके ( पचास ग्राम ) को एक किलो जल में आगपर उबालें, आधा पानी शेष रहने पर ठंडा होने पर छान लें । इसमें से पचास ग्राम प्रातः खाली पेट रोगी को पिला दें । बाकी पानी की चार खुराक बनाकर हर खुराक को एक-एक घंटा बाद दें। इसके बाद एरण्ड-तेलका जुलाब दें। इससे आँत साफ होकर पेट के कीड़े मृतावस्था में बाहर निकल जायँगे ।
इसके अतिरिक्त निम्नलिखित रोगों में भी इसका उपयोग अत्यन्त गुणकारी साबित होता है-
- सूखा रोग - यह रोग प्राय: बच्चों को ही होता है । इस रोग को ममरखा, सुखण्डी, अस्थिशोष, रिकेट्स आदि नामों से जाना जाता है। अनार के जड़ का छिलका का काढ़ा बनाकर देने से बहुत लाभ मिलता है ।
- खाँसी - अनार के छिलके को मुँह में रख कर चूसने से खाँसी में लाभ मिलता है ।
- खूनी अतिसार - कुटज और अनार के छिलके का काढ़ा बनाकर मधु के साथ देने से असाध्य रक्तातिसार में लाभ होता है ।
- बवासीर - अनार की छालके के काढ़े में सोंठ का चूर्ण मिलाकर देने से खूनी बवासीर में आशातीत लाभ होता है। उन्माद (हिस्टीरिया ) – अनार के पत्ते 10 ग्राम तथा गुलाब के ताजे फूल 10 ग्राम को आधा सेर पानी में उबालकर चौथाई भाग बचने पर छानकर 10 ग्राम की मात्रा में गायका घी मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से उन्माद में लाभ पहुँचता है।
- प्रदर - अनार की जड़ की 10 ग्राम छाल को एक लीटर पानी में उबालें। आधा बचे रहने पर उसमें पाँच ग्राम फिटकिरी डालें, इस पानी की पिचकारी लेने से स्त्रियों के प्रदर रोग, रक्तप्रदर, गर्भाशय के विकारों तथा गर्भाशय में होनेवाले जख्म में लाभ होता है ।
- सिरके बाल झड़ना - अनार के पत्ते को पानी में पीसकर दिन में दो बार लेप करने से गंज दूर होती है।
- बहरापन – अनार के पत्तों का रस 50 ग्राम, बेल के पत्तों का रस 50 ग्राम और तिल का तेल 50 ग्राम को हल्की आँच पर पकावें । जब मात्र तेल शेष रहे तो उतारकर छान लें और शीशी में ठंडाकर बंद कर लें। दो-दो बूँद कान में डालें, लाभ होगा।
- विषैले जीवों के डंक — भिड़ बर्रे, ततैया, मधुमक्खी, बिच्छू आदि विषैले जीवों के डंक मारने पर अधिक दर्द और कष्ट होता है वहां पर अनार के पत्तों को पीसकर लेप करने से आराम मिलता है।
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