सिंघाड़ा खाने के फायदे, नुकसान और ठीक होने बीमारी
सिंघाड़ा खाने के फायदे, नुकसान और ठीक होने बीमारी(Benefits and method of eating water chestnut):-
सिंघाड़ा आश्विन-कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर)- मौसम में आने वाला लोकप्रिय फल है। इसका पौधा बेल के रूप में होता है। बेल प्राय: वर्षा ऋतु में लगायी जाती है और फल जाड़े की ऋतु प्रारम्भ होने के बाद आते हैं। इसका पौधा जलीय कहलाता है
सिंघाड़े को लोग बड़े प्रेम से कच्चा ही खाते हैं। कच्चे सिंघाड़े को 'दूधिया सिंघाड़ा' भी कहते हैं। जब सिंघाड़े की मींगी (गिरी) कुछ कड़ी ( पक्की) हो जाती है, तब इसे प्रायः उबाल कर खाते हैं। मींगी को पकने पर ही सुखाकर संग्रह किया जाता है। इन्हीं शुष्क मींगियों को कूट-पीसकर आटा बनाकर औषधि के रूप में अथवा व्रत (उपवास) आदि में सेवन करने के प्रयोग में लाया जाता है। तो आज सिंघाड़ा खाने के फायदे, नुकसान और ठीक होने वाली बीमारी के बारे संपूर्ण जानकारी देंगे।
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सिंघाड़ा |
रासायनिक विश्लेषण करने से पता चलता है कि सिंघाड़े के 100 g खाने योग्य भाग में लगभग 70 g क्षारजल, 5.25 g वसा, 4.5 g कार्बोहाइड्रेट्स, 3.25 g प्रोटीन तथा समुचित मात्रा में कैल्सियम, फास्फोरस और अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण खनिज लवण तत्त्व विद्यमान रहते हैं। सिंघाड़े में खनिज, क्षार की मात्रा, गाय-भैंस के दूध की तुलना में बाईस प्रतिशत अधिक होती है।
प्राचीन आयुर्वेद के अनुसार
सिंघाड़ा खाने के फायदे और तरीका
सिंघाड़ा शीतल प्रकृति वाला फल है। यह खाने में स्वादिष्ठ, भारी एवं ग्राही होता है। सिंघाड़ा मलशोषक, पित्त, रक्तविकार तथा रक्त-पित्तका शमन करनेवाला होता है। यह वृष्य गुणवाला बाजीकारक, तापनिवारक, श्रमहारक, वीर्यवर्धक तथा उद्दीपक होता है। । यदि करना ही पड़ जाय तो अत्यल्प मात्रामें करना चाहिये। सिंघाड़े का किसी भी रूप में नियमित सेवन 'बल्य' (बलकारक) होता है ।
यह एक अनुभव की बात है कि सिंघाड़े का सेवन त्रिदोष, भ्रम, मोह तथा सूजन को दूर करता है। यह छोटे बच्चों को स्वस्थ और सुपुष्ट बनाने के लिये दूध में चौथाई भाग मीठी नारंगी का रस मिलाकर पिलाना चाहिये। यह उनके लिये एक आदर्श टॉनिक है। इससे बच्चों में नयी ऊर्जा, नयी शक्ति और नया उत्साह आ जाता है ।
- दाँत निकलते समय बच्चों को उलटी होती है तथा हरे-पीले दस्त होते हैं। इनमें नारंगी-रस देने से उनकी बेचैनी दूर होती है तथा पाचन शक्ति बढ़ जाती है। दाँतों और मसूढ़ों के रोग भी इसके सेवन से दूर होते हैं।
- शरीर से दुर्बल, गर्भवती महिलाओं, कब्ज, बवासीर, बेरी-बेरी, अपच, पेट में गैस, जोड़ों का दर्द, गठिया, ब्लडप्रेशर, चर्मरोग, यकृत् - रोगसे ग्रस्त रोगियोंके लिये नारंगीका रस परम लाभकारी है ।
- जिन्हें दूध नहीं पचता या जो केवल दूध पर निर्भर हैं, उन्हें नारंगी का रस अवश्य सेवन करना चाहिये । दूध में विटामिन 'बी कम्पलेक्स' नहीं के बराबर है। अतः इसकी पूर्ति नारंगी के सेवन से हो जाती है।
- मुँहासे, कील और झाँई तथा चेहरेके साँवलेपन को दूर करने के लिये नारंगी के सुखाये छिलकों का महीन चूर्ण गुलाब-जल या कच्चे दूध में मिलाकर पीसकर आधा घंटा तक लेप लगाये, इससे कुछ दिनों में चेहरा साफ, सुन्दर और क्रान्तिमान् हो जाता है ।
- नारंगी सर्वरोगनाशक और शरीर के लिये परम हितकारी फल है। खट्टी नारंगी का सेवन बच्चों- बूढ़ों, गर्भवती महिलाओं, अम्लपित्त एवं पेट में अल्सर वालों के लिये वरदान है।
- धातु-दौर्बल्यता की स्थिति में पुरुषों को 5 ग्राम से 10 ग्राम तक सिंघाड़े का आटा गुनगुने दूध में मिश्री के साथ सेवन करने पर पर्याप्त लाभ मिलता है। यदि शीतकाल में पुरुष 3 ग्राम से 5 ग्राम तक सिंघाड़े का आटा रात्रि काल में विशेषतः ले तो शक्ति की वृद्धि होती है तथा वीर्य पुष्ट होता है।
- सिंघाड़ा , रक्त एवं ज्ञान-तन्तुओं को विशेष रूप से बल प्रदान करनेवाला होता है ।
- यदि कोई व्यक्ति दाह, ज्वर, रक्त-पित्त या संताप-बेचैनी आदि से पीडित हो तो उसे सिंघाड़े के रस का प्रयोग प्रतिदिन 10-15 ग्राम से 20-25 ग्राम तक शरीर के बलाबल के अनुसार अवश्य ग्रहण करना चाहिये। यदि सिंघाड़े का रस न मिले तो मींगी से क्वाथ तैयार करके प्रयोग में लाये।
नुकसान
- सिंघाड़े को विद्वानों ने फलाहार में शामिल किया है । इसके शुष्क फलों का आटा व्रत उपवास आदि में प्रयोग किया जाता है। सिंघाड़े का सेवन करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि यह और इसका आटा पाचन में भारी होता है। अधिक मात्रा में सेवन करनेसे पेट दर्द, मूत्र में अवरोध पैदा होना , अफारा, अजीर्ण आदि विकार होने की सम्भावना रहती है। अतः सिंघाड़े अथवा आटे का सेवन उचित मात्रा में ही करना चाहिए
- यह कुछ मात्रा में वायु और कफ की वृद्धि करने वाला होता है, अतः वात एवं कफ- प्रकोप से ग्रसित लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिये
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