अफीम के पौधों के औषधीय गुण: जानिए इस आयुर्वेदिक औषधि के चमत्कारिक लाभों के बारे में

अफीम का परिचय : एक अनसुना और रहस्यमय वनस्पति

अफीम पोस्त के डोडों से प्राप्त की जाती है। जो कृषिजन्य पौधों पर लगते हैं। भारतवर्ष में बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य एवं पश्चिम भारत और मालवा में पोस्त की खेती की जाती है। पोस्त के डोडे जब पूर्ण विकसित हो जाते हैं, परन्तु कच्ची अवस्था होते हैं तब इनमें चीरा लगाने से एक गाढ़ा दूध (लैटेक्स) निकल है। इसको एकत्रित कर सुखा लिया जाता है। यही व्यावसायिक या अफीम एक अनसुना और रहस्यमय वनस्पति है।

अफीम

अफीम के पौधों की पहचान: भारतीय औषधीय पौधों में एक अनमोल खजाना

अफीम के पौधों की पहचान कोना बहुत जरुरी है इसका पेड़ पोस्त के डेढ़ से 4 फुट तक अर्धवार्षिक क्षुप होते हैं। जिनमें पत्र 4 इंच लम्बे-चौड़े, अवृन्त, हृदयाकार तथा काड संसक्त होते हैं पुष्प एकल, नीलाभ श्वेत, नीचे का भाग बैंगनी या चित्रित हा हैं। फल अनार की भांति गोल अंडाकार इसके नीचे की ओर ग्रीक तथा ऊपर कंगूरेदार चोटी होती है। फल पकने पर स्फुटन के लिए कंगूरे के नीचे कपाटाकार सूक्ष्म छिद्र हो जाते हैं।

अफीम में पाये जाने वाले रासायनिक संघटन

पोस्त के बीजों में हल्के पीले रंग का मीठा स्थिर तेल होता है जिन्ह रोगन खशखश कहते हैं। अफीम में मार्फीन, नार्कोटीन एवं कोडी आदि ऐल्केलाइड्स पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त इनमें अनेक प्राथमिक तथा द्वितीयक एल्केलाइडस, कार्बनिक अम्ल, लेक्टिर एसिड मेकोनिक एसिड आदि आर्गेनिक अम्ल, जल, ग्लूकोज, वसा, उड़नशील तैल आदि तत्व पाये गये हैं।

अफीम के पौधों के गुण-धर्म और उपयोग के बारे में

पोस्त का डोडा शीतल, हल्का, ग्राही, कड़वा, कसैला, वातकारक, कफ तथा शुष्क कासहर, धातुओं को सुखाने वाला रूक्ष मदकारक, वचन-वर्धक, मोहजनक तथा रूचि को उत्पन्न करने वाला है।
लगातार सेवन से नपुंसकत्व पैदा करता है।' अफीम शोषक, ग्राही, कफनाशक वायु तथा पित्त कारक है तथा जो गुण डोडा में हैं वहीं इसमें भी है। पोस्त के बीज वीर्यवर्धक, बलदायक, भारी, कफवातवर्धक है।

अफीम के पौधों के औषधीय गुण: जानिए इस चमत्कारिक पौधे के स्वास्थ्य संबंधी लाभों के बारे में

मस्तक पीड़ा में :-

  1. 1 ग्राम अफीम और दो लौंग पीसकर लेप करने से बादी और सर्दी की मस्तक पीड़ा मिटती है।

नेत्र रोग में :- 

  1. आंख के दर्द और आंख के दूसरे रोगों में इसका लेप बहुत लाभकारी है।

नकसीर में :-

  1. अफीम और कुंदरु गाँद दोनों बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर सुंघाने से नकसीर बंद होती है।

केश में :-

  1. इसके बीजों को दूध में पीसकर सिर पर लगाने से इसमें होने वाले फोड़े फुन्सियां एवं रूसी साफ हो जाती है।

दंतशूल में :-

  1. 16 मिलीग्राम अफीम और 125 मिलीग्राम नौसादर, दोनों को दाड़ में रखने से दाड़ की पीड़ा मिटती है और दांत के छेद में रखने से दंतशूल मिटता है।

कर्णशूल :-

  1. अफीम की 65 मिलीग्राम भस्म गुलाब के तैल में मिलाकर कान में टपकाने से पीड़ा मिटती है।
  2. स्वर भंग अफीम के डोडे और अजवायन को उबालकर गरारे करने से बैठी हुई आवाज खुल जाती है।

प्रतिश्याय और खांसी :- 

  1. बीज सहित इसके 60 ग्राम डोडे का क्वाथ बनाकर 50 ग्राम बूरा मिलाकर शर्बत बनाकर पिलाने से प्रतिश्याय व खांसी मिटती है।
  2. डंठल अलग करके, इसके 2 डोडे लें तथा इनको दो ग्राम सैंधा नमक के साथ 350 ग्राम पानी में उबाल लें, जब 100 ग्राम पानी शेष रह जाये तो छानकर सोते समय पिलाने से प्रतिश्याय और खांसी मिटती है।

आमाशय की सूजन, उदरशूल में  :-

  1. अमाशय की झिल्ली की सूजन और उदरशूल में इसका लेप बहुत फायदेमंद है।

संग्रहणी में :-

  1. अफीम और बछनाग 3 ग्राम, लौह भस्म 250 ग्राम और अभ्रक भस्म डेढ़ ग्राम इन चारों वस्तुओं को दूध में घोटकर 125 मिलीग्राम की गोलियां बनाकर दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करनी चाहिए। पथ्य में जल को त्याग करके में दूध का ही व्यवहार करना चाहिए।

अतिसार :-

  1. अतिसार में अफीम और केशर को समान भाग लेकर पीस लें तथा 125 मिलीग्राम प्रमाण की गोलियां बनाकर शहद के साथ देने से लाभ होता है।
  2. अफीम को सेंककर खिलाने से पक्वातिसार मिटता है।
  3. 4 से 9 ग्राम तक इसके डोडे पीसकर पिलाने से अतिसार मिटता है।

अर्श में :- 

  1. शूल युक्त अर्श पर रसवंती तथा अफीम का लेप करने से वेदना कम होकर रक्तस्त्राव बंद हो जाता है।
  2. धतूरे के पत्रों के रस में अफीम मिलाकर लेप करने से वेदना शीघ्र बंद हो जाती है। की पीड़ा प्रसव होने के पश्चात् गर्भाशय की पीड़ा मिटाने -के लिए इसके डोडों का क्वाथ पिलाना चाहिए।

कटिशूल में :-

  1. एक तोले पोस्त के दानों में बराबर मिश्री मिलाकर फंकी देने से कमर की पीड़ा मिटती है।
  2. इसके डोडे पानी में भिगोकर पानी इतना पिलायें की नशा न हो, इससे कमर का दर्द मिटता है।
  3. यादी की पीड़ा स्नायु संबंधी पीड़ा पर इसके लेप करने से लाभ होता है।

खुजली में :-

  1. अफीम को तिल के तेल में मिलाकर मालिश करने से खुजली मिटती है।

जोंक का डंक लगने में :-

  1. जोंक का डंक अगर पक जाए तो उस पर इस दानों को पीसकर लेप करना चाहिए।

ज्वर में :-

  1. इसके एक डोडे और 7 काली मिर्चों को उबालकर सुबह-हार पिलाने से चातुर्थिक ज्वर मिटता है।

नासूर में :- 

  1. अफीम और हुक्के के कीड़े की बत्ती बनाकर भरने से नाई ब्रण भर जाता है।
  2. मनुष्य के नाखून की राख में 250 मिलीग्राम अफीम उस रखकर आग पर पकाकर खिलाने से लाभ होता है।

आक्षेप 

प्रलाप, अनिद्रा, आक्षेप, वायु हनुस्तंभ आदि रोगों में अफी का सेवन लाभकारी है।

अफीम के दोष और नुकसान 

अफीम का अधिक मात्रा में सेवन उपद्रवकारी है और इससे  मृत्यु तक हो जाती है।

अत्यधिक अफीम के सेवन से होने वाले नुकसान का निवारण 

रीठे का जल, नीम का क्वाथ, मैनफल व तम्बाकू वा क्वाथ, करमयक शाक का रस निचोड़कर पिलाने से प्राण त्याग  करता हुआ बीमार भी बच जाता है।

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